पलायन क्यों आवश्यक है मेरे लिए ?

पलायन—एक ऐसा शब्द जिसे समाज अक्सर कायरता से जोड़ देता है। लोग मानते हैं कि जो अपने परिवेश से दूर जाता है, वह कमजोर होता है। लेकिन मेरे लिए, पलायन न तो कायरता है और न ही हार मानना, बल्कि यह आत्म-खोज और आंतरिक शांति का मार्ग है। यह मेरे जीवन की अनिवार्यता है, एक ऐसा निर्णय जो मेरी स्वतंत्रता और मानसिक शांति सुनिश्चित करता है। आइए समझते हैं कि मेरे लिए पलायन क्यों अपरिहार्य हो गया है।
मृत समाज से मुक्ति
जब मैं अपने चारों ओर देखता हूं, तो मुझे एक ऐसा समाज दिखाई देता है जो भ्रष्टाचार, माफियाओं और अवसरवादियों के अधीन हो चुका है। यह समाज एक निष्प्राण भीड़ में बदल चुका है—जो बिना विचार किए अपने शासकों की सेवा में लगी रहती है। इस वातावरण में सत्य, स्वतंत्रता और आत्मचिंतन के लिए कोई स्थान नहीं है। मुझे घुटन होती है, जैसे मैं किसी अंधेरी सुरंग में कैद हूं। इसीलिए, इस मृतप्राय समाज से पलायन मेरी आत्मा को जीवित रखने का एकमात्र उपाय है।
अर्थहीन जीवन की बेड़ियाँ
कुछ लोग कोल्हू के बैल की तरह जीवन जीते हैं—बस दिन-रात काम में लगे रहते हैं, बिना यह सोचे कि वे क्यों जी रहे हैं। उनके पास धन-संपत्ति है, लेकिन स्वयं के लिए एक क्षण भी नहीं। ऐसे लोगों के बीच रहकर मुझे भी उसी भागदौड़ में फंस जाने का भय है। मैं चाहता हूँ कि मेरा जीवन केवल अस्तित्व में रहने तक सीमित न हो, बल्कि उसमें गहराई और सार्थकता हो। इसलिए इस व्यर्थता से दूर जाना मेरे लिए आवश्यक है।
अप्रासंगिक संबंधों से मुक्ति
कुछ रिश्ते केवल औपचारिकता और दिखावे पर टिके होते हैं। उनके होने या न होने से जीवन में कोई वास्तविक परिवर्तन नहीं आता। ऐसे संबंधों को ढोना मेरे लिए व्यर्थ है। मैं सार्थकता और आत्मीयता चाहता हूँ, न कि केवल सामाजिक नियमों का पालन। पलायन इन खोखले रिश्तों से मुक्ति का माध्यम है।
शोर और ढोंग से दूरी
मुझे आंतरिक और बाहरी शोर से घृणा है—चाहे वह व्यर्थ की चर्चाएँ हों या धर्म के नाम पर किए जाने वाले दिखावे। जब समाज अन्याय और शोषण की नींव पर टिका हो, तब धर्म के नाम पर आस्था और भक्ति का प्रदर्शन मुझे ढोंग मात्र लगता है। यह एक नशे की तरह है, जो लोगों को वास्तविकता से दूर रखता है। इस पाखंड से दूर जाना ही मेरे लिए सही मार्ग है।
थोपी गई जिम्मेदारियों से स्वतंत्रता
मुझ पर अक्सर आरोप लगाए जाते हैं कि मैं समाज, परिवार और देश की जिम्मेदारियों से भाग रहा हूँ। लेकिन ये जिम्मेदारियाँ स्वाभाविक नहीं, बल्कि थोपी गई हैं। जब किसी ने मुझे जन्म देते समय मेरी सहमति नहीं ली, तो मुझ पर कोई अनुबंध भी लागू नहीं होता। जिन्होंने मेरा बचपन खराब किया, जो मेरे बुरे समय में कभी साथ नहीं थे, वे मुझसे उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि मैं उनकी अपेक्षाओं के अनुसार जीवन जिऊँ?
अगर अपने विचारों और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस समाज से दूर जाना पलायन है, तो हाँ, मैं पलायन कर रहा हूँ। गुलामी का राजसी जीवन जीने से अच्छा है कि मैं स्वतंत्र रहकर एक साधारण जीवन जिऊँ।
मेरी पहचान और आत्म-अनुभव
अब तक के जीवन अनुभवों ने मुझे सिखाया है कि यह दुनिया स्वार्थ से भरी हुई है। यहाँ हर कोई अपने लाभ के लिए रिश्ते निभाता है। जब दुनिया मेरे लिए पराई है, तो उसमें बने रहने का क्या औचित्य? मुझे वह स्थान चाहिए जहाँ मैं स्वयं को पुनः खोज सकूँ, जहाँ मैं वास्तविक शांति अनुभव कर सकूँ।
निष्कर्ष
पलायन मेरे लिए केवल भौतिक दूरी नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक मुक्ति का मार्ग है। यह उस समाज से दूरी है, जो मेरी स्वतंत्रता छीनना चाहता है; उन लोगों से अलगाव है, जो मेरे लिए अप्रासंगिक हैं; उस ढोंग से बचाव है, जो मेरे मन को अशांत करता है। यह थोपी गई जिम्मेदारियों से मुक्ति है और सबसे बढ़कर, मेरी आत्मा को जीवित रखने की एक कोशिश है। जब तक मैं इस पलायन के माध्यम से अपने सत्य और शांति की खोज कर सकता हूँ, तब तक यह मेरे लिए आवश्यक बना रहेगा।
~ विशुद्ध चैतन्य ✍️
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