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दुनिया की सबसे महंगी कॉफी
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Black Ivory Coffee: दुनिया की सबसे महंगी कॉफी

दुनिया में अगर कोई पेय पदार्थ राजसी ठाठ से जुड़ा हुआ माना जाता है, तो वह है — कॉफी। लेकिन जब कॉफी की कीमत एक सामान्य भारतीय की महीने की तनख्वाह से भी अधिक हो जाए, तो सवाल उठना लाज़िमी है: क्या यह सिर्फ स्वाद की बात है, या एक सोची-समझी बाज़ारी चाल? आज हम…

औसत आयु आँकड़ों का भ्रमजाल

लंबी उम्र का लालीपॉप: औसत आयु का भ्रमजाल और बीमारियों का व्यापार

वाह! भारत में औसत जीवन प्रत्याशा 37 से बढ़कर 70 वर्ष हो गई! टीवी पर चमकते विशेषज्ञ ऐसी मुस्कान बिखेरते हैं मानो उन्होंने सचमुच अमरत्व का नुस्खा खोज लिया हो। तालियाँ बजनी चाहिए, है ना? लेकिन रुकिए, ज़रा ठहरिए। क्या यह सचमुच प्रगति का स्वर्णिम अध्याय है, या फिर यह आँकड़ों का वही पुराना मायाजाल…

पत्रकारिता या प्रचारतंत्र
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भारतीय मीडिया की विश्वसनीयता पर कॉरपोरेट का शिकंजा

पत्रकारिता या प्रचारतंत्र ? जिस समाज में पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाती हो, वहां जब यह ही स्तंभ पूंजी के बोझ तले झुक जाए, तो पूरा ढांचा असंतुलित हो जाता है। आज़ादी के बाद भारत ने कई उतार-चढ़ाव देखे, लेकिन आज का मीडिया जिस मोड़ पर खड़ा है, वहाँ सच्चाई बिकती नहीं—बल्कि दबा दी…

क्या प्रतिभा कद से मापी जाती है
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क्या प्रतिभा कद से मापी जाती है ?

🌟 हिंदी सिनेमा में छोटे कद के महान कलाकारों की अनदेखी यात्रा जब हम विश्वविख्यात कलाकारों की बात करते हैं, तो अक्सर हमारे सामने एक प्रभावशाली व्यक्तित्व वाली लंबी कद-काठी की छवि उभरती है — जैसे अमिताभ बच्चन, टॉम क्रूज़, या इरफान खान। परंतु जब सवाल उठता है छोटे कद वाले अभिनेताओं का, तो सबसे…

युद्ध विराम देशहित या व्यावसायिक विवशता
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युद्ध-विराम: देशहित या व्यावसायिक विवशता ?

कल से मन में गहरी हलचल है—युद्ध, युद्धविराम और तिरंगा यात्रा की इस बनावटी नौटंकी को लेकर।जो निर्दोष मारे गए, जिनके घर-परिवार उजड़ गए, वे सब इस राजनैतिक खेल के मोहरे बनकर रह गए। नेताओं ने बड़ी सहजता से हाथ मिला लिए — ठीक वैसे ही जैसे दो शतरंज खिलाड़ी अपनी गोटियाँ समेटकर, खेल के…

चिताओं पर सिंकती है राजनैतिक रोटियाँ
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निर्दोषों की चिताओं पर सिंकती है राजनैतिक रोटियाँ

22 अप्रैल 2025, पहलगाम — एक शांत घाटी, जहां केवल देवदार की खुशबू और झरनों की नमी होनी चाहिए थी, वहाँ गूंजती हैं गोलियों की आवाज़ें। 26 निर्दोष लोग मार दिए गए — धर्म पूछकर। इंसान को इंसान नहीं, मजहब के चश्मे से देखा गया। इंसानियत हार गई, राजनीति जीत गई। पूरा देश शोक में…