भ्रष्टाचार और पराधीन जनमानस की अंधभक्ति: एक गहन विश्लेषण

हम जिस समाज में जी रहे हैं, वहाँ लोगों को यह तक पता नहीं कि वे धार्मिक हैं या अधार्मिक, देशभक्त हैं या पार्टीभक्त। यह अज्ञानता मात्र संयोग नहीं, बल्कि एक सुव्यवस्थित षड्यंत्र का परिणाम है। हमारे सामने जो परोसा जाता है, हम उसे ही सत्य मान लेते हैं, बिना किसी तर्क या विश्लेषण के।
स्वतंत्रता केवल कागज़ों तक सीमित रह गई है। जनता आज भी उसी मानसिक गुलामी में जी रही है, जिसमें सदियों से जकड़ी हुई थी। पहले राजाओं के अधीन थी, फिर अंग्रेजों के, और अब आधुनिक माफियाओं के।

क्या आप जानते हैं ?
1- अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे धार्मिक हैं या अधार्मिक हैं !
2- अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि देशभक्त हैं या पार्टीभक्त !
3- अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे देश की सेवा कर रहे हैं, या माफियाओं की सेवा कर रहे हैं !
4- अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि देश के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं या देश के लुटेरों के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं !
5- अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि सेना और पुलिस का मुख्य कार्य माफियाओं के हितों के लिए कार्य करना है, ना कि जनता के हितों के लिए।
6- अधिकांश लोगों पता ही नहीं कि धर्म और जातियों के ठेकेदारों, गुरुओं का मुख्य कार्य जनता को वास्तविक समस्याओं से दूर ले जाकर, साम्प्रदायिक द्वेष और घृणा फैलाकर, आपसी लड़ाई में उलझाकर देश के लुटेरों और माफियाओं का रास्ता साफ करना होता है।
और ऐसा इसलिए है, क्योंकि जनता आज भी उतनी ही अशिक्षित है, जितना ऐतिहासिक परतंत्रकाल में थी। जनता पहले भी परतंत्र थी और आज भी परतंत्र है। स्वतन्त्रता केवल लुटेरों और माफियाओं को ही मिली जनता को अपने अनुसार लूटने और हाँकने की।
जनता उस मवेशी की तरह होती है, जिसका काम है बच्चे पैदा करना लुटेरों और माफियाओं की चाकरी और गुलामी करने के लिए, कोल्हू के लिए बैल पैदा करना, और अपनी कमाई का अधिकांश भाग उनकी तिजोरी में जमा करने के लिए। और यही जनता की नियति है।
विषय विस्तार…
1. “अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे धार्मिक हैं या अधार्मिक हैं!”
धर्म और जाति के नाम पर हमें वास्तविक मुद्दों से भटकाया जाता है। भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, शिक्षा की दुर्दशा, महंगाई—इन पर चर्चा नहीं होती, बल्कि हमें एक-दूसरे से लड़ने में व्यस्त कर दिया जाता है।
उदाहरण: भारत में कई लोग धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं, लेकिन वे यह नहीं जानते कि वे वास्तव में धार्मिक हैं या केवल सामाजिक दबाव में ऐसा कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, 2019 में प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research Center) के एक सर्वे में पाया गया कि भारत में 97% लोग खुद को किसी न किसी धर्म से जोड़ते हैं, लेकिन उनमें से कई लोग धार्मिक प्रथाओं को सामाजिक परंपरा के रूप में देखते हैं, न कि गहरे विश्वास के रूप में। कई लोग मंदिर, मस्जिद, या गुरुद्वारे जाते हैं क्योंकि “ऐसा करना चाहिए,” न कि इसलिए कि वे आध्यात्मिक रूप से उससे जुड़े हैं। यह दिखाता है कि लोगों को अपनी धार्मिक पहचान की गहरी समझ नहीं है।
2. “अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि देशभक्त हैं या पार्टीभक्त!”
हम एक ऐसे दौर में हैं जहाँ राष्ट्रभक्ति का अर्थ ‘सरकारभक्ति’ से जोड़ दिया गया है। अगर कोई सरकार की आलोचना करता है, तो उसे ‘देशद्रोही’ घोषित कर दिया जाता है। लेकिन क्या देश सरकार से बड़ा नहीं होता?
उदाहरण: भारत में चुनावी रैलियों और राजनीतिक समर्थन के दौरान यह देखा गया है कि लोग अक्सर किसी पार्टी के प्रति वफादारी दिखाते हैं, भले ही वह पार्टी देशहित के खिलाफ काम कर रही हो। 2014 और 2019 के आम चुनावों में, कई लोगों ने व्यक्तिगत नेताओं (जैसे नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी) के प्रति भक्ति दिखाई, न कि उनकी नीतियों या देश के लिए उनके विजन के आधार पर। यह “पार्टीभक्ति” का एक उदाहरण है, जहां लोग देशभक्ति को पार्टी के प्रति वफादारी से जोड़ देते हैं, बिना यह समझे कि दोनों अलग हो सकते हैं।
3. “अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि वे देश की सेवा कर रहे हैं, या माफियाओं की सेवा कर रहे हैं!”

