निर्दोषों की चिताओं पर सिंकती है राजनैतिक रोटियाँ

22 अप्रैल 2025, पहलगाम — एक शांत घाटी, जहां केवल देवदार की खुशबू और झरनों की नमी होनी चाहिए थी, वहाँ गूंजती हैं गोलियों की आवाज़ें। 26 निर्दोष लोग मार दिए गए — धर्म पूछकर। इंसान को इंसान नहीं, मजहब के चश्मे से देखा गया। इंसानियत हार गई, राजनीति जीत गई।

पूरा देश शोक में डूबा नहीं — उबाल में उबलता रहा। टीवी चैनल “विशेष डिबेट” करने लगे, जिनमें एंकर देशभक्ति का प्रमाणपत्र बांटते रहे। सोशल मीडिया पर तथाकथित राष्ट्रवादियों ने एक पूरे समुदाय को गाली देने का महापर्व मनाया। कहीं दुकानों को जलाया गया, कहीं रोज़ी-रोटी छीन ली गई। भीड़ को न आरोपी चाहिए, न अदालत — सिर्फ़ एक मज़हब चाहिए अपने गुस्से की खपत के लिए।
जो सवाल उठाए — वह “देशद्रोही”। जो सच्चाई दिखाए — वह “पाकिस्तानी एजेंट”।
और जो मौन रहकर उन्मादियों का समर्थन करें — वे “सच्चे देशभक्त”?
इस उन्माद के बीच न कोई आँकड़ों की माँग करता है, न ही यह पूछता है कि पहलगाम से सुरक्षा व्यवस्था क्यों हटाई गई थी?
किसके आदेश पर हटाई गई थी? और क्यों ऐसे वक्त में हटाई गई जब हमले की आशंका सर्वविदित थी?
इसी समय, प्रधानमंत्री केरल में विझिंजम बंदरगाह का उद्घाटन करते हैं — जिसकी लागत ₹8,900 करोड़ है। निर्माण अदाणी समूह करता है, लेकिन पैसे भारत के बैंकों से लिए जाते हैं। क्या इसे आप “विकास” कहेंगे? या यह एक नियंत्रित कथा है — जहाँ मौतें सिर्फ़ ध्यान भटकाने का साधन हैं?
और इधर 9 मई 2025 में IMF पाकिस्तान को ₹19,205 करोड़ का ऋण देता है — और 10 मई 2025 को अमेरिका के आदेश पर संघर्ष विराम (सीज़फ़ायर) भी हो जाता है!

क्या यह सब संयोग है?
मुझे कोई साज़िश सिद्ध नहीं करनी — मैं केवल वह प्रश्न उठाता हूँ, जिसे उठाना इस देश में गुनाह माना जाता है:
“आख़िर पहलगाम से सुरक्षा क्यों हटाई गई थी? किसके कहने पर?
शहीदों की चिताएँ बुझ जाती हैं, पर उनके प्रश्न नहीं।
हम अगर संवेदनशील हैं, तो यह प्रश्न हमारे भीतर जलते रहेंगे —
वरना हमारी चुप्पी किसी के अगली रणनीति का हिस्सा बन जाएगी।
महमूद दरवेश (1941-2008) एक प्रसिद्ध फ़िलिस्तीनी कवि और लेखक थे, जिन्हें फ़िलिस्तीन का राष्ट्रीय कवि माना जाता है) की लिखी एक कविता या हो आयी:
~ विशुद्ध चैतन्य
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