।।पर निंदा परम सुखं ।।
लेकिन क्या इतनी ही ईमानदारी से आपने कभी अपनी ही धज्जियाँ उड़ाई है ?
जरा एक बार स्वयं पर निगाह डालिए और देखिये कि क्या क्या कमियाँ ऐसी आपमें हैं जो किसी और में होती तो आप उसे बर्दाश्त नहीं कर सकते थे या कम से उसे शर्मिंदा तो अवश्य ही करते ? थोड़ा दिमाग पर जोर डालिए !
इसे आप एक ध्यान की तरह लीजिये और रोज एक निश्चित समय पर कम से कम दस मिनट के लिए एकाग्र होकर आत्मविश्लेषण कीजिए कि क्या क्या आपमें निंदनीय है ? उसे कहीं पर लिख कर रख लीजिये और हर हफ्ते उस लिस्ट को चेक कीजिये ।
एक समय आएगा जब आपके पास अपनी निंदा करने के लिए कुछ नहीं बचेगा और उस दिन आप का स्वयं से साक्षात्कार हो जाएगा ।
नोट: यह मेरा स्वयं का प्रयोग है इसलिए इसे किसी अन्य ग्रंथों में तलाश करके तथ्य ढूँढने की कोशिश न करें । यदि आपको उचित लगे तभी इस प्रयोग को कीजिये अन्यथा, ‘पर निंदा परम सुखं’ का सामाजिक रूप से स्वीकृत व सम्मानीय प्रयोग तो आप कर ही रहें हैं ।
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