हनुमान भक्त गुल्लू की विलायती डिग्री

कई हज़ार साल पहले की बात है। एक गाँव में कल्लू लुहार अपनी पत्नी और एकलौते बेटे गुल्लू के साथ रहता था। गुल्लू के अंग्रेजी की बहुत धाक थी उस गाँव में। अजी उस गाँव में ही नहीं, शहर वाले भी गुल्लू की अंग्रेजी से डरते थे। क्योंकि उसने इतनी ऊँची पढ़ाई की थी अंग्रेजी की कि अच्छे अच्छे अंग्रेजों के ऊपर से निकल जाती थी उसकी अंग्रेजी। और फिर उसके पास विलायती डिग्री भी थी।
विलायती डिग्री
कल्लू ने पुरे दो लाख खर्च किये थे डिग्री के लिए ताकि बेटे को उसी के पसंद की डिजाइन वाली विलायती डिग्री ही मिले। डिग्री में कल्लू ने गुल्लू का नाम भी सुनहरे रंग से लिखवाया था ताकि किसी भी लिहाज से, किसी से भी गुल्लू की डिग्री हल्की न पड़े।
कॉलेज के लोग बहुत ही अधार्मिक होते हैं इसलिए वे डिग्री में किसी भी भगवान् आदि का नाम नहीं लिख रहे थे। लेकिन गुल्लू तो हनुमान जी का कट्टर भक्त था, जिद पर अड़ गया कि डिग्री में हनुमान जी की फोटो होनी चाहिए और सबसे ऊपर लिखा होना चाहिए जय श्री राम।
हनुमानजी के प्रति अपने बेटे की इतनी भक्ति देख कल्लू के आँखों में आँसूं आ गए और उसने डिग्री बनाने वाले के टेबल पर अपनी कुल्हाड़ी रख दी, कि डिग्री में हनुमान जी होंगे या तू हनुमानजी के पास होगा। बस उसे आखिर हनुमानजी वाली डिग्री देनी पड़ी थी। डिग्री के नीचे भी लिखवा लिया था अंग्रेजी में, ‘MADE IN AMERICA’।क्योंकि विलायती डिग्री वही होती है, जिसमें Made in America लिखा होता है।
मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे, मैं तो तेरे पास रे..
एक दिन एक अंग्रेज संत गिटार बजाता हुआ उस गाँव में पहुँचा। वह अंग्रेजी में कुछ गा रहा था जिसे सुनने के लिए गाँव के सभी लोग उसके पास इकट्ठे हो गये। वह मगन था अपने गाने में और उसे किसी से कोई लेना देना नहीं था, ऐसा लग रहा था मानो उसने दुनिया का सारा सुख पा लिया हो। उसके पीठ पर एक बैग था जिस पर कुछ लिखा हुआ था और बगल में भी एक बैग था उसपर भी कुछ लिखा हुआ था जो किसी की समझ में नहीं आया।
फिर भी गाँव के लोग तो मेहमान नवाजी और भक्ति के लिए पूरी दुनिया में जाने जाते हैं, फिर गाँव कहीं का भी हो। तो लोगों ने उसे बैठा लिया और हर कोई कुछ न कुछ लाकर उसे देने लगा। गाँव का ही एक लड़का दौड़ कर गुल्लू को बुला लाया। गुल्लू तो आते ही समझ गया की अंग्रेज संत अंग्रेजी में क्या गा रहा। गाँव वाले बोले, “हमें भी तो समझा दो भाई यह क्या गा रहा है”।
“अरे भाई यह अंग्रेजी में गा रहा है, ‘मोको कहाँ ढूंढें रे बन्दे, मैं तो तेरे पास रे…’। गुल्लू ने गाँव वालों को समझाया। गाँव वालों ने ध्यान से सुना तो समझ में आया वह अंग्रेजी एक्सेंट में हिंदी गीत ही गा रहा था।
भगवान् का बस्ता
संत ने जब गाना खत्म किया तो गाँव वालों से हिंदी में ही पूछा, “क्या किसी ने ईश्वर को देखा है ?”
“नहीं !” सभी ने एक सुर में बोला। लेकिन कुछ लोगों ने गुल्लू को संशय से देखा कि यह तो शहर में रहा है, हो सकता है वहाँ देखा हो ? क्योंकि भगवानों के सारे कपड़े लत्ते गाँव के पुजारी मंदिर में लाते हैं, वह तो शहर से ही आते हैं।
गुल्लू ने भी न में सर हिला दिया। लेकिन उसने संत के पीठ पर रखे बैग और बगल में रखे बैग में जो लिखा था उसे पढ़ लिया था। वह श्रृद्धा से उठा और जाकर बैग में दस रूपये का नोट डाल दिया और पीठ पर रखे बैग पर एक सौ एक रूपये डाल दिए।
गाँव वालों ने पूछा, “ऐसा क्यों किया ? सब तो सामने ही सिक्के डाल रहे थे।”
गुल्लू बताने में झिझकने लगा। गाँव के सभी लोगों के जोर देने पर उसने बताया कि पीठ पर जो बस्ता है उसपर लिखा है कि वह बस्ता स्वयं भगवान खोलते हैं। इसलिए जो भी चाहता है कि उसका दिया हुआ भगवान् को ही मिले वह उस बैग में डाल दे। और बगल वाले बसते में सर्विस व ट्रेवलिंग चार्ज डालना है ताकि संत भगवान् के पास तक लोगों के दान को सही सलामत पहुँचा सके।
बस फिर क्या था लोग टूट पड़े बैग पर। कोई कंगन डाल रहा था तो कोई मंगलसूत्र डाल रहा था कोई अपनी घड़ी डाल रहा था….
डिग्री का महत्व
उस दिन गाँव वालों को समझ में आया कि डिग्री का होना कितना जरुरी है। अगर आज गुल्लू के पास अंग्रेजी की डिग्री नहीं होती तो कितना बड़ा अनर्थ हो जाता। भगवान् स्वयं भेस बदलकर आये और कह रहे थे कि मैं तो तेरे पास रे…और हम गँवार इतना भी नहीं समझ पाए। आज गुल्लू न होता तो भगवान तो चले जाते और हमें पता भी नहीं चलता कि भगवान् आकर चले गए।
संत के जाने के बाद गाँव वालों ने प्रण लिया कि गाँव के बच्चे बच्चे के पास डिग्री होनी चाहिए इसलिए सभी गाँव के लोग चंदा इकट्ठा करेंगे और अपने गाँव में ही प्रिंटिंग प्रेस लगायेंगे जिसे चलाने की जिम्मेदारी गुल्लू की होगी। फिर जितनी मर्जी होगी उतनी डिग्री छापेंगे और पड़ोस के गाँवों को भी डिग्रीधारी बनायेंगे।
गुल्लू ख़ुशी से झूम उठा और जोर से बोला, “बोलो पवनपुत्र हनुमान की…!!!!
“जय…!!!! चारों और से आवाज आई।
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