सरासर झूठ है: “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना”

सड़क पर एक मासूम बच्ची को हरे रंग का एक झण्डा पड़ा मिला। धर्मभीरु और भावनाशील मन के साथ उसने झुककर झण्डा उठाया, यह सोचकर कि यह इस्लामिक झण्डा है — उसके अपने मजहब का प्रतीक। पर जैसे ही उसने उसे फैलाकर देखा, वह पाकिस्तानी झण्डा निकला। उस बच्ची ने उसे तुरंत सड़क किनारे रख दिया।
यह एक सहज मानवीय क्रिया थी — अपने धर्म प्रतीक के प्रति सम्मान और एक शत्रु राष्ट्र के प्रतीक से दूरी।
लेकिन कहानी यहीं नहीं रुकी।
किसी शातिर व्यक्ति ने इस पूरी घटना का वीडियो बना लिया और वायरल कर दिया। नतीजा यह हुआ कि उस बच्ची को स्कूल से निष्कासित कर दिया गया।
किस बात की सजा मिली उसे ?
झण्डा उठाने की, या फेंकने की ?
यह वही समाज है जहाँ बच्चों को बचपन से सिखाया जाता है कि पाकिस्तान हमारा दुश्मन है, चीन हमारा दुश्मन है उनके झण्डे से नफरत करना देशभक्ति है। लेकिन जब वही नफरत एक मासूम के व्यवहार में दिखती है, तो उसे सज़ा मिलती है।
क्या यह दोगलापन नहीं है?
क्या यही ‘राष्ट्रप्रेम’ है — जो बच्चों के मन में नफ़रत का बीज बोता है और फिर उन्हीं नफ़रत के फलों को काटने से मुंह मोड़ लेता है?
क्या ये वही देश है जहाँ पाँच सितारा होटलों, दूतावासों और विश्वविद्यालयों में विभिन्न देशों के झंडे सौहार्द और सहयोग का प्रतीक बनकर लहराते हैं?
मैंने एक पाकिस्तानी यूट्यूबर का वीडियो देखा था — वह राह चलते लोगों को भारतीय तिरंगा पकड़ाकर कहती है, “इसे फाड़ दो, पाँच हज़ार रुपये दूँगी।” लेकिन अधिकांश पाकिस्तानी नागरिक तैयार नहीं हुए।
और इधर हम हैं — जहां स्कूल मासूम बच्चियों को नफरत की पाठशाला में दाखिला दे रहे हैं।
हमारे नेता जब पाकिस्तान जाते हैं तो बिरयानी खाते हैं, हमारे व्यापारी उनके साथ व्यापार करते हैं, लेकिन आम नागरिक को नफ़रत करने का आदेश दिया जाता है।
हमारे मोबाइल तक वहीं से आते हैं, लेकिन फिर भी हमें बताया जाता है — ‘पड़ोसी देश से नफरत करो।’
और यही नफ़रत जब बच्चों के मन में गहरे उतर जाती है, तब वे बड़े होकर नफरत के व्यापारियों के लिए ईंधन बन जाते हैं — दंगे, हिंसा, बलात्कार और हत्या तक करने को तैयार रहते हैं।
“सर्वधर्म समभाव” और “वसुधैव कुटुम्बकम्” जैसे आदर्श केवल किताबों तक सीमित रह जाते हैं।
इसी बीच नैनीताल की एक और भयावह घटना सामने आती है — जहाँ एक बलात्कार की घटना के विरोध में निकली हिंदुओं की भीड़ ने दुकानों में तोड़-फोड़ शुरू कर दिया, दुकानदारों को पीटा और पूरे शहर में हिंसा और आरजकता फैलाई। लेकिन जब एक साहसी युवती #ShailaNegi ने इस हिंसा और गुंडागर्दी का विरोध किया, तो उसी भीड़ ने उसे बलात्कार की धमकी दी।
एक भीड़ रेप के खिलाफ प्रदर्शन करने निकली और दुकानों को तोड़ना शुरू कर दिया. दुकानदारों को भी पीटा. नैनीताल की फिज़ा में सांप्रदायिक नफरत उमड़ पड़ी #ShailaNegi ने बिना डरे खुलकर इसका विरोध किया. अब बलात्कार का विरोध कर रही भीड़ हिंदू बहन शैली को बलात्कार की धमकी दे रही है. pic.twitter.com/z7MC8PlrrG
— Girijesh Vashistha (@Girijeshv) May 2, 2025
अब आप सोचिए — क्या यह भीड़ वास्तव में न्याय के लिए सड़कों पर निकली थी या केवल नफरत और उत्पीड़न का प्रदर्शन करने के लिए?
जब मैं यह सब देखता हूँ और फिर सुनता हूँ — “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर करना…” — तो सोच में पड़ जाता हूँ कि हमारा समाज इतना मक्कार, इतना दोगला और इतना पाखंडी कैसे हो सकता है?
बच्चों के कोरे मस्तिष्क में मजहब, जाति, राष्ट्र और रंग के नाम पर ज़हर घोल दो, फिर कहो — हमारा धर्म तो भाईचारे की शिक्षा देता है!
क्या यही है हमारा ‘सभ्य समाज’?
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