क्या है मानवता या इंसानियत ?

क्या है मानवता या इंसानियत ? यह प्रश्न मैंने कई बार उठाया, लेकिन संतोषजनक उत्तर किसी ने नहीं दिया। जिनसे अपेक्षा थी, वे मौन रहे, और जिन्हें कुछ भी ज्ञात नहीं था, वे निरर्थक बहस में उलझ गए। किसी ने मुझे भिखारी कहा, किसी ने पागल, और किसी ने यह तक कह दिया कि ऐसे प्रश्न पूछने का कोई औचित्य ही नहीं।
जिस प्रकार अधिकांश लोगों को धर्म का वास्तविक स्वरूप ज्ञात नहीं होता, ठीक उसी प्रकार उन्हें इंसानियत का भी बोध नहीं होता। किंतु भ्रम में जीना मानव का स्वभाव है। अधिकांश लोग जीवनपर्यंत यह समझ ही नहीं पाते कि धर्म क्या है और इंसानियत क्या है, फिर भी तोतों की भांति दोहराते रहते हैं—”इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है” और “हमारा धर्म सर्वश्रेष्ठ है” जैसे जुमले।
अब पहले यह समझते हैं कि पशुता क्या है।
प्रत्येक जीव का एक विशेष स्वभाव होता है, जिसे उसकी जातिगत प्रवृत्ति कहा जाता है। जैसे, बिल्ली का एक स्वभाव होता है, कुत्ते का अलग, मुर्गे का अलग, और साँप का अलग। चाहे वे किसी भी देश के हों, उनके मूल स्वभाव में कोई भिन्नता नहीं होती। मुर्गा समय पर बांग देगा, कुत्ता अपने क्षेत्र की सुरक्षा करेगा और अजनबियों पर भौंकेगा, साँप अपने विष के कारण पहचाना जाएगा। पशुओं के गुण और प्रवृत्तियों के आधार पर हम पशुता को समझ सकते हैं।
अब प्रश्न उठता है कि मानवता या इंसानियत क्या है?
दया, करुणा, प्रेम, उदारता, सेवा, सहायता—यह सब पशुओं में भी पाए जाते हैं। कुत्ता अपने स्वामी के प्रति निष्ठावान रहता है, हाथी अपने समूह के सदस्यों की रक्षा करता है, गाय अपने बछड़े को स्नेहपूर्वक दुलारती है। तो क्या इन्हें भी मानवता कहा जाएगा ? यदि इन गुणों को ही मानवता कहा जाए, तो फिर छल-कपट, बेईमानी, मक्कारी, हत्या, दंगा-फसाद, नरसंहार करने वाली भीड़ को किस श्रेणी में रखा जाएगा ? क्या यह भी मानवता का ही अंग है ?
एक समय था जब लोग दूसरों के दुःख-सुख में सहभागी होते थे, सहायता के लिए तत्पर रहते थे। लेकिन आज किसी के पास समय नहीं। तो फिर क्या यही आधुनिक इंसानियत है ? जब मैंने लोगों से यह प्रश्न किया तो उत्तर में मुझे अपशब्द मिले। गालियाँ सुननी पड़ीं। तो क्या गाली-गलौज करना, माँ-बहनों का मौखिक बलात्कार करना ही इंसानियत है ?
यदि यह मानवता है, तो निसंदेह पशु इससे श्रेष्ठ हैं। क्योंकि मैंने आज तक किसी पशु को ऐसा करते नहीं देखा। किंतु साधु-संतों, धार्मिक प्रवचनों और समाज के तथाकथित सभ्य लोगों तक को माँ-बहनों का मौखिक बलात्कार करते देखा है। सड़कों, बाज़ारों, गली-कूचों में गालियाँ देना इतना सामान्य हो गया है कि यदि कोई व्यक्ति गाली नहीं दे रहा तो उसे असामान्य माना जाता है।
तो क्या यही मानवता है ? क्या यही इंसानियत का मापदंड है ? क्या हम इस कटु सत्य को स्वीकार करने को तैयार हैं ?
यदि हाँ, तो फिर मुझे कहना ही पड़ेगा कि गालियाँ देना, माँ-बहनों का अपमान करना, देश के लुटेरों और माफियाओं की चाकरी करना, अपने ही देश को लूटने और लुटवाने में सहयोग देना ही वास्तविक मानवता है।
क्या आप मुझसे सहमत हैं ?
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
