अन्तर्निहित ज्ञान का प्रकाश

सभी न्यूज़ चैनलों में एक विडिओ शेयर की जा रही थी, और कहा जा रहा था कि डॉक्टर बन्दर ने अपने साथी की जान बचाई।
मानव तो असमर्थ हो गया अंतर्मन को सुनने व समझने में
अगर वह बन्दर वास्तव में डॉक्टर होता, तो शायद ही उस बन्दर कि जान बच पाती जो २५००० वोल्ट विजली का झटका खाकर गिरा था। क्योंकि डॉक्टर बिना फीस लिए तो रोगी की शक्ल नहीं देखते इलाज कैसे करते ? पुलिस और दुनिया भर का कानूनी पचड़ा अलग से होता। जब तक फ़ार्म भरे जाते पुलिस अपनी जाँच पूरी करती पीड़ित दुनिया से विदा हो चुका होता। फिर धर्म का अलग रोना है; पता नहीं बन्दर किस धर्म का है और जाति क्या है उसकी।
विडियो में आप देख सकते हैं कि इतनी बड़ी भीड़ तमाशा देख रही थी, लेकिन वे वह नहीं समझ पाए जो एक बन्दर समझ रहा था। वह बिना किसी डिग्री और डिप्लोमा के वह काम कर रहा था जो सामान्य रूप से डिग्रीधारी भी नहीं कर सकते थे। वह जो कुछ कर रहा था उसकी उसने कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली थी। उसने कोई किताब भी नहीं पढ़ी थी उससे सम्बंधित और न ही यूट्यूब से कोई नुस्खे सीखे थे। लेकिन मानव के पास तो यह सारी सुविधाएँ होते हुए भी सड़क दुर्घटना में पड़े व्यक्ति की सहायता नहीं कर पाते। बहुत हुआ तो पुलिस या एम्बुलेंस को फ़ोन कर दिया और धर्म निभा दिया अपना।
सबने उस विडियो को देखा होगा, लेकिन किसी ने उस बात को समझने का प्रयास नहीं किया होगा, जो कि उस बन्दर के भीतर घट रही थी। बन्दर पढ़ा-लिखा नहीं था और न ही कोई डिग्री थी उसके पास, इसलिए वह अंतर्मन की आवाज सुन व समझ पा रहा था। वह बन्दर जो कुछ कर रहा था अपने साथी को बचाने के लिए, वह अन्तर्निहित ज्ञान के प्रकाश में कर रहा था।
भीतर वही एक आत्मा है जो सब कुछ जानती है, लेकिन मानव उसकी आवाज अब सुन पाने में असमर्थ हो चुका है क्योंकि उसके पास अब डिग्री है। ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में जहाँ अभी शिक्षा नहीं पहुँची है, वहाँ तो फिर भी लोग आत्मा की आवाज सुनकर कार्य करते हैं लेकिन शहरों में अब यह दुर्लभ हो गया है। शहर में कोई एक गिलास पानी भी पिला दे तो चमत्कार हो जाता है।
मानव तो असमर्थ हो गया अंतर्मन को सुनने व समझने में, जबकि वह बन्दर सक्षम हो रहा है। वह वही कर रहा था जो उसका विवेक उसकी आत्मा कह रही थी। वह भी चाहता तो उसे मरा हुआ मान छोड़कर जा सकता था। लेकिन उसका अंतर्मन कह रहा था कि उस बन्दर को बचाया जा सकता है। उसने उसे पानी में डाला, गले की नस को एक्यूप्रेशर दी अपने दांतों से…..सब कुछ विस्मयकारी था। यह सोचकर कि वह बन्दर इतना कुछ कैसे समझ पा रहा था, दिमाग और भी हलचल कर रही थी। यदि आपने वह विडियो नहीं देखा है अभी तक तो अब देख लीजिये।
भारतीय शिक्षा पद्धति बचपन से ही स्वयं को समझने व सुनने की शक्ति के विकास पर ही आधारित होती थी। यही कारण है कि ध्यान, योग, युद्धकौशल, घुड़सवारी आदि का बहुत ही महत्व था शिक्षा में। लेकिन आज नंबर लाना ही शिक्षा में बड़ी उपलब्धि मानी जाती है। आज वही डिग्रीधारी सड़क किनारे पड़े अपने साथी कि रक्षा करने में असमर्थ पाता है स्वयं को। क्योंकि कई बार यदि वह खुद अंतर्मन की सुनकर पहल करेगा भी, तो दुनिया उसे रोक देगी क्योंकि दुनिया तो आत्मा से, प्रकृति से, ईश्वर से अधिक समझदार होती है। वह जानती है कि किसी की जान बचाने का प्रयास करने के लिए पढ़ाई पूरी करने के बाद महँगी फीस देकर डॉक्टर की डिग्री भी लेनी पड़ती है। पुलिस भी बुलानी पड़ती है और फिर यह भी देखना पड़ता है कि पीड़ित की आर्थिक स्थिति कैसी है, धर्म क्या है, जाति है।
– विशुद्ध चैतन्य
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