टप्पू परदेसी का आत्म-साक्षात्कार

कई हज़ार साल पुरानी बात है। टप्पू परदेसी ने आत्म-साक्षात्कार के लिए जंगल में जाकर तपस्या करने की ठानी। एक दिन घर-बार छोड़ कर जंगल में निकल गया तपस्या करने। कई वर्षों तक घनघोर तपस्या किया और जाना कि वह कौन है और क्यों आया है इस धरा में।
लौट कर वापस अपने गाँव आया तो गाँव वालों ने उसका बहुत ही आदर सत्कार किया। उसके टूटे फूटे मकान को सजा संवार कर बिलकुल नये जैसा बना दिया गया। अब टप्पू परदेसी का नाम बदल गया था और वह हो गये थे स्वामी टप्पू जी महाराज। दूर दूर से लोग उनसे मिलने आने लगे थे।
उनमें जो एक विशेषता थी जो आत्म-साक्षात्कार के बाद उनमें आई थी वह यह कि वे अपना हर काम स्वयं ही करते थे। उनके भक्तों को यह बहुत आकर्षित करता था और हर कोई उनका भक्त बनने के लिए लालायित रहता था। क्योंकि ये ऐसे महाराज थे जिनकी सेवा नहीं करनी पड़ती थी। देखते ही देखते कुछ ही दिनों में उनके सैंकड़ों भक्त बन गये। अधिकतर उनके इस नये आश्रम में ही रहने लगे थे।
कोई अपने घर में शोर शराबे से परेशान था और आईएएस की तैयारी कर रहा था इसलिए आश्रम में रहकर शांति से पढ़ाई करना चाहता था, तो कोई बीवी की चिक-चिक से परेशान होकर आश्रम में भक्त भक्त बन गया था। कोई बोर्ड के पेपर की तैयारी कर रहा था, तो किसी के पास अपना मकान बनाने के पैसे नहीं होने व किराए के मकान में पैसे बर्बाद होने से बचाने के लिए आश्रम में रह रहा था। कोई मिसविलेज की तैयारी कर रही थी तो कोई डेविड धवन के किसी फिल्म से ऑफर आने तक वहाँ रुका हुआ था…. और इस प्रकार आश्रम में बहुत ही रौनक रहने लगी थी।
सभी सारे दिन बैठ कर क्रिकेट देखते रहते या फिर एमटीवी या एकता कपूर का सीरियल देखते रहते। न तो किसी को चिंता थी खेत में पानी देने की और न ही चिंता रहती अध्यात्मिक चर्चा करने की। स्वामी जी भी अपने कमरे में अकेले पड़े रहते या सुबह शाम खेत में अकेले काम करते रहते।
कुछ दिन तक तो सब ठीक ठाक रहा, लेकिन एक दिन टप्पू जी महाराज को दोबारा आत्मज्ञान हुआ। उन्होंने देखा कि वे तो अपना काम स्वयं करते हैं, लेकिन बाकी सभी अपने अपने काम के लिए नौकर रख रखें हैं। टप्पू महाराज को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने भी काम करना बंद कर दिया और नौकर से अपना भी सारा काम करवाने लगे। खेतों के लिए भी नौकर रख लिए थे। बस अब सारे दिन अपने कमरे में पड़े पड़े अंग्रेजी फिल्म देखते रहते। धीरे धीरे टप्पू महाराज के कमर में दर्द रहने लगा और हाथ पैरों में भी कमजोरी आ गयी। इलाज के लिए अमेरिका जाना पड़ा तो वहीं से चार पाँच इम्पोर्टेड भक्तिन ले आये सेवा के लिए…..
कथा सार यह कि स्वाभाविक रूप से किये जा रहे कार्यों में कोई प्रभाव नहीं होता दूसरों के कारण। लेकिन दिखाने के लिए किये जा रहे कार्य दूसरों के कारण प्रभावित हो जाते हैं। -विशुद्ध चैतन्य
अब इस कथा को यदि आपने ध्यान से पढ़ा होगा तो यह तीन प्रश्न हैं आपके लिए:
१. आत्मसाक्षात्कार का अर्थ क्या है ?
२.क्या टप्पू महाराज को आत्मसाक्षात्कार हुआ था ?
३. भक्त का अर्थ क्या है ? क्या आश्रम में ठहरे लोग भक्त थे ?
४. आश्रमवास का मूल उद्देश्य क्या है ?
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