बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए : एक चेतावनी

जब हम अपने बच्चों को बड़ा करते हैं, तो हमें केवल उनके भौतिक सुख-सुविधाओं की चिंता नहीं करनी चाहिए, बल्कि उनके मानसिक, नैतिक और आत्मिक विकास पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि हम उन्हें ऐसे वातावरण में पलने देते हैं जहाँ प्यार, अपनत्व और परस्पर सहयोगिता से अधिक महत्व पैसा, पद, झूठी प्रतिष्ठा और आडंबर को दिया जाता है, तो हम अनजाने में उनके स्वाभाविक विकास को बाधित कर रहे होते हैं।
बचपन संवेदनशील होता है। इस समय जो संस्कार, धारणाएँ और मूल्य बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क में बोए जाते हैं, वे जीवनभर उनका मार्गदर्शन करते हैं। यदि इस उम्र में उन्हें यह सिखाया जाए कि सफलता केवल धन, पद और दिखावे से मापी जाती है, तो वे बड़े होकर भी उसी भ्रामक परिभाषा को ढोते रहते हैं।
ध्यान रखें, बच्चों को ऐसे परिवार और वातावरण से भी दूर रखना चाहिए जहाँ जातिवाद, सांप्रदायिक द्वेष और घृणा की विषैली लहरें फैली हुई हों। जहाँ राजनेताओं, धर्मगुरुओं और बाबाओं के अंधभक्तों का वर्चस्व हो, वहाँ बच्चों का निष्पाप हृदय भी विषाक्त होने से नहीं बच सकता।
जो बच्चे बचपन से ही पैसे, जाति और संप्रदाय के नाम पर भेदभाव और वैमनस्यता की शिक्षा पाते हैं, वे बड़े होकर भी इन ज़ंजीरों से मुक्त नहीं हो पाते। केवल कुछ बिरले आत्माएं ही होती हैं जो इस बंधन को तोड़ पाती हैं और बुद्ध, नानक, कबीर, रहीम, यीशु या ओशो जैसे स्वतंत्र चेतन व्यक्तित्व बन पाते हैं।
इतिहास गवाह है कि दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं, उन्होंने अन्याय, अधर्म, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध विद्रोह किया। वे उस समाज, उस शासन और उस परंपरा के विरुद्ध खड़े हुए जो मानवता का गला घोंट रही थी।
आज चाहे लोग इस्लाम को उसके ग्रंथों में लिखे कुछ कट्टर आदेशों के कारण कोसते हों, किंतु यह भी सत्य है कि पैगंबर मोहम्मद साहब ने भी अपने समय के सामाजिक अन्याय और कुरीतियों के विरुद्ध विद्रोह करते हुए एक नए पंथ ‘इस्लाम’ की स्थापना की थी। दुर्भाग्यवश समय के साथ समाज ने केवल मुखौटे बदल लिए, वस्त्र बदल लिए, लेकिन भीतरी विकृतियाँ यथावत रहीं।
बचपन में बोई गई धारणाओं से मुक्त होना कितना कठिन होता है, इसे हम आज के उच्च पदस्थ अधिकारियों, नेताओं और धार्मिक ठेकेदारों के व्यवहार को देखकर समझ सकते हैं। चाहे वे आईएएस हों, आईपीएस हों या मंत्रीगण — यदि बचपन में उनके भीतर जातिवाद, सांप्रदायिकता और लालच के बीज बोए गए हों, तो वे बड़े होकर भी उन्हीं विकृत मानसिकताओं के वाहक बन जाते हैं।
आतंक का सही अर्थ
प्रश्न उठता है कि आतंक क्या है? क्या केवल अत्याधुनिक हथियारों से हत्या करने वाले ही आतंकी होते हैं?
नहीं।
आतंक (Terror) का अर्थ है ऐसी स्थिति या कार्य जो लोगों में भय/दहशत या असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता हो। यह हिंसा, धमकी, या मनोवैज्ञानिक दबाव के माध्यम से व्यक्तियों, समूहों या समाज को नियंत्रित करने या प्रभावित करने का प्रयास है। आतंक अक्सर राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक या वैचारिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जैसे आतंकवाद (terrorism)। यह न केवल शारीरिक नुकसान पहुंचाता है, बल्कि मानसिक और सामाजिक स्थिरता को भी कमजोर करता है।
उदाहरण: बम विस्फोट, अपहरण, या हिंसक हमले जो लोगों में डर पैदा करते हैं।
पुलिस प्रशासन के उदाहरण से इसे सहजता से समझा जा सकता है — जो पुलिस अधिकारी बड़े पूंजीपतियों और अपराधियों के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, लेकिन गरीब रेहड़ी वालों, मजदूरों और छोटे दुकानदारों पर दादागिरी दिखाते हैं, वे भी आतंक का ही एक रूप हैं। रिश्वत लेकर अपराधियों को छोड़ देना और निर्दोषों को परेशान करना, यह भी समाज को भयभीत करने का एक तरीका है।
भयभीत समाज वही करता है, जो सत्ता के लुटेरे चाहते हैं।
आतंकी किस प्रकार के होते हैं?
मुख्यतः आतंकी तीन प्रकार के होते हैं:
१. धार्मिक साम्प्रदायिक आतंकी:
वे जो धर्म के नाम पर भय फैलाते हैं। उनके पास हथियारबंद गुंडों की सेनाएँ होती हैं, जो करणी सेना, राम सेना, हिंदू सेना, बजरंग दल आदि के रूप में समाज में भय का वातावरण बनाती हैं।
२. जातिवादी आतंकी:
वे जो अपने से नीची जाति वालों का शोषण और अपमान करते हैं। छुआछूत, सामाजिक बहिष्कार, शैक्षिक अवसरों से वंचित करना, विवाह के अवसरों पर अपमानित करना, इनका सामान्य व्यवहार होता है।
३. राजनीतिक आतंकी:
वे जो राजनीतिक विरोधियों को डराते, धमकाते और यहाँ तक कि उनकी हत्या तक करने से पीछे नहीं हटते। आये दिन समाचार पत्रों में हम इनकी हिंसक गतिविधियों की खबरें पढ़ते रहते हैं।
इसलिए यह समझना आवश्यक है कि आतंकवाद केवल सीमाओं के पार से नहीं आता। आतंक हमारे बीच पलता है — समाज में, धर्म में, राजनीति में।
निष्कर्ष
बच्चों को हिंसा, द्वेष, भेदभाव और लालच से दूर रखें। उन्हें प्रेम, करुणा, समानता और स्वतंत्र चिंतन का संस्कार दें। क्योंकि भविष्य उन्हीं हाथों में सुरक्षित रहेगा, जिनमें मानवता के बीज बोए गए हैं।
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