छोटे बच्चों को मोबाइल फोन क्यों नहीं देना चाहिए ? – एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण

आज के डिजिटल युग में मोबाइल फोन जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं। माता-पिता अपने कार्यों में व्यस्त रहते हैं और अक्सर बच्चों को चुप कराने या व्यस्त रखने के लिए मोबाइल फोन थमा देते हैं। यह एक आसान समाधान लगता है, लेकिन क्या यह बच्चों के मानसिक, शारीरिक और सामाजिक विकास के लिए सुरक्षित है? आइए, इस पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विचार करें।
1. मस्तिष्क के विकास पर प्रभाव
शोध बताते हैं कि 0 से 6 वर्ष की आयु तक बच्चों का मस्तिष्क सबसे तेजी से विकसित होता है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (AAP) के अनुसार, स्क्रीन के अत्यधिक संपर्क से बच्चों में attention span कम होता है, यानी वे लंबे समय तक किसी एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
न्यूरोसाइंटिफिक शोध बताते हैं कि मोबाइल की रंग-बिरंगी स्क्रीन और त्वरित प्रतिक्रियाएं डोपामिन रिलीज़ को बढ़ाती हैं, जिससे बच्चा बार-बार स्क्रीन की ओर आकर्षित होता है। यह आदत बाद में डिजिटल लत (Digital Addiction) में बदल सकती है।
2. नींद और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर
मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी (blue light) मेलाटोनिन हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जिससे नींद की गुणवत्ता पर असर पड़ता है। बच्चों में नींद की कमी से चिड़चिड़ापन, थकावट और सीखने की क्षमता में गिरावट देखी गई है।
इसके अलावा, लंबे समय तक मोबाइल पर झुके रहने से गर्दन, आंखों और रीढ़ पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आंखों में सूखापन, धुंधलापन और शुरुआती उम्र में चश्मा लगने की संभावना बढ़ जाती है।
3. सामाजिक और भावनात्मक विकास में रुकावट
बचपन में बच्चों का सामाजिक विकास संवाद, स्पर्श, हावभाव और सामूहिक गतिविधियों से होता है। जब बच्चा अधिक समय मोबाइल के साथ बिताता है, तो वह दूसरों से बातचीत, सहानुभूति और सामाजिक कौशल सीखने के अवसर खो देता है।
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, दो साल से छोटे बच्चों को स्क्रीन का कोई संपर्क नहीं होना चाहिए, और 2-5 वर्ष के बच्चों को दिन में अधिकतम एक घंटे तक ही स्क्रीन का उपयोग करना चाहिए — वह भी अभिभावक की निगरानी में।
4. भाषा और अभिव्यक्ति पर प्रभाव
मोबाइल पर बच्चे जो वीडियो देखते हैं, वे अक्सर गैर-शैक्षणिक, अत्यधिक उत्तेजक और त्वरित गति वाले होते हैं। इससे भाषा सीखने की प्राकृतिक प्रक्रिया बाधित होती है। बच्चे स्वयं बोलने या प्रश्न पूछने के बजाय केवल passive consumer बन जाते हैं।
5. व्यवहारिक समस्याएं और चिड़चिड़ापन
2019 में किए गए एक कनाडाई शोध में पाया गया कि जिन बच्चों को दिन में 2 घंटे से अधिक स्क्रीन टाइम दिया गया, उनमें गुस्सा, ध्यान भटकाव, आक्रामकता और सामाजिक कटाव जैसी समस्याएं सामान्य बच्चों की तुलना में अधिक पाई गईं।
6. मोबाइल रेडियेशन का प्रभाव – मस्तिष्क और हृदय के लिए अदृश्य खतरा
मोबाइल फोन से निरंतर निकलने वाली रेडियोफ्रीक्वेंसी रेडिएशन (Radio-frequency Radiation – R FR) मानव शरीर के लिए विशेषकर बच्चों के लिए अधिक संवेदनशील होता है। बच्चों की खोपड़ी पतली होती है और उनका मस्तिष्क विकसित हो रहा होता है, जिससे यह विकिरण गहराई तक प्रवेश कर सकता है।
वैज्ञानिक निष्कर्ष:
- नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम (NTP), यूएसए द्वारा किए गए एक दीर्घकालिक पशु अध्ययन में यह पाया गया कि लंबे समय तक R FR के संपर्क में रहने से मस्तिष्क में ट्यूमर बनने की संभावना बढ़ सकती है।
- इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC), WHO की एक इकाई, ने मोबाइल रेडिएशन को “संभवतः कैंसरजन्य (possibly carcinogenic)” की श्रेणी में रखा है।
हृदय पर प्रभाव:
मोबाइल रेडिएशन हृदय की विद्युत गतिविधि को प्रभावित कर सकता है। कुछ शोधों में देखा गया है कि यह हार्ट रेट वेरिएबिलिटी (HRV) को कम करता है, जिससे तनाव बढ़ता है और हृदय की स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है।
बच्चों का शरीर इन प्रभावों से बचाव के लिए उतना सक्षम नहीं होता जितना कि वयस्कों का, इसलिए रेडिएशन से उनका अधिक सतर्कता से संरक्षण किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:
मोबाइल फोन न केवल बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास में बाधक है, बल्कि उसका अदृश्य विकिरण भी दीर्घकालिक शारीरिक क्षति पहुँचा सकता है। एक संवेदनशील अभिभावक होने के नाते हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम अपने बच्चों को एक स्वस्थ और संतुलित वातावरण दें — जहाँ वे तकनीक के गुलाम नहीं, बल्कि ज्ञान के स्वामी बनें।
वैकल्पिक समाधान
- बच्चों को कहानी की किताबें, ब्लॉक गेम्स, मिट्टी से खेलना या चित्र बनाना जैसी गतिविधियों में लगाएं।
- खुले मैदान में खेलने और प्रकृति के संपर्क में रहने दें।
- दिनचर्या में ‘नो स्क्रीन टाइम’ का नियम बनाएं और स्वयं उसका पालन करें।
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