Author: विशुद्ध चैतन्य

A Sannyasi, Author, Blogger, and Former State Spoke Person for the Swabhiman Party-Jharkhand.
jid hai shor machaane kii
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दीपावली: दीयों का त्यौहार या शोर-शराबे का ?

उत्सवों का उद्देश्य होता है हर्षोल्लास के साथ पारिवारिक और सामाजिक सम्बन्धों को सशक्त बनाना, प्रेम और आनन्द बाँटना और साथ दरिद्रों को भोजन और वस्त्र दान करना। दान करने का मुख्य उद्देश्य होता है अपनी समृद्धि का अहंकार न हो जाये, इसलिए कुछ अंश दूसरों को बाँटकर उन्हें भी अपनी प्रसन्नता में सम्मिलित करना।…

parivartan hi sansar ka niyam hai
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परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है – ठहराव का नहीं

प्रकृति सदैव नवीनता को अपनाती है, जबकि अक्सर धार्मिक लोग पुरातन चीजों में आस्था रखते हैं। प्रकृति का नियम है कि यदि कुछ नया, बेहतर, या उन्नत संभव है तो वह पुराने को मिटाकर नया रचती है। चाहे वह डायनासौर जैसे विशालकाय जीवों का विलुप्त होना हो या मंगल ग्रह को निर्जीव करके पृथ्वी को…

bharat ek krishi pradhan desh
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भारत का कृषि प्रधान देश होने का भ्रम

प्रारंभिक भ्रम हममें से अधिकांश ने बचपन में पढ़ा था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। लेकिन जैसे ही गाँव से निकलकर शहरों में कदम रखा, असलियत सामने आई। भारत एक ऐसा देश बन चुका है जहाँ आम नागरिकों का जीवन माफिया और दलालों के हाथों में है। यहाँ जन्म लेने वाला हर व्यक्ति…

sannyasi
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पिछले साल 3 नवंबर को मैंने आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने का निर्णय लिया

क्या आपने कभी सोचा है कि जीवन में हम कितनी चीजों के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं? कितनी बार हमारे अपने ही शुभचिंतक और हितैषी हमारे निर्णयों के कारण दूर हो जाते हैं? पिछले साल 3 नवंबर को मैंने भी ऐसा एक कदम उठाया – आश्रम छोड़कर गाँव के एक साधारण घर में रहने…

jivan ka sachcha anand
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चुनमुन परदेसी: जीवन का सच्चा आनंद

कई हजार वर्ष पुरानी बात है। एक महान संन्यासी हुआ करते थे, जिनका नाम था चुनमुन परदेसी। चुनमुन परदेसी का व्यक्तित्व बड़ा ही विचित्र था। उन्हें लिखने का शौक था और उनकी लिखी हजारों किताबें बाज़ार में उपलब्ध थीं। इन किताबों से लोग प्रेरणा लेते थे और कई बच्चे तो इन्हें पढ़कर बड़े-बड़े सरकारी अधिकारी…

jab bharat sone kii chidiya tha
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प्राचीन दिवाली: जब भारत सोने की चिड़िया था

कई हजार वर्ष पुरानी बात है। उन दिनों भारत को “सोने की चिड़िया” कहा जाता था, क्योंकि यहाँ समृद्धि और सुख की कोई कमी नहीं थी। ऐसा लगता था मानो यह सोने के पिंजरे में बंद कोई शांति से सोती हुई चिड़िया हो। देश की प्रजा इतनी खुशहाल और संपन्न थी कि जीवन में न…

maan samman
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पद-प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित मान-सम्मान और अपनापन आपका नहीं है

यदि पद, प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित हो सम्मान और अपनापन, तो फिर वह आपका नहीं है। उन्हें अपना समझने की मूर्खता कभी न करें। हमारा अपना कुछ नहीं है इस जगत में। जो कुछ भी हमें इस जगत में मिलता है, वह सब शर्तों पर मिलता है, लीज़ पर मिलता है। कोई हमें मान-सम्मान…

shoodra pravriti
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शूद्र प्रवृत्ति के व्यक्ति की पहचान क्या है ?

शूद्र प्रवृत्ति के व्यक्तियों में विवेक-बुद्धि का अभाव होता है, इसलिए वे नैतिक और अनैतिक में अंतर नहीं कर पाते। वे आदेशों के अधीन होते हैं और केवल आदेशों का पालन करते हैं बिना नीति-अनीति का निर्णय किए। शूद्र प्रवृत्ति के व्यक्ति ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकते, जिसमें विवेक-बुद्धि, चिंतन-मनन आवश्यक हो। यदि…

chakravarti samrat aur sumeru parvat
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चक्रवर्ती सम्राट और सुमेरु पर्वत

जैन शास्त्रों में एक बड़ी प्यारी कथा है। तुमने चक्रवर्ती शब्द सुना होगा, लेकिन ठीक-ठीक शायद उसका अर्थबोध तुम्हें न हो। चक्रवर्ती का अर्थ होता है: वह व्यक्ति जो छहों महाद्वीपों का सम्राट हो, सारी पृथ्वी का। जिसका राज्य कहीं भी समाप्त न होता हो, जिसके राज्य की कोई सीमा न हो, जिसका चक्र पृथ्वी…

dharmsankat mein chunmun pardesi
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धर्मसंकट में चुनमुन परदेसी

चुनमुन परदेसी अपने सेनापतियों के साथ मंत्रणा कक्ष में बैठे गहन मंत्रणा कर रहे थे। सुबह सुबह ही कौरवों के राजदूत ने महाभारत युद्ध में उनकी ओर से युद्ध में सम्मालित होने का निमंत्रण दिया था। शाम को पांडवों के राजदूत के आने की सूचना मिली थी। तो मंत्रणा यह चल रही थी कि कौरवों…

dharm, dhamm aur aadhyatma
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धर्म, धम्म और आध्यात्म में क्या अंतर है ?

धर्म क्या है ? विभिन्न ग्रन्थों, विद्वानों ने धर्म की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। किसी के लिए धर्म कर्तव्य है, तो किसी के लिए धर्म आचरण है, तो किसी के लिए धर्म स्वभाव है, तो किसी के लिए धर्म गुण है। ओशो कहते हैं धर्म विद्रोह है। लेकिन मैं कहता हूँ कि धर्म वह आचरण…

ek sannyasi ke gun
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प्रिय ओशो, एक संन्यासी के गुण क्या हैं ?

संन्यासी को परिभाषित करना बहुत कठिन है, और यदि आप मेरे संन्यासियों को परिभाषित करने जा रहे हैं तो यह और भी कठिन है। संन्यास मूलतः सभी संरचनाओं के प्रति विद्रोह है, इसलिए इसे परिभाषित करना कठिन है। संन्यास जीवन को बिना किसी संरचना के जीने का एक तरीका है। संन्यास का अर्थ है एक…