मैं किसी दड़बे का नहीं हूँ — मैं सनातनधर्मी हूँ

जब भी मैं किसी दड़बे की आलोचना करता हूँ, उस दड़बे के अनुयायी तुरंत मुझे दुश्मन खेमे का घोषित कर देते हैं।
यदि मैंने हिन्दुत्व के नाम पर किए जा रहे उत्पातों के विरुद्ध लिखा, तो मुझे पाकिस्तानी मुल्ला घोषित कर दिया जाता है।
यदि मैंने इस्लामिक आतंकवाद की आलोचना की, तो मुझे संघी, बजरंगी और कट्टर हिन्दू कहा जाने लगता है।
यदि मैंने कांग्रेस की कारगुजारियों पर उंगली उठाई, तो लोग मुझे भाजपाई समझ लेते हैं।
और यदि भाजपा की लूट और राजनीति पर सवाल उठाया, तो मुझे कोंग्रेसी या अर्बन नक्सल घोषित कर दिया जाता है।
लेकिन सच तो यह है कि मैं केवल अधर्म और अधर्मियों के विरुद्ध हूँ।
मैं केवल उन लोगों के विरुद्ध हूँ जो
लूटते हैं,
भ्रष्टाचार करते हैं,
दंगे करवाते हैं,
और आतंक फैलाते हैं —
चाहे वे किसी भी धर्म, पार्टी, संगठन या झंडे के तले क्यों न छिपे हों।
हर दड़बे का एक ही तर्क होता है —
“हमारे आतंकी, दंगाई, रिश्वतखोर मासूम हैं… हालातों के मारे हैं… भटक गए हैं… उन्हें मत कोसो, दूसरों को कोसो!”
और जब मैं इस ढकोसले को तोड़ता हूँ, तब
हर दड़बे से गालियाँ मिलती हैं,
हर दड़बे में मेरे लिए दुश्मन तैयार मिलते हैं,
हर दड़बे में कोई न कोई मेरे लेखों से आहत होकर
मेरे पेज को रिपोर्ट करता है,
मेरे खिलाफ अभियान चलाता है।
और यही मेरे लेखों की सार्थकता है।
यही सिद्ध करता है कि मैं किसी गिरोह, किसी झंडे, किसी दड़बे का गुलाम नहीं हूँ।
मैं सनातनधर्मी हूँ —
न कि धर्म के नाम पर दुकान चलाने वाले दड़बों का भोंपू।
यदि सचमुच आपका धर्म, आपका संगठन, आपका दड़बा
बैर नहीं सिखाता,
दंगा नहीं सिखाता,
बलात्कार, गाली-गलौज, हिंसा नहीं सिखाता —
तो मुझे उपदेश देने की बजाय अपने लोगों को समझाइए।
मुझे पाठ पढ़ाने की बजाय अपने नेताओं, अपने धर्मगुरुओं, अपने सोशल मीडिया सेनाओं को समझाइए कि
धर्म का नाम लेकर हिंसा, बलात्कार, और नफ़रत फैलाना अधर्म है।
और अंत में बस यही कहूँगा —
मैं किसी दड़बे का नहीं हूँ,
ना हिन्दू कट्टरवादियों का,
ना इस्लामिक उन्मादियों का,
ना किसी राजनीतिक गिरोह का।
मैं उस मूलभूत चेतना के पक्ष में हूँ
जो निजता, स्वतंत्रता और मौलिकता की पक्षधर है।
मैं उस सनातन धर्म के पक्ष में हूँ
जो सत्य, अहिंसा, करुणा और विवेक पर आधारित है —
ना कि लुच्चों, लफंगों, दंगाइयों और माफियाओं के बनाए ब्रांडेड धर्मों पर।
~ विशुद्ध चैतन्य
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