मुझे भिखारी कहने से पहले अपने भीतर झाँक लेना

अब तक मैं सिर्फ जंगल और अपनी झोंपड़ी की तस्वीरें साझा कर रहा था, लेकिन आज मैंने अपनी झोंपड़ी की तस्वीर साझा की है। खास उन लोगों के लिए, जिन्हें लगता है कि मैं ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा हूँ, भीख में मिले पैसों से अय्याशी कर रहा हूँ।
तो देख लीजिए, यही वह झोंपड़ी है, जो अब तक अधूरी है— धनाभाव के कारण।

पर सोचने वाली बात यह है कि अगर मुझे लोग अय्याशी के लिए भीख दे रहे हैं, तो फिर मेरी झोंपड़ी अधूरी क्यों है? क्यों मुझे ब्याज पर पैसे लेकर इसे पूरा करवाने की नौबत आई, जब मेरे दस हज़ार से अधिक फॉलोवर्स और मित्र मुझे “भीख” देते हैं?
दस हज़ार छोड़िए, यदि हज़ार लोग भी मदद कर देते, तो भी मेरी कई समस्याएँ हल हो जातीं। मगर वास्तव में तो गिनती के कुछ ही लोग सहयोग भेजते हैं, और उनमें से भी बमुश्किल दो-चार ही होते हैं, जो पाँच सौ या उससे अधिक की राशि भेजते हैं।
मेहनत की कमाई पर घमंड?
जो लोग मुझे भिखारी कहते हैं, वे ज़रा अपनी रोज़ी-रोटी का स्रोत भी देख लें।
आप या तो देश के लुटेरों और माफियाओं की चाकरी कर रहे हैं या फिर झूठे प्रलोभनों के आधार पर व्यापार चला रहे हैं। सच बोलकर कौन-सी नौकरी या व्यापार चल सकता है? झूठ, चालाकी और धोखाधड़ी के बिना क्या कोई बड़ी सफलता मिल सकती है?
और मैं?
मैंने तो साफ़ कह दिया कि मैं किसी के किसी काम नहीं आ सकता। न समाज सेवा करता हूँ, न भविष्य बताता हूँ, न किसी के घर पूजा-पाठ करवाता हूँ, न किसी को धर्म-जाति की ओर धकेलता हूँ। कुल मिलाकर, आपके अनुसार, मैं एक ‘अनुपयोगी’ व्यक्ति हूँ।
लेकिन फिर भी मैं भीख नहीं माँगता। भीख माँगना भी एक कला है, मेहनत है, और बिना हुनर के कोई भीख भी नहीं पा सकता। हाँ, कुछ लोग सहयोग अवश्य करना चाहते हैं, इसलिए वे अपनी श्रद्धा अनुसार मदद भेजते हैं।
मैं लिखता हूँ, बिकाऊ नहीं हूँ
जो भी मुझे आर्थिक सहयोग देते हैं, वे भी जानते हैं कि मुझसे उन्हें कोई लाभ नहीं होने वाला। फिर भी वे मेरा सहयोग करते हैं क्योंकि मैं वह लिखता हूँ, जो बिकाऊ लेखक नहीं लिख सकते, जो बिका हुआ साधु समाज बोल नहीं सकता। और जब मैं सच लिखता हूँ, तो मुझे समाज, आश्रम और सोशल मीडिया से बहिष्कृत होना पड़ता है। कभी-कभी भूखा मरने की नौबत तक आ जाती है।
लेकिन यह सब उन लोगों को नहीं दिखता, जो मुझे भिखारी कहने में आनंद लेते हैं।
उन्हें बस यही दिखता है कि मेरे दस हज़ार से अधिक फॉलोवर्स हैं, तो ज़रूर मैं पैसे में खेल रहा होऊँगा! उन्हें लगता है कि मुझे ट्रकों में भरकर पैसा बैंक ले जाना पड़ता होगा। और यही उनकी जलन का कारण भी है।
कल मैं रहूँ या न रहूँ…
आज मैं जहाँ हूँ, कल हो सकता है वहाँ न रहूँ।
आज जो लोग मेरे साथ हैं, वे कल मेरे विरोध में खड़े हो सकते हैं।
आज मेरे पास अधूरी झोंपड़ी है, कल यह भी नहीं रहेगी, और हो सकता है कि मुझे फुटपाथ पर सोना पड़े।
क्या तब भी वे लोग मुझे भीख देने आएँगे?
भविष्य में “भिखारी” कहने से पहले…
मुझे तब भीख माँगने की ज़रूरत नहीं पड़ी थी, जब मैं फुटपाथों पर भूखा-प्यासा भटक रहा था। और आज भी जब मेरे सिर पर कर्ज़ है, मैं ब्याज चुका रहा हूँ— तब भी मैं भीख नहीं माँग रहा हूँ।
जो लोग सहयोग करते हैं, वे मेरी लेखनी और विचारों का सम्मान करते हैं। वे जानते हैं कि वे किसी भेड़चाल में फँसे हुए व्यक्ति की मदद नहीं कर रहे, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति को सहयोग कर रहे हैं, जो स्वतंत्रता और मौलिकता के साथ जी रहा है।
अगर मेरी बातें समझ नहीं आतीं, तो कृपया मुझे ब्लॉक करें और अपने मार्ग पर चलें। यहाँ बैठकर यह गणना करने का कोई लाभ नहीं कि कौन मुझे कितना और क्यों दे रहा है।
अगर भीख माँगना ही मेरा मकसद होता, तो मैं ऐसे लेख क्यों लिखता, जो समाज, सरकार, राजनीतिक दलों और धर्म के ठेकेदारों की नींद उड़ाते हैं? मैं भी चाटुकारिता करके, नेताओं और पूंजीपतियों की स्तुति गाकर लाखों कमा सकता था। या फिर कटोरा लेकर सड़कों पर बैठ जाता, तो भी अच्छी खासी कमाई हो जाती।
मगर नहीं— मैंने शहर और आश्रमों की चकाचौंध छोड़कर एक गाँव में झोंपड़ी बना ली। उस गाँव में, जहाँ लोग खेती और बागबानी करने वालों को मूर्ख समझते हैं, और अपने बच्चों को यूपीएससी और नीट की कोचिंग दिलाकर लुटेरों और माफियाओं का गुलाम बनाने में गर्व महसूस करते हैं।
अंत में…
मुझे भिखारी कहने से पहले अपने भीतर झाँक लेना।
देखना, कहीं तुम खुद देश के भ्रष्टों और माफियाओं की नौकरी बजाकर, उनके तलवे चाटकर, या झूठे व्यापार का सहारा लेकर खुद को “काबिल” और “सम्मानित” तो नहीं मान रहे?
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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