अपनी तुलना मत करिए दूसरों से कभी
रात उस दिन चाँदनी में नहा कर मदमस्त लग रही थी। लोग घर से बाहर पार्कों में टहल रहे थे और बच्चे खेल कूद में मस्त। हर कोई चाँदनी से नहाई रात की दिल खोल कर तारीफ कर रहे थे। जंगल में हिरण अठखेलियाँ कर रहे थे। रात अपने सौन्दर्य पर इठलाती हुई नदी, झील पहाड़, मैदान हर तरफ छाई हुई थी।
ऐसे में किसी ने चुपके से रात के कान में आकर कहा कि तुमसे सुन्दर और भली पूरी दुनिया में कोई नहीं है। और दिन तो तुम्हारे पैर की धुल के बराबर भी नहीं है। तुम लोगों को शीतलता देती हो, चैन की नींद देती हो, अपनों से मिलने का समय देती हो। जबकि दिन तो आते ही लोगों को घरों से बाहर निकाल देता है, किसानों से कड़ी मेहनत करवाता है, बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है, ऑफिस जाने वालों को ऑफिस जाकर दिन भर काम करना पड़ता है और ऊपर से बॉस की डांट खाना पड़ता है सो अलग…. कुल मिलाकर अपनों को अपनों से दूर करता है। और यदि मेरी बात का विश्वास न हो तो सभी से पूछ लो अभी के अभी ?
रात को बात जंच गई और उसने सभी से जाकर पूछा कि मैं तुम्हें कैसी लगती हूँ ?
सभी चाँदनी से नहाई रात की मादकता में मदमस्त थे, सभी ने कहा कि तुम से प्यारी और सुन्दर इस दुनिया में कोई नहीं। रात ने फिर पूछा कि मुझमें और दिन में से कौन अधिक पसंद है ?
सब ने कहा तुम ही हमें पसंद हो।
यह बात दिन को जब पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा और दुखी भी हुआ कि लोग उसको इतना नापसंद करते हैं। उसने रात से कहा कि अब तुम ही राज करना दुनिया में मैं अब नहीं आऊंगा। रात तो हर सुबह उसके आने का इंतज़ार करती थी, क्योंकि उसके आगोश में ही उसे चैन मिलता था। थोड़ा मन दुखी तो हुआ लेकिन ख़ुशी भी थी कि चलो अब पूरी दुनिया में मेरा ही राज रहेगा।
अगले दिन सूरज नहीं निकला। लोग सूरज की प्रतीक्षा करते रहे लेकिन उस दिन सूरज नहीं निकला। जब दूसरे दिन भी सूरज नहीं निकला तब चारों और हा हा कार मच गया। फूलों ने खिलना बंद कर दिया, भौरों ने गुनगुनाना बंद कर दिया, चिड़ियों ने चहकना बंद कर दिया…. सभी पूछ रहे थे कि क्या हुआ… क्या हुआ ?
किसी के मुँह से निकला कि ये कमबख्त रात कब ख़त्म होगी !!
रात ने जब यह सुना तो उसे बहुत ही ठेस लगी, वह दौड़ कर हिरण के पास गई और पूछी कि क्या मैं अच्छी नहीं हूँ ?
हिरण ने कहा कि नहीं तुम्हारे कारण सारे घास मुरझा गए, दिन नहीं निकलेगा तो घास भी नहीं उगेंगे और हम भूखे मर जायेंगे।
रात गई फूलों के पास उनसे भी वही प्रश्न किया, उन्होंने भी वही कहा कि दिन नहीं निकलेगा तो हम भी मर जायेंगे….
