हमारी शिक्षा और गुरु का महत्व: आत्मज्ञान की ओर एक यात्रा

कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब कुछ हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम केवल उसे खोजते हैं और उसे पुनः आविष्कार करते हैं, क्योंकि हम अनेकों जन्मों में अनुभव प्राप्त करते हैं और हर जन्म में कुछ न कुछ नया सीखते हैं। अब तो विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि पुनर्जन्म और पूर्वजन्म का अस्तित्व है, क्योंकि उनके पास इसके प्रमाण भी मौजूद हैं। बाहर से जो कुछ भी हमें मिलता है, वह केवल प्रेरक का कार्य करता है, जो हमें हमारे भीतर छिपे ज्ञान तक पहुंचने के लिए प्रेरित करता है।
गुरु का महत्व और उनका उद्देश्य
गुरु का अर्थ होता है अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला व्यक्ति। भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि गुरु ही हमें हमारे भीतर की आत्मा से परिचित कराता है। गुरु किसी भी प्रकार का बाहरी ज्ञान नहीं देता; वह तो हमें केवल हमारी स्वयं की क्षमता से अवगत कराता है। प्राचीन गुरुओं के विषय में जब हम पढ़ते हैं, तो हमें यह समझ में आता है कि वे सभी एक समान विद्या नहीं सिखाते थे, बल्कि प्रत्येक गुरु की अपनी विशेषता और शिक्षा देने की विधि अलग थी। गुरु की सेवा का मुख्य उद्देश्य था गुरु को प्रसन्न करना और अपनी अहंकार को नष्ट करके विनम्रता से जीवन जीना। जब तक व्यक्ति अपने अहंकार से मुक्त नहीं होता, वह न तो गुरु को समझ सकता है और न ही स्वयं को।
गुरु-शिष्य संबंध
प्राचीन काल में गुरु और शिष्य के बीच कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती थी। गुरु अपने प्रत्येक शिष्य से अलग तरीके से व्यवहार करता था, ताकि हर शिष्य के भीतर छिपी हुई प्रतिभा को बाहर लाया जा सके। गुरुकुल से निकलकर शिष्य शास्त्रों में पारंगत होता था, अन्य विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था और अपनी एक अलग पहचान भी बनाता था। वह केवल शिष्य नहीं रहता था, बल्कि अर्जुन, भीष्म, कर्ण जैसे महान व्यक्तित्वों में परिवर्तित हो जाता था। वह अपनी छवि का ध्यान रखते हुए व्यवहारिक रूप से जीता था, और दूसरों से अपनी तुलना नहीं करता था।
शिक्षा का वास्तविक अर्थ
शिक्षा का वास्तविक अर्थ है स्वयं को खोजने का प्रयास करना, और इसके लिए कोई निश्चित विधि नहीं है। यह भजन करने, ध्यान करने, प्रयोग करने, या किसी डिग्री को प्राप्त करने के रूप में हो सकती है। लेकिन शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य अपने भीतर की विशेषता और प्रतिभा को पहचानना है। जब आप अपने भीतर की शक्ति और ज्ञान को पहचानते हैं, तो आप महान व्यक्तित्वों जैसे एडिसन, न्यूटन, व्यास, बाल्मीकि या तुलसीदास के समान बन सकते हैं। क्योंकि ज्ञान तो हमारे भीतर ही होता है, बाहर नहीं।
हम सभी एक ही धर्म के हैं
कभी-कभी कोई घटनाएँ हमें भीतर झांकने के लिए प्रेरित करती हैं, और तब हम समझ पाते हैं कि हम सभी एक ही धर्म के हैं। हमें यह अहसास होता है कि बाहर की शिक्षा में कहीं कुछ न कुछ चूक है, जिससे हम नफरत और हिंसा का शिकार हो रहे हैं। शिक्षा और धर्म के नाम पर हमें गुलाम बना लिया जाता है। तब हमें यह समझ आता है कि हमें दूसरों से नफरत करने की बजाय, एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और सभी के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करना चाहिए।
मानवता के शत्रु और हमारी शिक्षा
जब एक व्यक्ति को यह समझ में आ जाता है, तो वह बिना किसी हथियार के मानवता के शत्रुओं से लोहा लेता है। वह किसी से नफरत नहीं करता, सिवाय उन लोगों के, जो धर्म के नाम पर राजनीति करते हैं, लोगों को आपस में बाँटते हैं, और निर्दोषों की लाशों पर अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। क्योंकि सनातन धर्म किसी शास्त्र या राष्ट्र पर आधारित नहीं है; यह तो शाश्वत है और यह हमें स्वतंत्रता, सहकार्य और विकास की दिशा दिखाता है।
लेकिन जब शिक्षा थोपी जाती है, न कि खोजी जाती है, तो कट्टरपंथी संगठन जैसे ‘अलकायदा’ और ‘आईएसआईएस’ उभर आते हैं। ऐसे लोग किसी भी धर्म या सिद्धांत को बिना समझे, अंधकार में चलने वाले होते हैं। वे दूसरों को दोष देते हैं, जबकि उन्हें खुद कभी अपनी आत्मा में झांकने का अवसर नहीं मिलता।
अंतिम विचार
अब यह हमें तय करना है कि हम किस जीवन का चयन करना चाहते हैं – मानवता से भरा हुआ, या फिर गुलामी का जीवन। यदि हम मानव जीवन जीना चाहते हैं, तो हमें भेड़ों का जीवन छोड़कर भेड़ियों से सामना करना होगा। हमें अपने बच्चों को पढ़ाई में दी जा रही पुस्तकों पर गौर करना होगा कि कहीं उनमें दूसरों के प्रति घृणा और हिंसा तो नहीं भरी जा रही। क्योंकि हम धर्म के ठेकेदारों के गुलाम बनने के लिए इस दुनिया में नहीं आए हैं। हम भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं, जितने कि धर्म के ठेकेदार और उनके पाले हुए गुलाम।
~ विशुद्ध चैतन्य
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