होली: प्रेम, सौहार्द और सामाजिक एकता का पर्व

उत्सव चाहे किसी भी जाति, संप्रदाय, प्रांत या देश का हो, उसका मूल उद्देश्य सामाजिक प्रेम, मैत्री और सौहार्द को बढ़ाना ही होता है। यह अवसर हमें भेदभाव मिटाकर खुशियाँ बाँटने का सन्देश देता है। दुनिया में कोई भी त्योहार द्वेष और घृणा को बढ़ावा देने के लिए नहीं मनाया जाता। उत्सवों का वास्तविक स्वरूप आनंद, उल्लास और आत्मीयता की भावना को प्रबल करना होता है।
होली भी ऐसा ही एक अनुपम पर्व है, जो खेतों में फसल पकने के उल्लास के साथ जीवन के तमाम तनावों से मुक्त होकर उमंग और प्रसन्नता से भरे कुछ पल बिताने का अवसर प्रदान करता है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इसमें कोई बंधन नहीं, कोई औपचारिकता नहीं। होली रंगों का, हँसी-ठिठोली का, अपनेपन का और सारे गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को गले लगाने का पर्व है। इस दिन हर मनुष्य अपनी मस्ती में झूमता है, स्वयं भी नाचता है और अपने आस-पास के लोगों को भी उस आनंद में सराबोर कर देता है।
“बुरा ना मानो, होली है!”
यह उक्ति यूँ ही नहीं प्रचलित हुई। होली का अवसर एक ऐसा समय होता है, जब हँसी-मजाक, हास-परिहास और प्रेमपूर्वक छेड़छाड़ को सहजता से लिया जाता है। किंतु, यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि यह हँसी-ठिठोली किसी की मर्यादा का उल्लंघन न करे। आनंद और उल्लास की आड़ में कोई उच्छृंखलता और अनुशासनहीनता को बढ़ावा न दे।
किन्तु, यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज कुछ असामाजिक तत्व इस पावन पर्व की पवित्रता को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं। होली, जो प्रेम और सौहार्द का पर्व है, उसे उन्माद, भय और अराजकता से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। समाज के कुछ विघटनकारी तत्व इसे अपनी स्वेच्छाचारिता और उपद्रव का माध्यम बना रहे हैं, जिससे आमजन में एक अनावश्यक भय उत्पन्न हो रहा है। ऐसा कदापि नहीं होना चाहिए।

“किसी भी उत्सव में यदि किसी अन्य सम्प्रदाय को अपने धार्मिक स्थलों को ढंकना या छुपाना पड़ता है, पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ती है, घर से बाहर निकलने में डर लगता है….. तो निश्चित मानिए कि वह उत्सव धार्मिकों के द्वारा नहीं, उन्मादियों, दंगाइयों के द्वारा मनाया जा रहा है।” ~ विशुद्ध चैतन्य
हमारा कर्तव्य है कि हम होली के वास्तविक संदेश को आत्मसात करें और इसे उसी पवित्रता के साथ मनाएँ, जिस उद्देश्य से इसे मनाया जाता है। हमें यह सिखाना होगा कि होली जब भी मनाएँ, ऐसे मनाएँ कि जो इसे नहीं मनाते, वे भी हमारे प्रेम और सौहार्द से प्रभावित होकर इस पर्व का आनंद लेने लगें। हमारा व्यवहार इस बात का प्रमाण होना चाहिए कि होली घृणा, द्वेष या उन्माद का पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक बंधुत्व, प्रेम और परस्पर सम्मान का उत्सव है।
आइए, इस होली पर हम संकल्प लें कि इस पर्व को अपने आचरण से और अधिक पावन बनाएँगे। इसे प्रेम और आनंद का ऐसा माध्यम बनाएँगे, जिससे संपूर्ण समाज में एकता और सौहार्द की भावना मजबूत हो।
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ! यह पर्व आपके जीवन में अपार हर्ष, उल्लास और प्रेम लेकर आए।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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