गुरु कैसा हो? – एक आत्ममंथन

आध्यात्मिक गुरु यदि बनाना हो, तो ऐसा व्यक्ति चुनो जिसने जीवन के चरम अनुभव किए हों—या तो सफलता के शिखर को छुआ हो, या फिर असफलताओं की गहराइयों में डूबा हो। लेकिन जो जीवन के अधर में लटका रहा हो, जिसकी ज़िंदगी में कोई विशेष उतार-चढ़ाव न आया हो—ऐसे व्यक्ति को गुरु बनाना, केवल आध्यात्मिकता का उपहास उड़ाना है।
मेरा व्यक्तिगत अनुभव और चिंतन कहता है कि इन दोनों में भी वही गुरु श्रेष्ठ है, जिसने जीवन में भरपूर पाप किए हों, भरपूर ग़लतियाँ की हों। क्योंकि जिसने ग़लतियाँ नहीं कीं, पाप नहीं किए—वह जीवन का यथार्थ आपको नहीं समझा सकता। वह केवल किताबी ज्ञान की पुनरावृत्ति करेगा।
मुझे आज भी याद है, वर्षों पहले देखी जैकी चेन की एक फिल्म—Drunken Master (1978)। उसमें नायक एक शराबी को अपना मार्शल आर्ट गुरु बना लेता है। विचार कीजिए, क्या उसे कोई सात्विक, संयमी गुरु नहीं मिल सकता था?
परंतु यथार्थ यह है कि सात्विक और पुण्यात्मा गुरु प्रायः किताबी ज्ञान ही दे सकते हैं। वे अपने अनुभव नहीं दे सकते, क्योंकि उन्होंने जीवन को किताबों की सीमाओं से बाहर देखा ही नहीं। जबकि जो व्यक्ति बुराई की दुनिया से लौटकर अच्छाई की ओर आया है, वह आपको जीवन का वह दृष्टिकोण दे सकता है, जो एक सात्विक गुरु कभी नहीं दे सकता।
आप स्कूल-कॉलेज में जो कुछ भी सीखते हैं, वह जीवन दर्शन नहीं होता—वह केवल दिमागी कसरत होती है। उससे आप एक “अच्छे नस्ल के नौकर” बन सकते हैं। डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस या आईपीएस बन जाने से आप स्वतंत्र नहीं हो जाते—आप तब भी किसी न किसी सत्ता के अधीन होते हैं। विज्ञान में कितनी भी ऊँचाई प्राप्त कर लो, यदि सोचने की स्वतंत्रता न हो, तो वैज्ञानिक भी एक मानसिक गुलाम ही होता है।
स्कूल-कॉलेज आपको आत्मनिर्भर नहीं बनाते—वे आपको व्यवस्था पर निर्भर रहना सिखाते हैं। यदि आप किसान भी बन जाएँ, तो भी खाद, बीज, पानी और बाजार के लिए सरकार या कंपनियों के आगे झुकना ही पड़ेगा।
लेकिन यदि आपके जीवन में कोई सच्चा आध्यात्मिक गुरु आ जाए—तो वह आपको झकझोर कर होश में लाएगा। वह कहेगा, “मैंने जो गलतियाँ कीं, वे तुम मत दोहराओ। मैं जिन राहों से गुज़रा, वह तुम्हें नहीं अपनानी।” वह आपको बताएगा कि किस तरह इस गुलामी से मुक्ति पाई जा सकती है।

अब इस तस्वीर को देखिए—एक अफगानी किसान हल चला रहा है। आज के तथाकथित सभ्य समाज को यह हास्यास्पद लग सकता है, लेकिन कभी यही लोग अपने अस्तित्व और खेतों की रक्षा के लिए हथियार रखते थे। तब पढ़े-लिखे नहीं थे, पर स्वतंत्र थे।
आज भी लुटेरे हैं—पर वे अब सूट-बूट में आते हैं, नीतियाँ और कानून बनाकर आपकी ज़मीन, मेहनत, और भविष्य लूट रहे हैं। जनता क्या कर रही है? थाली बजा रही है, सोशल मीडिया पर ट्रेंड चला रही है, और राजनैतिक जोकरों को मंच दे रही है।
क्यों?
क्योंकि अब समाज से आध्यात्मिक गुरु लुप्त हो रहे हैं। उनके स्थान पर आ गए हैं—लव गुरु, मैनेजमेंट गुरु, मार्केटिंग गुरु, मोटिवेशनल गुरु, जातिवादी गुरु, सांप्रदायिक गुरु, और यहाँ तक कि मोबलिंचिंग और दंगा-फसाद गुरु!
याद रखिए—आध्यात्मिक गुरु और धार्मिक गुरु में बड़ा अंतर होता है।
- धार्मिक गुरु आपको भजन, कीर्तन, पूजा-पाठ, रोजा-नमाज़, व्रत-उपवास सिखाएगा—और अंततः ईश्वर व सरकार पर निर्भर रहना सिखाएगा।
- जबकि आध्यात्मिक गुरु आपको आपसे मिलवाएगा, आपके भीतर के सच से रुबरु कराएगा, आपको आत्मनिर्भर बनना सिखाएगा, और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएगा।
धार्मिक गुरु कहेगा—“अच्छे नंबर लाओ, अच्छी नौकरी पाओ, और एक सभ्य, आज्ञाकारी नौकर बन जाओ।”
लेकिन आध्यात्मिक गुरु कहेगा—“जागो, सोचो, समझो और स्वतंत्र बनो।”
इसलिए गुरु चुनते समय यह तय कर लो—तुम्हारा लक्ष्य क्या है?
अगर गुरु मिल जाए, तो उसे केवल एक “टीचर” या “ट्यूटर” समझने की भूल मत करना।
✍️ ~ विशुद्ध चैतन्य
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