बड़ी आंत यानि शाकाहारी ?
आदमी को, स्वाभाविक रूप से, एक शाकाहारी होना चाहिए, क्योंकि पूरा शरीर शाकाहारी भोजन के लिए बना है। वैज्ञानिक इस तथ्य को मानते हैं कि मानव शरीर का संपूर्ण ढांचा दिखाता है कि आदमी गैर-शाकाहारी नहीं होना चाहिए। आदमी बंदरों से आया है। बंदर शाकाहारी हैं, पूर्ण शाकाहारी। अगर डार्विन सही है तो आदमी को शाकाहारी होना चाहिए।
अब जांचने के तरीके हैं कि जानवरों की एक निश्चित प्रजाति शाकाहारी है या मांसाहारी: यह आंत पर निर्भर करता है, आंतों की लंबाई पर। मांसाहारी पशुओं के पास बहुत छोटी आंत होती है। बाघ, शेर इनके पास बहुत ही छोटी आंत है, क्योंकि मांस पहले से ही एक पचा हुआ भोजन है। इसे पचाने के लिये लंबी आंत की जरूरत नहीं है। पाचन का काम जानवर द्वारा कर दिया गया है। अब तुम पशु का मांस खा रहे हो। यह पहले से ही पचा हुआ है, लंबी आंत की कोई जरूरत नहीं है। आदमी की आंत सबसे लंबी है: इसका मतलब है कि आदमी शाकाहारी है। एक लंबी पाचनक्रिया की जरूरत है, और वहां बहुत मलमूत्र होगा जिसे बाहर निकालना होगा।
अगर आदमी मांसाहारी नहीं है और वह मांस खाता चला जाता है, तो शरीर पर बोझ पड़ता है। पूरब में, सभी महान ध्यानियों ने, बुद्ध, महावीर, ने इस तथ्य पर बल दिया है। अहिंसा की किसी अवधारणा की वजह से नहीं, वह गौण बात है, पर अगर तुम यथार्थतः गहरे ध्यान में जाना चाहते हो तो तुम्हारे शरीर को हल्का होने की जरूरत है, प्राकृतिक, निर्भार, प्रवाहित। तुम्हारे शरीर को बोझ हटाने की जरूरत है। और एक मांसाहारी का शरीर बहुत बोझिल होता है।
उपरोक्त सन्देश पढ़ने पर यह लगता है कि हम शिक्षित नहीं हो पाए और न ही ब्रम्ह को समझ पाए। हम कूपमंडूक ही रह गये। जरा सोचिये कि एस्किमों और ध्रुवीय प्रदेशों में रहने वाले मानव हरी सब्जी कहाँ उगाते ? और इतने ठण्ड में जीने के लिए शिकार न करके खेती करने बैठते तो क्या वे जी पाते वहाँ पर ?
लेकिन लोग कह रहें हैं कि चलिए कोई बात नहीं पहले नहीं उगा पाते थे तो न सही, पर अब तो विज्ञान ने तरक्की कर ली है, अब तो मांसाहार छोड़ देना चाहिए।
चमगादड़ की कई प्राजातियाँ होतीं हैं जिनमें से कुछ शाकाहारी हैं तो कुछ माँसाहारी और कुछ तो केवल खून ही पीतें हैं। अब ये धार्मिक लोग जाकर समझायेंगे उन माँसाहारियों को कि शाकाहारी बन जाओ क्योंकि तुम्हारी ही दूसरी प्रजाति शाकाहारी है, क्योंकि हम शाकाहारी हैं।
क्यों भाई ? तुम शाकाहारी हो इसलिए दूसरे क्यों शाकाहारी बन जाएँ, तुम ही माँसाहारी क्यों नहीं बन जाते ? अब आप शाकाहारी क्यों हो ? क्या आप ध्रुवीय प्रदेश के निवासी थे ? क्या आप किसी माँसाहारी परिवार से सम्बंधित थे और स्वेच्छा से शाकाहारी हुए ? क्या आपकी आंत लम्बी है इसलिए शाकाहारी हुए, अगर आंत छोटी होती तो माँसाहारी होते ?
लेकिन कभी यह सोचा है कि जिनके पूरी पीढ़ी में किसी ने शाकाहार नहीं किया उनकी आंत भी उतनी ही लम्बी क्यों है ?
मानव विश्व में एक मात्र ऐसा जीव है जिसे प्रकृति ने किसी भी जलवायु, वातावरण व परिवेश में सहजता से जीने के योग्य बनाया। वह ध्रुवीय प्रदेश में भी जी सकता है, रेगिस्तान में भी जी सकता है, पर्वतों में भी जी सकता है और द्वीपों में भी जी सकता है। इसलिए आप शाकाहारी हैं इसलिए आप इस भ्रम में न रहें कि आप किसी से श्रेष्ठ हो गये। ओबामा माँसाहारी है, लेकिन किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या मुख्यमंत्री से अधिक स्वस्थ हैं। बल्ब से लेकर मोबाइल तक… सभी माँसाहारियों की ही देन है। हम शाकाहारियों ने भजन कीर्तन और शास्त्रों को रटने के सिवा किया क्या है ? जो भी कुछ किया तो पूर्वजों ने और हम उनके नाम पर गाल बजाते रहे। यह भी प्रयास नहीं किया कि जहां तक उन्होंने किया उसे ही आगे बढ़ाते यदि नया करने की अक्ल नहीं आई तो।
समय नहीं है किसी के पास यह सब सोचने के लिए। किसी ने उपदेश दे दिया कि शाकाहारी हो जाओ क्योंकि हिंसा अधर्म है, बसे लगे तोते की तरह रटने और निकल पड़े कोसने दूसरों को। लेकिन ये अहिंसक लोग पूरा का पूरा जंगल हज़म कर गए, उसका कोई पाप नहीं लग रहा इनको। ये अहिंसक लोग किसी का घर फूँक देते हैं, किसी मासूम की इज्ज़त लूट लेते हैं। ये अहिंसक लोग, निहत्ते मासूमों व अबलाओं को मौत दे देते हैं केवल इसलिए लिए कि दूसरे सम्प्रदाय के लोग ऐसे कर रहें हैं। क्योंकि हमें भी उनकी तरह होना चाहिए। तो ये हत्याएँ करने वाले अहिन्सकों और मांसाहारियों में भेद क्या रह गया ? वे लोग कम से कम कत्लगाहों में जीवों की हत्या करते हैं, लेकिन ये अहिंसक लोग तो कत्लगाहों की हिंसा सोशल मीडिया के माध्यम से आपके घर तक ले आते हैं….(विचार नहीं था यह सब कहने का लेकिन विषय था इसलिए कह गया )
-विशुद्ध चैतन्य