कर्म, ईश्वर और भाग्य क्या भ्रम हैं?

हमारा शरीर एक अत्याधुनिक मशीन की तरह है, जिसमें एक इनबिल्ट सुपर कंप्यूटर है। इसे चलाने के लिए एक चिप, जिसे ROM (Read Only Memory) कहते हैं, पहले से प्रीलोडेड होती है। इसे अवचेतन मन या सबकॉन्शियस माइंड भी कहते हैं। अधिकांश लोग केवल लॉजिकल ब्रेन का ही उपयोग करते हैं और उसी के आधार पर अपने कर्म और व्यवहार निर्धारित करते हैं।

ईश्वर, भाग्य और कर्म को कैसे समझें?
ईश्वर और भाग्य को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि “बुद्धि से परे जाकर ही समाधान मिलता है।” हमारी बुद्धि, अर्थात लॉजिकल ब्रेन, वास्तव में एक जैविक रैम (RAM) है, जिसमें हम डेटा सेव और डिलीट कर सकते हैं। इसका मतलब है कि बुद्धि एक सीमित संसाधन है और इसकी क्षमता के बाहर जाकर ही आध्यात्मिक अनुभव पाया जा सकता है।
बुद्धि और आध्यात्म का संबंध
आध्यात्म को समझने के लिए भौतिक तत्वों का प्रयोग आवश्यक है, क्योंकि ये प्रश्न लॉजिकल ब्रेन के हैं। लॉजिकल ब्रेन का अध्यात्म से कोई सीधा संबंध नहीं होता। यह वेद, गीता, कुरान, बाइबल की व्याख्या कर सकता है, पर उनमें समाई आध्यात्मिकता को समझने की शक्ति इसमें नहीं है।
देव (ईश्वर) और देवत (भाग्य) का महत्व
क्या कर्म के बिना भाग्य फल प्राप्त कर सकते हैं? इस सवाल का जवाब देने से पहले यह समझना आवश्यक है कि ईश्वर और भाग्य एक प्रकार से हमारे अंदर पहले से प्रोग्राम्ड हैं। जैसे कंप्यूटर में RAM और प्रोसेसर होते हैं, वैसे ही हमारे अंदर भी एक प्रोग्राम है। कर्म के बल पर हम बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, लेकिन देव (ईश्वर) द्वारा तय किए गए दायरे से बाहर नहीं जा सकते।
कर्म और भाग्य का सह-संबंध
अगर कर्म से ही सबकुछ हासिल किया जा सकता, तो गधा, जो अत्यंत मेहनती होता है, अपना भाग्य बदल पाता। सबसे अधिक मेहनत मजदूर करते हैं, लेकिन क्या वे इंजीनियर से अधिक कमाते हैं? इसी तरह, किसी प्रतिष्ठित संस्थान के सभी छात्र एक जैसे वेतन नहीं पाते, क्योंकि कर्म के साथ भाग्य का भी योगदान होता है।
ईश्वर और भाग्य की भूमिका
कर्म करने से पहले हमारे पास उचित साधन होना जरूरी है। जैसे मैं कंप्यूटर पर हिंदी टाइप कर रहा हूँ, पर इसमें हिंदी फॉन्ट न हो तो क्या हिंदी में टाइप संभव होता? इसलिए, कर्म के साथ ईश्वर और भाग्य का भी योगदान महत्वपूर्ण है।
लॉजिकल ब्रेन से परे
ईश्वर और भाग्य को केवल लॉजिकल ब्रेन से समझना संभव नहीं है। इसके लिए हमें मूर्ति पूजा, प्रार्थना, और जटिल पूजन विधियों का सहारा लेना होता है, ताकि बुद्धि से परे जाकर ब्रह्म को समझ सकें। जैसे बिना कंप्यूटर की थ्योरी जाने भी उसका प्रयोग किया जा सकता है, उसी तरह आध्यात्मिकता को समझने के लिए हमें ईश्वर और भाग्य को लेकर गहरी समझ प्राप्त करने की जरूरत होती है।
~विशुद्ध चैतन्य
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