इस प्रकार जिसके भी पास गयी सभी ने एक ही कारण बताया कि दिन नहीं निकलेगा तो सृष्टि भी नहीं रहेगी।
अब रात बहुत ही दुखी हो गयी। वह फूट फूट कर रोने लगी कि कोई मुझे पसंद नहीं करता, सब मुझसे नफरत करते हैं।
हवा वहाँ से गुजर रही थी तो उसने रात का रोना सुना और रात के पास पहुँचा। प्रेम से सहलाते हुए उसने कहा कि चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा और फिर आगे चला गया।
अगले दिन भी सूरज नहीं निकला तो हर कोई रात को कोसने लगा। रात को बहुत ही गुस्सा आया और उसने कहा यदि मैं इतनी ही बुरी हूँ तो आज के बाद मैं फिर कभी नहीं आउंगी। यह कहकर वह वहाँ से चली गई और दिन निकल आया।
चारो और खुशियाँ छा गई। चिड़ियों ने गाना शुरू कर दिया और फूलों ने मुस्कुराना। सूरज मंद मंद मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ा। गर्मी बढ़ी और बढती गई लेकिन रात नहीं आई। दूसरे दिन भी नहीं, तीसरे दिन भी नहीं…. इस तरह पुरे हफ्ता गुजर गया और रात नहीं आई।
चारों और फिर हा हा कार मच गया। लोग बीमार पड़ने लगे, कुछ पागल होने लगे। तब हवा का एक झोंका आया और उनसे पूछा कि कुछ दिन पहले तो तुम रात को कोस रहे थे अब क्या हुआ ?
वह तो चली गई अब कभी नहीं लौटेगी। अब लोगों की समझ नहीं आ रहा था कि रात को ढूंढें तो कहाँ ढूंढें ?
लोगों ने हवा से कहा कि तुम ही घूमते रहते हो दुनियाभर में, जाकर पता लगाओ न कहाँ है रात ?
हवा बोला मुझे तो पता है तुम चलना चाहो तो चलो, मिलवा देता हूँ। लोग हवा के साथ गए और रात से मिले जो एक गुफा के अंदर आराम कर रही थी। लोगों ने बहुत हाथ पैर जोड़े लेकिन रात ने निकलने से साफ़ मना कर दिया। अंत में हार कर वे फिर सूरज के पास गए और उससे प्रार्थना की कि अपना प्रकोप कम कर दो हम सब इस गर्मीं में झुलस रहें हैं। लेकिन सूरज ने कहा की मैं कैसे कम कर सकता हूँ, वह तो रात है जो मुझे अपने आगोश में ले लेती है और मुझे शीतल कर देती है। इसलिए सुबह जब में आता हूँ तो शीतलता लिए हुए आता हूँ। इसलिए रात को ही बुलाइए वही राहत दे सकती है।
लोगों की समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे समझाएं रात को। हवा फिर आया और बोला ठीक है मैं उसे मना कर लाता हूँ और यह कहकर व सनसनाता हुआ रात के पास पहुंचा। रात से बोला, देखिये आप इस प्रकार रूठी रहेंगी तो सभी और अशांति फ़ैल जायगी। आप चलिए और उनपर अपनी शीतलता और प्रेम बरसाइये। लेकिन रात बोली कि लोग मुझे पसंद नहीं करते इसलिए मैं अब बाहर नहीं आउंगी।
हवा बोला, जब आप चांदनी में नहाकर निकलती हैं तो क्या लोग पसंद नहीं करते थे ?
हर कोई शाम होने का इंतज़ार करता था और तुम्हारे आने पर लोग अपने अपने घरों को लौट पड़ते थे…
रात बोली वह तो ठीक है लेकिन उस दिन लोगों ने मुझे कितना भला बुरा कहा था ?
हवा बोला आपका अहंकार था कि लोग केवल आपको चाहते हैं इसलिए वह सब सुनना पड़ा। हर किसी की अपनी एक जगह है और हर किसी का अपना एक कर्तव्य है। यदि हम अपनी तुलना दूसरे के साथ करेंगे और श्रेष्ठ समझेंगे तो हानि तो उठानी ही पड़ेगी। आप दिन की जगह नहीं ले सकती और दिन आपकी जगह नहीं ले सकता। और दोनों के बिना सृष्टि नहीं चल सकती इसीलिए आप चलिए और लोगों को भी मैं समझा दूँगा कि दिन और रात दोनों के बिना उनका आस्तित्व भी नहीं है। इसलिए दोनों की तुलना कभी न करें दोनों के अपने गुण हैं और दुर्गुण। दोनों को स्वीकार करें।
रात को बात समझ में आई और तब वह बाहर आई और सृष्टि को अपने प्रेम और शीतलता भरे आगोश में ले लिया।