विरोधी और बाधा में अंतर होता है

मेरे एक मित्र पिछले कई महीने से विरोधियों की तलाश में हैं। उन्हें शुभचिंतक व प्रशंसकों से एलर्जी है। वे लोगों को आवाज देते फिरते हैं कि मेरा विरोध करो। अक्सर कहते हैं, “चीनी मीठी होती है, इमली खट्टी होती है…. जिस किसी में दम है विरोध करके दिखाए !”
अब भला कौन आएगा विरोध करने ?
लेकिन वे जिद पर अड़े हुए हैं।
मेरा निजी अनुभव रहा है कि यदि आप प्रकृति के साथ हैं तो विरोध नहीं होता, केवल बाधाएं आ सकती हैं। वे भी स्थिति को सामान्य करने के लिए। जैसे नदी बहती है तो कई मोड़ मुड़ती है क्योंकि सामने कोई बाधा होती है इसलिए उसे नए पथ खोजना पड़ता है, लेकिन अंत में सागर से मिल ही जाती है।
अब नदी उन बाधाओं को दोष दे तो गलत होगा क्योंकि वे पथ प्रदर्शक थे, बाधा नहीं।
विरोधी और बाधा में अंतर होता है
विरोधी मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं; एक तो वे जिनका आपके कारण कोई क्षति हो रही हो। दूसरे वे जो भ्रमित होते हैं या किसी नेता, अभिनेता या बाबा की अंधभक्ति में डूबे हुए होते हैं। और तीसरे प्रोफेशनल विरोधी होते हैं।
पहले के दो विरोधी आपके साथ तर्क संगत वाद-विवाद करते हैं। उनको बात समझाई भी जा सकती है और उनसे विरोध के मूल कारण को समझा भी जा सकता है। लेकिन प्रोफेशनल विरोधियों के साथ समस्या यह आती है कि उनको केवल यह पता होता है कि विरोध करना है और काम खत्म करने के बाद दिहाड़ी लेनी है। तो चूँकि उनको कुछ वाक्य रटा दिये जाते हैं विरोध करने के लिए, इसलिए वे केवल तोतों की तरह उन वाक्यों को ही दोहराते रहते हैं। पढ़े लिखे ज्यादा होते नहीं हैं और फर्रे चला कर डिग्री ली हुई होती है इसलिए भाषा ज्ञान भी नहीं होता उनको। उनकी भाषा तो वही होती है जो नुक्कड़ के चाय की दुकान में बोली सुनी जाती है या झोपड़-पट्टियों की सामाजिक मान्य भाषा के रूप में प्रचलित होती है।
तो प्रोफेशनल्स से आप कोई वार्ता नहीं कर सकते क्योंकि वे वार्ता करने लायक होते तो दिहाड़ी में विरोध करने का प्रोफेशन नहीं चुनते। कई बार तो घटना कहीं की होती है और विरोध करने का ठेका कहीं और के प्रोफेशनल ले लेते हैं। जैसे जर्मन में जार टूट जाए तो यहाँ के ठेकेदार बाजार बंद करवाने निकल पड़ते हैं। कश्मीर में कोई कंगला हो जाए तो दिल्ली में गमले तोड़ने लगते हैं… लेकिन कहते हैं न, की कोई भी काम बुरा नहीं होता। इसलिए यह भी आजकल एक घर बैठे कमाई का माध्यम बना हुआ है।
बदनाम हुए तो क्या हुआ, नाम न होगा ?
तो मैं अपने मित्र से कहना चाहूँगा कि विरोधी नकारत्मक उर्जा होते हैं, वे अनावश्यक आपको उलझा कर रखते हैं ताकि आप का समय व उर्जा व्यर्थ हो जाए। लेकिन शुभचिंतक या सहयोगी सकारात्मक उर्जा देते हैं ताकि आप अधिक समर्थ व गति के साथ आगे बढ़ सकें। इसलिए यदि विरोधी स्वाभाविक हैं तो वे आपको मार्ग में मिलेंगे ही चाहे कितने ही मीठे बनकर आप चलें। यदि आपका विचार व उद्देश्य सही है, तो वे विरोधी नहीं रहेंगे।
लेकिन यदि विरोधी प्रोफेशनल हैं, तो उनसे उलझने का कोई लाभ नहीं क्योंकि उनका काम है विरोध करना। चलिए आप ने उनकी बात मान भी ली और बैठ गए तो फिर वे कहेंगे कि देखो बैठ गया। अब वे आपके बैठने का विरोध करेंगे। यदि आप खड़े हो गये तो कहेंगे कि देखो खड़ा हो गया। अब वे आपके खड़े होने का विरोध करेंगे। क्योंकि उनका तो प्रोफेशन हैं विरोध करने का।
~ विशुद्ध चैतन्य
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