डिक्टेशन देते समय ही क्यों नहीं लिखवा देते…?

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति रूजवेल्ट की एक विचित्र आदत थी। जब भी उनका निजी सचिव उनका कोई पत्र टाइप करके उनके पास लाता, वह उसमें अपनी कलम से कहीं न कहीं सुधार कर देते थे या कुछ जोड़ देते थे। इससे सचिव परेशान हो जाता था। वह समझ नहीं पाता था कि राष्ट्रपति महोदय सब कुछ पहले से तय करके या पूरी तरह मन में चीजें व्यवस्थित करके क्यों नहीं लिखते।
एक बार आदतन उन्होंने पत्र में कुछ जोड़ा, सचिव उसे पुनः टाइप करके ले आया और रूजवेल्ट से हस्ताक्षर करवाने के लिए उनके समक्ष रखा। उसे यह देखकर बड़ी हैरानी हुई कि उन्होंने पत्र में फिर से कुछ नए शब्द और जोड़ दिए। राष्ट्रपति की रोज-रोज की इस आदत से परेशान होकर उसने आखिर एक दिन पूछ ही लिया- आपको जो कुछ भी लिखना होता है, वह सब आप डिक्टेशन देते समय ही क्यों नहीं लिखवा देते। टाइप किए हुए पत्र में हाथ से लिखा हुआ कुछ अलग से भद्दा नहीं लगता?
इस पर रूजवेल्ट मुस्कराए फिर उन्होंने उसे प्यार से समझाया- मित्र! यह तुम्हारी भूल है, मेरे हाथ से लिख देने से उसकी शोभा और भी बढ़ जाती है। मेरे हाथ के कुछ शब्दों को देखकर व्यक्ति इसे मात्र औपचारिक पत्र नहीं समझता है, बल्कि उसके दिल में यह बात समा जाती है कि राष्ट्रपति ने यह शब्द ख़ासतौर पर सस्नेह उसके लिए लिखे हैं। कलम से लिख देने से कोई भी पत्र हो, वह रस्मी या आधिकारिक भर नहीं रह जाता, बल्कि आत्मीय और सौहार्दपूर्ण हो जाता है। राष्ट्रपति का सचिव यह सुनकर दंग रह गया। उसके मन में रूजवेल्ट के प्रति श्रद्धा और बढ़ गई।
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