मेरा देश समर्थ व समृद्ध होगा तभी विश्व सबल व समृद्ध होगा

भारत में उदार आत्माओं की कोई कमी कभी नहीं रही। उन्हीं में से एक थे ठाकुर दयानंद देव। उन्होंने विश्वशान्ति अभियान की नींव रखी १९०९ में और उस अभियान का नाम दिया अरुणाचल मिशन। मुख्यालय लीलामंदिर आश्रम की स्थापना हुई १९२१ में। उनकी मृत्यु से पहले अरुणाचल मिशन सम्पूर्ण विश्व को एक करने के अभियान में लगा रहा। परिणाम स्वरुप संयुक्त राष्ट्र (UN) आस्तित्व में आया।
१९३७ में उनकी मृत्यु के बाद अरुणाचल मिशन केवल कीर्तन मण्डली मात्र बन कर रह गया। वर्तमान में अरुणाचल मिशन के ट्रस्टियों, प्रबंधकों और भक्तों का जीवन अपने बीवी-बच्चों और परिवार तक सीमित रह गया। मुख्यालय अनाथ और वीरान हो गया और ठाकुर दयानंद के स्वप्न की समाधि बन कर रह गया। भूमाफिया और दुष्ट लोग आश्रमों की भूमि पर अधिग्रहण करने लगे।
इसी प्रकार कई और भी महान विभूतियाँ रहीं लेकिन वे भी वसुधैव कुटुम्बकम को व्यावहारिक नहीं बना पाए। कारण केवल एक ही रहा कि कोई भी यह नहीं समझा पाया कि एक महल बनाने के लिए एक ईंट पर महत्व देना चाहिए न कि महल पर। पहले एक मजबूत ईंट रखी जायेगी और फिर दूसरी मजबूत ईंट रखी जायेगी और फिर तीसरी…. इस प्रकार पहले स्तम्भ खड़े किये जायेंगे और फिर दीवारें खड़ीं होंगी और फिर छत बनेगी…।
वसुधैव कुटुम्बकम और विश्वशांति के अभियान में कभी अपने गाँव और अपने राष्ट्र के शान्ति को महत्व नहीं दिया गया और पूरे विश्व को एक करने के अभियान पर निकल पड़े। विश्वशांति अभियान की नींव रखी गयी अंग्रेजी भाषा पर, अभियान के केंद्र रहे विदेशी और विदेश। स्वदेश की चिंता नहीं की किसी ने। सभी महान विभूतियाँ निकल पड़ीं अंग्रेजों को शान्ति का पाठ पढ़ाने और स्वदेशी आपस में लड़ते मरते रहे। आज भी कोई गुरुकुल या भारतीय शिक्षा पद्धति की बात करता है तो अंग्रेजी में। आज आश्रमों में कोई स्कूल खोलना चाहता है तो कान्वेंट स्कूल पहली पसंद होता है।
यहाँ मुझे ध्यान आया कि मैंने अभी कुछ दिन पहले देवघर के एक प्रमुख व्यक्ति से बात की कि मुझे स्कूलों में जाकर राष्ट्रभाषा के महत्व के विषय में बच्चों को कुछ समझाना है और साथ ही कुछ पुस्तकें भी बाँटनी हैं, अतः सहयोग करें तो अच्छा है। वे सहर्ष तैयार हो गये लेकिन उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूल में जाने का कोई लाभ नहीं क्योंकि वहाँ के बच्चे कुछ नहीं सुनेंगे अतः प्राइवेट स्कूलों में आपके लिए व्यवस्था कर देता हूँ।
मैंने कहा कि प्राइवेट स्कूल तो अंग्रेजों का है इसलिए उसमें मेरी कोई रूचि नहीं है। मुझे तो सरकारी स्कूल में ही जाना है। क्योंकि जो बातें मैं समझाना चाहता हूँ वह तो भारतीय बच्चे ही समझ सकते हैं और भारतीय बच्चे सरकारी स्कूलों में ही मिल सकते हैं, पब्लिक स्कूलों में नहीं। क्योंकि उनके माँ बाप अंग्रेज हैं और वे अपने बच्चों को अंग्रेजी संस्कार सिखा रहें हैं, ताकि बड़े होकर वे अंग्रेजो के अच्छे सेवक बन सकें न कि भारत और भारतीयों के।
मुझे प्रसन्नता हुई कि वे सहयोग के लिए आगे बढे और सभी सरकारी स्कूलों में बच्चों और अध्यापकों के साथ भेंट करवाने का आश्वासन दिया।
सारांश यह कि पहले व्यक्ति के भीतर राष्ट्र के प्रति गर्व की भावना जागृत करनी होगी और फिर परिवार के प्रति। तब जाकर भावी पीढ़ी राष्ट्र के प्रति समर्पित होगी। और जब राष्ट्र समृद्ध व सशक्त होगा तभी हम विश्व के विषय में कोई सार्थक कदम उठा सकेंगे।
इसलिए पहले मेरा देश महत्वपूर्ण है। मेरा देश समर्थ व समृद्ध होगा तभी मेरा विश्व सबल व समृद्ध होगा। लेकिन पहले विश्व को समृद्ध करने का प्रयोजन किया जाएगा तब अरुणाचल मिशन की तरह सब ध्वस्त हो जायेगा और सब अपने बीवी बच्चों में सीमित हो जायेंगे।
-विशुद्ध चैतन्य
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