पेगासस से आतंकित और स्तब्ध विपक्ष

जिस देश में सरकार ही लोकतंत्र की परिभाषा बन बैठी हो, वहाँ विपक्ष एक ‘वैकल्पिक विकल्प’ मात्र नहीं, बल्कि एक असहज स्मृति बन चुका है। किसी पुराने संविधान के पृष्ठों में दबा हुआ वह विचार, जो कभी जीवित था — अब तकनीक और भय की संयुक्त प्रयोगशाला में निष्क्रिय पड़ा सड़ रहा है।
अब कुछ लोग पूछते हैं:
“विपक्ष इतना कमजोर क्यों हो गया ?”
“विपक्ष महत्वपूर्ण मुद्दे क्यों नहीं उठाता ?”
“विपक्ष में आत्मविश्वास की इतनी कमी क्यों है ?”
“क्या विपक्ष वाकई में है भी, या हम उसकी स्मृति में अपने वोट डालते हैं ?”
प्रश्न यह नहीं है कि विपक्ष इतना कमजोर क्यों है — प्रश्न यह है कि वह जीवित क्यों प्रतीत होता है ?
इन प्रश्नों का उत्तर एक शब्द में समेटा जा सकता है — पेगासस।
पेगासस: आधुनिक युग का ‘त्रिनेत्र’
पेगासस कोई मामूली जासूसी सॉफ्टवेयर नहीं है; यह लोकतंत्र की आँख में लगाया गया वह ‘अदृश्य लेंस’ है, जो विचारों के गर्भ में ही उन्हें मृत घोषित कर देता है। यह वह अस्त्र है जो किसी भी संवाद को ‘पूर्व-अभिसूचित’ कर देता है, किसी भी रणनीति को ‘पूर्व-अपमानित’।
किसी नेता ने क्या कहा, यह अब महत्त्वपूर्ण नहीं। वह क्या कहने वाला है — यह पहले ही ज्ञात है।
अब कल्पना कीजिए, आप एक कमरे में अपने ही विचारों से बात कर रहे हों — और वो विचार आपको जवाब देने से पहले ही सरकार को रिपोर्ट कर दें। ऐसी परिस्थिति में क्या विपक्ष विचार करेगा या सिर्फ प्रतिक्रिया?
विपक्ष की विफलता: आत्मघात या नियोजित हत्या ?
हम मान सकते हैं कि पेगासस ने विपक्ष की रीढ़ पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी। लेकिन क्या विपक्ष कभी रीढ़विहीन नहीं था?
- जब रणनीति को सोचने से पहले ही निगरानी मिल जाए, तब क्रांति की कल्पना भी अपराध बन जाती है।
- जब आत्मविश्वास किसी साइबर खिड़की से बाहर झाँकते ही अपहृत हो जाए, तो नेतृत्व सिर झुकाकर ही बोलेगा।
- जब जनता से जुड़ाव का हर पुल तकनीकी भाषा की नदी में बह जाए, तो जनसंवाद महज़ शब्दों की शवयात्रा बन जाता है।
लेकिन… क्या केवल पेगासस ही दोषी है?
नहीं।
पेगासस तो महज़ एक आधुनिक हथियार है।
हत्या अगर चाकू से हुई हो, तो दोष केवल चाकू का नहीं होता।
- विपक्ष की अपनी कलहें, अहं की भट्टियाँ, और सिद्धांतहीन गठबंधन भी उसकी मृत्यु के प्रमुख शिल्पकार हैं।
- जनता के मुद्दों को छोड़कर विमर्श को तकनीकी गलियों में घुमाते रहना भी आत्महत्या के ही समकक्ष है।
- और सबसे महत्त्वपूर्ण — आत्मालोचना का पूर्ण अभाव।
आगे की राह: क्या विपक्ष पुनर्जन्म ले सकता है ?
यदि विपक्ष अब भी जीवित होने का दावा करता है, तो उसे तीन मौलिक शस्त्र उठाने होंगे:
- तकनीकी तपस्या:
नेता यदि सन्यासी न बन सकें, तो कम-से-कम अपने मोबाइल को मौनव्रती बना लें। एन्क्रिप्शन, डिजिटल जागरूकता और तकनीकी संयम आज के राजनीतिक साधु की पहचान है। - जनभावना से सीधा संवाद:
मुद्दों को जनता की भाषा में बोलना पड़ेगा। पेगासस को “आपकी निजता पर हमला” के रूप में समझाना होगा, न कि “स्पायवेयर स्कैंडल” के रूप में। - एकजुटता नहीं, एकदृष्टि:
विचारधाराओं की विविधता में भी एक साझा दृष्टिकोण विकसित करना होगा — “लोकतंत्र की रक्षा” का।
निष्कर्ष: लोकतंत्र एक प्रयोगशाला नहीं, एक प्राणतत्व है
पेगासस ने हमें यह सिखाया है कि अब युद्ध तलवारों से नहीं, सूचनाओं और संदेहों से लड़े जाते हैं। यह केवल विपक्ष की नहीं, हमारी भी परीक्षा है — कि हम क्या चाहते हैं:
एक ‘चुप्प लोकतंत्र’ — जहाँ हर आवाज रेकॉर्ड हो,
या एक ‘जागृत लोकतंत्र’ — जहाँ हर आवाज़ सुनी जाए?
निर्णय आपका है। लेकिन याद रखिए —
जो चुप है, वह अगला शिकार है।
~ विशुद्ध चैतन्य
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