अखंडित राष्ट्र की रक्षा के लिए खंडित राष्ट्रीय अखंडता अभियान

संगठित धार्मिक और असंगठित धार्मिक
अनैतिकता, अपराध और अँधेरे का रंग एक ही क्यों है, जबकि सद्कर्मों, सद्मार्गों और प्रकाश के कई रूप और रंग हैं। कारण एक ही है, कि अपराध, अनैतिकता और अँधेरे भेदभाव नहीं करते, वे ऊँच नीच और धर्म पंथ के झगड़ों में नहीं उलझे होते। जो उनके पास आया सभी को प्रेम से गले लगाया। किसी को किसी तरह का परहेज नहीं, कोई छुआ छूत नहीं….बस सब एक हैं उनमें। वे संगठित हैं किसी रंग या झंडे के कारण नहीं, अपनी सुरक्षा व सहयोगिता के कारण।
वास्तव में सभी धार्मिक ग्रंथों के मूल में जो सहयोगिता का भाव है, वह अपराधियों ने अनजाने में ही अपना रखा था या ये कहें कि वे सनातन धर्म के मूल सिद्धांत का पालन करते हैं। इसलिए ही वे फलफूल रहें हैं और सारी दुनिया को अपने इशारों पर चला रहें हैं।
टुकड़ों में बंटा हुआ है धर्म
वहीँ धर्म टुकड़ों में बंटा हुआ है और एक दूसरे को मिटाने के होड़ में लगा हुआ। सभी ने अपने अपने मंदिर-मस्जिद, ईश्वर और आराध्य बना लिए हैं। हिन्दुओं की स्थिति तो और भी बुरी हो रखी है, अब त्रिदेव और नौ देवियों का महत्व समाप्त हो गया।
अब तो बाबाओं और गुरुओं का चलन है। सभी के अपने अपने गुरु और अपने अपने बाबा हैं। अब पड़ोसी को कोई समस्या हो जाए, तो उसका ईश्वर समझे, हम सुखी हैं तो जग में सुख शांति है।
न शांति दिख रही है न प्रेम
ध्यान और साधना के केंद्र दिन पर दिन बढ़ते जा रहें हैं, लेकिन न शांति दिख रही है कहीं, और न ही प्रेम और सौहार्द। आतंकी उपद्रव के नए नए हथकंडे प्रयोग कर रहें हैं, और लोग आँखें बंद किये साधना में रत हैं। कोई साधक यदि साधना छोड़कर अलगाववादियों और साम्प्रदायिकता के विरुद्ध आवाज उठाता भी है, तो लोग उसे ही चुप कराने पहुँच जाते हैं। कुछ लोग उसे नियम समझाने लगते हैं कि गेरुआ का मतलब क्या है और संन्यास का मतलब क्या है।
लेकिन जब इनसे पूछा जाये कि धर्म और अध्यात्म का मतलब क्या है, तो शास्त्रों के पन्ने पलटने लगते हैं। अर्थात आज तक ये स्वयं यही नहीं समझ पाए कि धर्म और अध्यात्म वास्तव में है किस चिड़िया का नाम। कभी किसी ज़माने में किसी ने लिख दिया तो रटे चले जा रहें हैं……
सब की अपनी अपनी दुकाने हैं और सबके अपने अपने ग्राहक भी हैं। आज आतंक फैलाना हो, मारकाट मचाना हो तो ट्रकों में भर कर रूपये पहुँच जायेंगे। आज चुनाव में वोट खरीदना हो, विधायक, सांसद या किसी दो कौड़ी के सड़कछाप नेता को खरीदना हो, तो दानियों की बाढ़ आ जायेगी और रूपये संभाले नहीं संभलेंगे। वहीँ किसी की सहायतार्थ रूपये चाहिए हों, तो हर कोई महँगाई और सीमित आय की मार से मरा हुआ हो जाएगा।
समाज गर्त में चला जा रहा है
आतंकी संगठन कोई उत्पाद नहीं करते, न खेती करते हैं और न ही कोई व्यवसाय, केवल हत्या और लूट पाट ही जिनका पेशा है। लेकिन धन का कोई आभाव नहीं है उनके पास पास। वहीँ एक किसान जो अपनी ही जमीन पर बिना किसी को मारे काटे अपनी खेती करता है, दुनिया को अनाज देता है, वह भूख और गरीबी से त्रस्त है। दुनिया भर में समाज सेवी संस्थाएं हैं, लेकिन समाज गर्त में चला जा रहा है और संस्थाएं और संस्थापक दिनों दिन प्रगति किये चले जा रहें हैं।
