उपयोगी प्राणी बनाम सहयोगी प्राणी: एक आत्मचिंतन

हम अक्सर समाज में प्रसिद्ध और समृद्ध लोगों की ओर आकर्षित होते हैं। हमें लगता है कि इन व्यक्तियों की संगति से हमारा जीवन भी समृद्ध और प्रसिद्ध हो सकता है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा होता है? क्या प्रसिद्ध व्यक्तियों की मित्रता या अमीरों का साथ हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है? यह लेख इसी विषय पर एक आत्मचिंतन है।
प्रसिद्ध व्यक्तियों की मित्रता और उसका प्रभाव
जीवन के विभिन्न मोड़ों पर, मुझे यह अनुभव हुआ कि प्रसिद्ध और अमीर लोगों की मित्रता मेरे किसी काम की नहीं। मैंने विश्वविख्यात लोगों के साथ कार्य किया, और उन व्यक्तियों के साथ भी जो अभी संघर्षरत थे। लेकिन समय के साथ यह समझ में आया कि प्रसिद्ध व्यक्ति केवल अपने लिए जीते हैं।
अगर हम क्रिकेटरों, नेताओं, अभिनेताओं को देखें, तो पाएंगे कि वे केवल अपने निजी स्वार्थ के लिए ही कार्य करते हैं। उनका लक्ष्य केवल अपनी प्रसिद्धि और संपत्ति बढ़ाना होता है। वे ऊँचे दामों में बिकते हैं और वही कहते तथा करते हैं, जो उन्हें खरीदने वाला मालिक चाहता है। उन्हें नैतिक-अनैतिक, सही-गलत से कोई फर्क नहीं पड़ता।
उपयोगी प्राणी बनाम सहयोगी प्राणी
जीवन में मेरे पास दो विकल्प थे – या तो एक उपयोगी प्राणी बनकर जिऊँ या फिर एक सहयोगी प्राणी बनकर। उपयोगी और सहयोगी होने में बहुत बड़ा अंतर है।
- उपयोगी प्राणी: उपयोगी प्राणी वह होता है, जिसे केवल उसकी उपयोगिता के आधार पर आंका जाता है। जैसे कोई पशु, जिसे चारा और पानी दिया जाता है ताकि वह उपयोगी बना रहे। उपयोगी प्राणी को सही-गलत, नैतिक-अनैतिक पर विचार करने का कोई अधिकार नहीं होता। उसे केवल वही करना होता है, जो उसका मालिक कहता है।
- सहयोगी प्राणी: सहयोगी प्राणी वह होता है, जो अपने विवेक और बुद्धि का उपयोग करता है। वह अपने निर्णय स्वयं लेता है और किसी के अधीन नहीं होता। वह समाज के लिए उपयोगी तो होता है, लेकिन किसी की कठपुतली नहीं बनता।
प्रसिद्ध लोगों की दुनिया से दूरी
मुझे वह दुनिया रास नहीं आई, जहाँ इंसान को केवल एक उपयोगी वस्तु समझा जाता है। जिन प्रसिद्ध और समृद्ध व्यक्तियों के साथ मैंने कार्य किया, वे आज भी अपने-अपने क्षेत्रों में सफल हैं, लेकिन मैंने उनसे दूरी बना ली। क्योंकि मैं उनकी दुनिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता था।
आज मेरे साथ कोई अमीर, समृद्ध, नेता, अभिनेता या अधिकारी नहीं है, क्योंकि मैं उनके किसी काम का नहीं और वे मेरे किसी काम के नहीं।
निष्कर्ष
हमारे समाज में सफलता को केवल प्रसिद्धि और संपत्ति से जोड़ा जाता है। लेकिन असली सफलता वह है, जहाँ हम अपनी आत्मा की शांति के साथ जी सकें। उपयोगी बनने की बजाय सहयोगी बनने का प्रयास करें, ताकि हम अपने विवेक और बुद्धि से सही निर्णय ले सकें।
इसलिए, मैंने उस दुनिया को छोड़ दिया जहाँ इंसान को मवेशी समझा जाता है और एक उपयोगी वस्तु के रूप में देखा जाता है। अब मैं अपने विवेक से जीवन जी रहा हूँ, बिना किसी स्वार्थ और बिना किसी लालच के। और यही मेरे जीवन की असली सफलता है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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