शिक्षा का उद्देश्य नौकरी नहीं, आत्मनिर्भरता है

आज हम एक ऐसे दौर में जी रहे हैं जहाँ शिक्षा को केवल डिग्री, नौकरी और तनख्वाह से जोड़कर देखा जाता है। बचपन से ही यह बात हमारे मन में बैठा दी जाती है कि अच्छे नंबर लाओगे, तो अच्छी नौकरी मिलेगी, और वही तुम्हारी सफलता होगी। परंतु क्या शिक्षा का यही उद्देश्य है?
शिक्षा का वास्तविक स्वरूप यह नहीं है। वह तो आत्मबोध का माध्यम है, आत्मनिर्भरता की कुंजी है और जीवन को अपने अनुसार गढ़ने की स्वतंत्रता का नाम है।
“आपो दीपो भव:” — स्वयं का प्रकाश स्वयं बनो।
गौतम बुद्ध की यह वाणी न केवल एक दार्शनिक सिद्धांत है, बल्कि एक जीवन-दर्शन है, जिसे यदि आत्मसात कर लिया जाए तो जीवन के हर संकट का समाधान मिल सकता है।
चेन झाओ: जिसने अपनी कला से पिता का 23 करोड़ का कर्ज चुकाया
चीन के हुबेई प्रांत के वुहान शहर में रहने वाले 31 वर्षीय चेन झाओ आज लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन चुके हैं। जब उनके परिवार पर 20 मिलियन युआन (लगभग 23 करोड़ रुपये) का कर्ज चढ़ा, तब कोई और होता तो हिम्मत हार जाता। परंतु चेन ने अपने भीतर झाँका, अपने हाथों की कला को पहचाना — पारंपरिक चीनी कैलिग्राफी।
उन्होंने अपने इसी हुनर को साधा, संजोया और फिर वही उनके जीवन की दिशा बन गया। सात वर्षों तक अथक परिश्रम किया — न केवल खुद कैलिग्राफी की, बल्कि उसे सिखाया, प्रदर्शनियाँ लगाईं और कला को एक व्यवसाय बना दिया। परिणामस्वरूप, उन्होंने अपने पिता का पूरा कर्ज चुका दिया।
यह आत्मनिर्भरता है। यह शिक्षा का सही उपयोग है।
ऐसे और उदाहरण जो प्रेरणा बन गए
1. दशरथ मांझी (बिहार, भारत)
एक साधारण मजदूर, जिसने प्रेम और संकल्प के बल पर अकेले ही एक पहाड़ काटकर रास्ता बना दिया। न कोई इंजीनियरिंग की डिग्री, न कोई संसाधन — केवल जुनून।
2. जादव “जंगल” पायेंग (असम, भारत)
एक व्यक्ति, जिसने अकेले अपने श्रम से 550 हेक्टेयर में जंगल उगा दिया। उनकी शिक्षा प्रकृति से मिली, और उनका स्कूल था — अनुभव।
3. तांग जियान (चीन)
एक व्यवसायी जो दिवालिया हो गया और फिर सॉसेज बेचकर 52 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने में जुट गया। उन्होंने झुकना नहीं सीखा — यह आत्मबल शिक्षा का ही रूप है।
शिक्षा: आत्मा का विस्तार, डिग्री का नहीं
इन सब उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि अपने भीतर की शक्ति को पहचानने का माध्यम है। आपमें संगीत हो सकता है, लेखन हो सकता है, शिल्प हो सकता है — वह सब कुछ जो आपको जीवित महसूस कराता है, वही आपकी आत्मा की भाषा है।
बुद्ध की वह वाणी यहाँ प्रतिध्वनित होती है —
“स्वयं को जानो, स्वयं का प्रकाश बनो।”
अब बारी आपकी है
यदि आप नौकरी न मिलने से हताश हैं, डिग्रियों के बोझ से थक चुके हैं, तो ठहरिए। अपने भीतर झाँकिए। चेन झाओ ने अपनी कला से अपने पिता का कर्ज चुकाया। आप भी कर सकते हैं — अपने हुनर से, अपने हौसले से, अपने आत्मबल से।
आपो दीपो भवः —
अपना दीया स्वयं जलाइए। फिर देखिए, यह संसार भी आपकी रौशनी में नहाने को उत्सुक मिलेगा।
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