आईआईटी बाबा: समाज का प्रतिबिंब और चेतना का सत्य

आज लोग #IITBaba उर्फ़ अभयसिंह का उपहास कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता यह है कि उन्हीं के पीछे दौड़कर समाचार एंकर, रिपोर्टर और यूट्यूबर अपनी टीआरपी और व्यूअरशिप बढ़ा रहे हैं। यह एक अजीब विडंबना है कि जिस व्यक्ति को उपेक्षित और हास्यास्पद बताया जा रहा है, वही वर्तमान मीडिया की सुर्खियों में छाया हुआ है।
समाज की अपरिवर्तनीय प्रवृत्ति
अभय सिंह की स्थिति को देखकर ओशो की यह अमर वाणी स्मरण हो आती है:
“समाज कभी नहीं बदला। समाज जैसा मोहम्मद के समय था, जैसा मंसूर, जीसस, सुकरात, गैलीलियो, बुद्ध, महावीर, मुसोलिनी और हिटलर के समय था, वैसा ही आज भी है और भविष्य में भी वैसा ही रहेगा। बदलता है तो केवल व्यक्ति, उसकी चेतना और उसकी दृष्टि। सरकारें, शासक और समाज की मानसिकता यथावत बनी रहती है। जनता सदैव माफियाओं और सत्ताधीशों की कृपा पर निर्भर रहती है।”
निजी चेतना की यात्रा
जब मैंने आश्रम त्यागने का निर्णय लिया, तो तथाकथित शुभचिंतकों ने चेतावनी दी:
“तुम्हारी पहचान आश्रम और गुरु के कारण है। लोग तुम्हें आर्थिक सहयोग और सम्मान इसलिए देते हैं क्योंकि तुम एक प्रसिद्ध आश्रम और गुरु से जुड़े हो। आश्रम छोड़ने के बाद कोई तुम्हें नहीं पूछेगा। जो तुम्हें ज़मीन देने का वादा कर रहे हैं, वे तुम्हें कुछ भी नहीं देंगे। अभी भी समय है, माफी मांग लो और आराम से आश्रम में रहो।”
परंतु मुझसे वह गलती नहीं हुई थी, जिसके लिए मैं माफी मांगता। मेरी लेखनी से यदि ढोंगियों की भावनाएँ आहत हुईं, तो इसमें मेरा क्या दोष?
सत्य की राह पर संघर्ष
आश्रम त्यागने के बाद आर्थिक सहयोग करने वाले अधिकांश लोग मुझसे दूर हो गए। यह भ्रम भी टूट गया कि लोग मेरी लेखनी और विचारों के कारण जुड़े थे। वास्तविकता यह थी कि वे केवल भगवा और आश्रम की पहचान के कारण जुड़े थे। जब उन्हें यह स्पष्ट हो गया कि मैं उनके मतानुसार कभी नहीं बदलूंगा, तो उन्होंने मुझसे किनारा कर लिया।
मैं एक अपरिचित गाँव में पहुँचा, जहाँ मुझे कोई विशेष स्वीकृति नहीं मिली, क्योंकि यह भक्तों से भरा गाँव था। फिर भी एक गरीब परिवार ने मुझे आश्रय दिया और झोंपड़ी बनाने के लिए भूमि प्रदान की। एक संस्था ने आर्थिक सहायता दी, जिससे मैं अपने लिए एक छोटी कुटिया बना सका।
स्वतंत्रता और आत्मबोध का अनुभव
अब मैं अपनी निजी पहचान बना रहा हूँ। मेरी कुटिया किसी आश्रम या गुरु की संपत्ति नहीं, बल्कि मेरी स्वयं की मेहनत से निर्मित मेरा घर है। इसे बनाने में अत्यधिक शारीरिक श्रम करना पड़ रहा है, क्योंकि मुझे अपने सीमित संसाधनों में ही निर्माण कार्य पूरा करना है।
लेकिन हृदय में प्रसन्नता है, क्योंकि यह मेरी अपनी कुटिया है, जो मेरे अपने हाथों से निर्मित होगी।
आत्मबोध का उद्घोष
न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्मः। न बंधुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यं चिदानन्दरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम् ॥
न मैं मृत्यु के भय से बँधा हूँ, न किसी जाति-बंधन में, न मेरा कोई पिता है, न माता, न जन्म, न कोई संबंध, न मित्र, न गुरु, न शिष्य, मैं मात्र शुद्ध आनंदमय चेतना हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ।
~ विशुद्ध चैतन्य
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