सफलता की मेरी परिभाषा और समाज की सच्चाई

मनोविज्ञान कहता है कि यदि समाज में प्रभाव जमाना है, दूसरों को आकर्षित करना है, और मान-सम्मान प्राप्त करना है, तो कपड़ों में सलीका होना चाहिए, चेहरे पर तनाव या दुःख की छाया नहीं दिखनी चाहिए। अपनी कमजोरियाँ, अपने दुःख और अपनी योजनाएँ कभी उजागर नहीं करनी चाहिए।
देहाती मान्यता भी यही कहती है—अपनी भावी योजनाएँ और अपनी सुख-समृद्धि बाहरी लोगों को बताने से नजर लग जाती है और सब कुछ बर्बाद होने लगता है।
लेकिन मैंने हमेशा इस मान्यता के विरुद्ध कार्य किया
मैंने कभी स्वयं को सँवारने या दिखावे में ध्यान नहीं दिया। मैंने अपना दुःख और अपनी समस्याएँ सोशल मीडिया पर साझा कीं। मैंने अपनी योजनाएँ भी उजागर कीं।
और परिणाम…? तमाशा देखकर ताली बजाने वालों की भीड़ इकट्ठी हो गई। जैसे कोई सड़क किनारे तमाशा दिखाए तो कुछ लोग चंद रुपये फेंक देते हैं, वैसे ही मुझे भी कुछ सहायता मिली, लेकिन उसके साथ ‘भिखारी’ और ‘मुफ्तखोर’ की उपाधियाँ भी।
मुझे ये उपाधियाँ उन लोगों से मिलीं जो माफियाओं और लुटेरों के सामने नतमस्तक रहते हैं। जो उनकी गुलामी और चाकरी को अपना सौभाग्य मानते हैं, और जिनका योगदान केवल सोशल मीडिया पर ‘अच्छी’ टिप्पणियाँ करने तक सीमित है।
सोशल मीडिया—एक दिखावटी दुनिया
- यहाँ लोग अपनी खुशहाल शादी, अपने बच्चों की उपलब्धियाँ और महँगी खरीदारी दिखाते हैं।
- लेकिन सच यह है कि हर कोई आपके लिए खुश नहीं होता।
- अधिकांश ‘अच्छी’ टिप्पणियाँ नकली होती हैं।
- आप जाने-अनजाने में ईर्ष्यालु लोगों को आकर्षित कर रहे होते हैं।
- आप नहीं जानते कि कौन आपकी तस्वीरें सेव कर रहा है, कौन आपके अपडेट पर नजर गड़ाए बैठा है।
इसलिए, अपने निजी जीवन को निजी ही रखना चाहिए। लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया, और इसका परिणाम यह हुआ कि तमाशा देखने वालों की भीड़ तो बढ़ी, लेकिन अपना कहने वाला कोई नहीं मिला।
अपना कौन ?
मुझे अक्सर लोग कहते हैं—”हम तो आपके अपने हैं, आपकी सहायता के लिए हमेशा तैयार हैं, बस एक फोन कीजिए।” लेकिन सच यह है कि मैं इस दुनिया में अकेला हूँ। अपनों को फोन करके बताने की आवश्यकता नहीं होती कि मैं संकट में हूँ। अपने तो बिना कहे भी समझ जाते हैं।
मुझे यह एहसास मेरी बिल्ली ने कराया। उसे इंसानी भाषा नहीं आती, लेकिन फिर भी वह मेरी भाषा समझ लेती है, और मैं उसकी। क्योंकि हमारा रिश्ता हृदय का है, प्रेम का है, न कि स्वार्थ का।
बिल्ली जब मेरी गोद में आती है, तो निश्चिंत सो जाती है। क्योंकि उसे पता है कि यहाँ उसे कोई खतरा नहीं। जब उसे भूख लगती है, तो वह मुझसे अधिकार से मांगती है। लेकिन यही बिल्ली किसी बाहरी व्यक्ति से कुछ नहीं मांगेगी, बल्कि उससे दूर ही भागेगी।
यही अपनापन होता है।
सफलता की मेरी परिभाषा
मैं चाहता तो वैसी सफलता प्राप्त कर सकता था, जो समाज में सफलता मानी जाती है—प्रसिद्धि, कीर्ति, मान-सम्मान। लेकिन मेरी सफलता की परिभाषा वह नहीं, जो समाज ने तय की है।
मेरी सफलता है—माफियाओं और देश के लुटेरों की चाकरी और गुलामी से मुक्त जीवन। फिर चाहे वह जंगल में एक टूटी-फूटी झोंपड़ी में ही क्यों न बीते। फिर चाहे मुझे समाज से बहिष्कृत होकर अकेले ही क्यों न जीना पड़े।
भीड़ की आवश्यकता उन्हें होती है, जिन्हें सत्ता चाहिए, प्रसिद्धि चाहिए, मान-सम्मान चाहिए। लेकिन मुझे इन सबसे कोई मतलब नहीं। मुझे चाहिए शांति, एकांत, प्रकृति का सान्निध्य, और वह निश्चिंतता, जो मेरी गोद में सोई हुई मेरी बिल्ली को प्राप्त होती है।
~ विशुद्ध चैतन्य
Support Vishuddha Chintan