अब इन सभी को एक साथ एक नजर से देखें तो केवल किसान ही एक ऐसा व्यक्ति दीखता है, जो धर्म पथ पर है। जो सनातन धर्म का पालन कर रहा है, लेकिन वह आज विवश और लाचार है। जो दूसरों का पेट भरने के लिए अपना पसीना बहाता है उसे दुत्कार और मौत मिलती है, जबकि दूसरों का शोषण करने वाले, दूसरों के जीने का अधिकार छीनने वाले संगठित होकर सारे वैभव व सुखों का उपभोग कर रहें हैं। और आश्चर्य होता है यह देखकर कि ऐसे लोग भी धर्म का पाठ पढ़ा रहे होते हैं।
आश्चर्य होता है ये मंदिर और मस्जिद बनवा रहे होते हैं। जबकि धर्म और आध्यात्म से इनका कोई लेना देना होता ही नहीं, लेकिन एक्टिंग वास्तविक धार्मिकों और आध्यात्मिकों से कई गुना अच्छी कर लेते हैं धार्मिक होने की। शास्त्र इनको कंठस्थ होते हैं, जबकि कबीर जैसे लोगों को शायद ही कभी एक लाइन भी याद हुई हो शास्त्रों की।
इस प्रकार हम देखें तो प्रकाश और अन्धकार अलग अलग नहीं हैं, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अँधेरे में सभी एक हैं, केवल प्रकाश में अलग अलग मुखौटे लगा कर आ जाते हैं सामने। और ये सिक्के चलाये जाते हैं उन लोगों के लिए जो वास्तव में धार्मिक या श्रद्धालू या मानवीय गुणों से युक्त हो।
एक दिन यह मानवीय गुणों वाला व्यक्ति भी हार जाता है दोगलों और दोमुंहों के सामने और समर्पण कर देता है इनके सामने स्वयं को। क्योंकि वह जिसको भी अपना हमदर्द समझ कर गया, वह उसी का रिश्तेदार निकला जिसकी शिकायत लेकर वह गया।
कभी आवश्यकता ही नहीं समझी कि शोषितों को न्याय दिलवाया जाय
कभी किसी धर्म गुरु ने, सामाजिक संगठन या अध्यात्मिक गुरुओं ने इस और ध्यान देने की कोई आवश्यकता नहीं समझी। कभी आवश्यकता ही नहीं समझी कि शोषितों को न्याय दिलवाया जाय या उनकी सहायता की जाए। लोग अपने अपने आश्रमों में ध्यान और योग में मस्त हैं, क्योंकि ‘मैं सुखी तो जग सुखी”। सभी अपनी अपनी दुनिया में मस्त हैं
खंडित राष्ट्रीय अखंडता अभियान
कोई यह कहे कि नफरत फ़ैलाने से अच्छा काम है, सभी को आपस में एक करो, एकता में बहुत शक्ति है….. तो ब्राह्मण एक होने लगते हैं, शिया एक होने लगते हैं, सुन्नी एक होने लगते हैं, व्यापारी एक होने लगते हैं, विधायक एक होने लगते हैं, सांसद एक होने लगते हैं…… और फिर उनमें भी कई और भेद हैं, कोई शर्मा है तो कोई वर्मा है, कोई यादव है तो कोई जादव है……फिर उनमें भी कोई ऊँच नीच है……फिर उनमें भी किसी की पड़ोसन से नहीं पटती तो किसी की पडोसी से…
इस प्रकार खंडित राष्ट्रीय अखंडता अभियान नीचे तक फ़ैल जाता है और हर कोई एकता अखंडता की बात करता दीखता है। ऊपर से देखो तो एकता का झंडा लहराते लोग तो दीखते हैं, लेकिन सबके अपने अपने रंग और सबकी अपनी अपने शर्तें हैं। लेकिन रिश्वत लेते-देते समय सभी एक हैं, अपराधियों को मंत्री बनाते समय सभी एक हैं….यहाँ कोई शर्त और कोई विभाजन नहीं होता। आतंकियों को सहयोग करते समय कोई भेदभाव नहीं होता। बलात्कार करते समय कोई जाति, रंग धर्म का भेद नहीं होता….. लेकिन लोग इनको धार्मिक कहते हैं। लोग इनका सम्मान करते हैं।
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