कई जन्म लिए हमने और हर जन्म से कुछ सीखा

जब हम चींटी या मधुमक्खी थे, हमने संग्रह करने की कला सीखी। हमने सीखा कि संगठित रहना, सहयोग करना और निरंतर प्रयास करते रहना सफलता की कुंजी है।
जब हम शेर थे, तब हमने अपनी शक्ति को पहचाना। हमने सीखा कि अपने अधिकार और प्रभुत्व को कैसे स्थापित किया जाए। शेर के रूप में हमने आत्मसम्मान और स्वाभिमान का महत्व समझा।
डोल्फिन, कुत्ता या घोड़ा बनने पर, हमने निःस्वार्थ सहयोग और स्वामिभक्ति को अपनाया। हमने सीखा कि कैसे जरूरतमंदों की सहायता के लिए अपने प्राणों का भी बलिदान किया जा सकता है।
जब हम कछुआ थे, हमने सीखा शांत और धीरजपूर्ण जीवन जीना। जीवन के उतार-चढ़ाव में भी संयम रखना और किसी भी परिस्थिति में अपना धैर्य न खोना हमने कछुए से सीखा।
भेड़ और बतख के रूप में हमने बिना सवाल किए नेतृत्व का अनुसरण करना सीखा। हमने यह भी समझा कि सामूहिकता और अनुशासन से जीवन की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
मानव जीवन: एक अद्वितीय अवसर
हमें मानव जीवन इसलिए मिला क्योंकि हमने इन सभी गुणों को अपने भीतर विकसित किया। यह जीवन हमें इसलिए दिया गया ताकि हम वह कर सकें जिसकी हम भगवान से अपेक्षा करते हैं—दुर्बलों की सहायता करना, अत्याचार के विरुद्ध खड़ा होना और सृष्टि के कल्याण में योगदान देना।
लेकिन, यह विडंबना है कि जैसे-जैसे मनुष्य ज्ञानी होता गया, वह कूपमंडूक बनता गया। वह इतना भयभीत हो गया कि मोक्ष और मृत्यु के डर से भागने लगा। उसने लंबी उम्र की कामना तो की, पर कछुए की तरह निष्क्रिय और एकांत जीवन जीना चाहा।
अब स्थिति यह है कि वह दूसरों की मदद करने के बजाय आश्रमों और गुफाओं में छिपने की ओर प्रवृत्त हो गया है। सामान्य लोग भेड़ और बतख की तरह केवल अनुकरण करते हैं, जबकि असामाजिक तत्व मच्छरों और पिस्सुओं की तरह दूसरों का खून चूसने में व्यस्त हैं।
समाज का यथार्थ और हमारी भूमिका
इसका परिणाम यह है कि मुट्ठी भर असामाजिक तत्व पूरे समाज में आतंक फैला देते हैं। क्या कछुए जैसा निष्क्रिय जीवन अध्यात्मिक जीवन कहलाएगा? यदि आप इसे अध्यात्म मानते हैं, तो निश्चिंत रहिए—अगले जन्म में आपका जीवन कछुए का ही होगा।
याद रखें, ईश्वर कायरों को मोक्ष नहीं देता।
मनुष्य को यह जीवन इसलिए मिला है ताकि वह अपने साहस और सद्गुणों के बल पर दुनिया में बदलाव ला सके। अतः हमें अपने गुणों को पहचानना होगा और समाज के लिए अपना योगदान देना होगा।
~ स्वामी विशुद्ध चैतन्य
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