उदाहरण: भारत में कोयला घोटाला (Coal Scam) एक बड़ा उदाहरण है। 2012 में CAG (Comptroller and Auditor General) की रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि कोयला खदानों के आवंटन में अनियमितताओं के कारण देश को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इस घोटाले में कई नौकरशाह और आम लोग शामिल थे, जो अनजाने में माफियाओं और भ्रष्ट नेताओं की मदद कर रहे थे, यह सोचकर कि वे देश की सेवा कर रहे हैं। कई सरकारी कर्मचारी और ठेकेदार इस प्रक्रिया में शामिल थे, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि वे वास्तव में भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहे हैं।
4. “अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि देश के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं या देश के लुटेरों के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं!”

कई सरकारी अधिकारी और कर्मचारी यह सोचकर भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाते हैं कि वे सिर्फ अपनी नौकरी कर रहे हैं। लेकिन क्या वे समझते हैं कि वे माफियाओं और देश के लुटेरों के लिए काम कर रहे हैं ?
उदाहरण: 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010) इसका एक और उदाहरण है। इस घोटाले में टेलीकॉम कंपनियों को सस्ते दामों पर स्पेक्ट्रम आवंटित किया गया, जिससे देश को 1.76 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कई लोग, जैसे कि टेलीकॉम कंपनियों के कर्मचारी और छोटे निवेशक, इस प्रक्रिया में शामिल थे, यह सोचकर कि वे देश की डिजिटल प्रगति में योगदान दे रहे हैं। लेकिन वास्तव में, वे भ्रष्ट नेताओं और कॉरपोरेट माफियाओं के हितों को बढ़ावा दे रहे थे।
5. “अधिकांश लोगों को पता ही नहीं कि सेना और पुलिस का मुख्य कार्य माफियाओं के हितों के लिए कार्य करना है, ना कि जनता के हितों के लिए।”

हाल ही में एक चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई कि पुलिस कल्याण कोष के 20 करोड़ रुपये का दुरुपयोग कर राजनीतिक चंदे के रूप में दिया गया। यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि हमारे सिस्टम का एक सामान्य पहलू बन चुका है। पुलिस और अन्य प्रशासनिक संस्थाएँ, जो मूल रूप से जनता की सुरक्षा के लिए बनाई गई थीं, आज उन्हीं के शोषण का माध्यम बन चुकी हैं।
उदाहरण: 1990 के दशक में मुंबई अंडरवर्ल्ड और पुलिस के गठजोड़ की अनेक घटनाएँ सामने आईं। दाऊद इब्राहिम और अन्य माफियाओं को पुलिस के भीतर से ही संरक्षण मिलता था। क्या यह जनता के हित में था? या फिर यह सत्ता और माफिया के गठबंधन का प्रमाण था?
6. “धर्म और जातियों के ठेकेदारों, गुरुओं का मुख्य कार्य जनता को वास्तविक समस्याओं से दूर ले जाकर, साम्प्रदायिक द्वेष और घृणा फैलाकर, आपसी लड़ाई में उलझाकर देश के लुटेरों और माफियाओं का रास्ता साफ करना होता है।”

हिन्दू राष्ट्र, इस्लामिक स्टेट, खालिस्तान, बोडोलेंड….. आदि के नाम पर उकसाने वाले भारतीय संविधान के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। लेकिन आप देखेंगे कि इनपर देशद्रोह का आरोप नहीं लगेगा। लेकिन जो इनका विरोध करेंगे, उन्हें देशद्रोही बड़े शान से कह दिया जाएगा।
ये लोग साम्प्रदायिक द्वेष और घृणा फैलाकर समाज में अराजकता और अशांति फैलाते हैं, लेकिन इनपर कोई कार्यवाही नहीं होती…. क्योंकि ये लोग माफियाओं के हितों के लिए कार्य कर रहे हैं।
उदाहरण: 2002 के गुजरात दंगों को इस संदर्भ में देखा जा सकता है। इन दंगों में धार्मिक नेताओं और संगठनों ने कथित तौर पर समुदायों के बीच नफरत फैलाई, जिसके परिणामस्वरूप हजारों लोग मारे गए। इस दौरान, कई बड़े कॉरपोरेट्स और माफिया समूहों ने अराजकता का फायदा उठाकर अपनी गतिविधियां बढ़ाईं, जैसे कि जमीन हड़पना और अवैध व्यापार। यह दिखाता है कि धार्मिक उन्माद फैलाकर जनता को वास्तविक समस्याओं (जैसे भ्रष्टाचार और आर्थिक असमानता) से दूर रखा गया, जिससे लुटेरों को फायदा हुआ।
और हाँ प्रमाण मत मांगियेगा ! क्योंकि अंधभक्तों के किसी काम का नहीं होता प्रमाण। वे पैदा ही हुए हैं भक्ति और अंधभक्ति करने के लिए। उन्हें प्रमाण दिखाना बिलकुल वैसा ही है, जैसे जन्मजात अंधों को इंद्रधनुष #rainbow दिखाना।
~ विशुद्ध चैतन्य
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