संन्यासी हो ही नहीं सकते, क्योंकि आप राजनीति की बातें करते हैं !

अभी दो-तीन दिन पहले किसी सज्जन धार्मिक व्यक्ति ने मुझसे कहा की आप पाखंडी हो। सन्यासी हो ही नहीं सकते, क्योंकि आप राजनीति की बातें करते हैं, क्योंकि आप दुनियादारी की बातें करते हैं, क्योंकि आपका ध्यान ईश्वर में नहीं, देश और समाज में लगा है। तो आप सन्यासी कैसे हो गए, आपका ध्यान तो ईश्वर में रहना चाहिए, आपका चिंतन मनन ईश्वर होना चाहिए वही सत्य है बाकी जगत तो मिथ्या है।
मैं अपने उन सज्जन धार्मिक मित्र से कहना चाहता हूँ कि यदि देश, समाज और राजनीति की बातें करना ईश्वर भक्ति नहीं है, तो फिर आपके धार्मिक ग्रन्थ झूठे हैं, जो यह कहते हैं ईश्वर कण-कण में विद्धमान है। जो यह कहते हैं परोपकार ही सच्ची पूजा और ईश्वर की भक्ति है। ठाकुर दयानंद देव जी ने कहा था, “यदि जगत मिथ्या है, तो ईश्वर भी मिथ्या है। क्योंकि मिथ्या से मिथ्या ही उत्पन्न हो सकता है, सत्य नहीं।”
सही कहा था उन्होंने क्योंकि झूठ ही झूठ को खड़ा कर सकता है, जबकि सत्य से केवल सत्य ही रचा जा सकता है। क्योंकि सत्य को झूठ के, प्रकाश को अँधेरे की आवश्यकता नहीं पड़ती स्वयं को सिद्ध करने के लिए।
ठीक इसी प्रकार मुझमें लाख बुराइयाँ सही, लेकिन मैं आप जैसे सज्जन धार्मिक विद्वान् बनने में कोई रूचि नहीं रखता। मैं अज्ञानी ही ठीक हूँ, मुर्ख ही ठीक हूँ। मुझे आप जैसे ईश्वर के खोजी बनने में कोई रूचि नहीं है, जो जल में खड़े होकर जल खोजते है, जो हवा में तैरते हुए हवा को खोजते हैं, जो आकाश पाना चाहते हैं।
मुझे वह सद्गुरु, संत-महंत भी नहीं बनना जो ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताते हैं। स्वयं मार्ग में बैठकर जाने वालों का टिकट काटते हैं और उन टिकट के पैसों से, अपने लिए आश्रम और महल बनाते हैं, नौकर चाकर रखते हैं….. लेकिन दुनिया को कहते है की जगत माया है, मिथ्या है।
मैं दुनिया में आया हूँ केवल इसलिए, की धर्म के ठेकेदारों द्वारा चढ़ाया गया आदिकालीन चश्मा और धर्म के नाम के कम्बल से उन्हें मुक्त कर सकूं। उन्हें समझा सकूँ कि ये हरे और लाल रंग का चश्मा उतारो और ईश्वर ने जो आँखे दी हैं उससे देखो तो दुनिया का असली रंग दिखाई देगा। मैं उन्हें बताना चाहता हूँ की जिस कम्बल को तुमने धर्म के नाम पर सदियों से ओढ़ रखा है, वह धर्म नहीं है केवल कम्बल है। यह कम्बल जिसके भी ऊपर डालोगे वही धार्मिक हो जायगा और कम्बल हटा दोगे हो अधार्मिक। जबकि धर्म सनातन है, न तो वह किसी पर डाला जा सकता है और न ही निकाला जा सकता है। धर्म के ठेकेदारों को छोड़ कर सभी दुखी हैं, क्योंकि यही हरा लाल कम्बल और चश्मा बेचना ही उनका धर्म है और वे अपने धर्म का पुरी ईमानदारी से पालन कर रहे हैं। लेकिन अब आम लोगों को भी समझना है की चश्में और कम्बल खरीदना ही धर्म नहीं है बिना कम्बल और चश्में के दुनिया को समझना और जानना ही धर्म है।
मैं जगत की हर वस्तुओं का सम्मान करता हूँ क्योंकि जगत का सम्मान ही ईश्वर का सम्मान है।-विशुद्ध चैतन्य
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