
प्राचीन काल में जब कोई साधु-संन्यासियों से किसी भी प्रकार कि सहायता या सुझाव लिया करता था, तो स्वतः ही दक्षिणा दिया करता था। लेकिन आधुनिक युग में साधु-संन्यासियों की गरिमा गिर चुकी है। और लोगों की नजर में फालतू, निकम्मा, कामचोर व्यक्ति से अधिक कुछ नहीं होता एक गरीब संन्यासी। इसलिए जो भी फ्री होता है, दुनिया भर का कूड़ा कर्कट उड़ेलने चला आता है मेरे पास या फोन कर देता है।
अधिकांश लोग जो मुझसे चर्चा करते हैं, वे सभी ज्ञानी ही होते हैं और विभिन्न विषयों के विद्वान होते हैं। और उनसे चर्चा करके मैं बहुत कुछ सीखता और समझता भी हूँ।
लेकिन कई बार ज्ञान का ओवरडोज़ भी हो जाता है। क्योंकि सभी चाहते हैं कि उनके गुरुओं, धार्मिक ग्रन्थों ने जो ज्ञान दिया है, वह मुझे भी जानना चाहिए। लेकिन दुर्भाग्य से मेरे मस्तिष्क की क्षमता बहुत सीमित है, इसलिए मेरे लिए सभी का ज्ञान अपने मस्तिष्क में संग्रह कर पाना संभव नहीं होता।
कई बार मानसिक तनाव से पीड़ित व्यक्ति मुझे फोन करते है साइकोलॉजिकल काउन्सलिन्ग अर्थात सलाह के लिए। और उनसे कई-कई घंटे बातें भी करता हूँ, ताकि उन्हें मानसिक संताप से मुक्ति दिला सकूँ। लेकिन होता यह है कि दुनिया भर के उदाहरण देकर समझाने के बाद भी व्यक्ति वहीं का वहीं अटका रहता है।
तब बहुत दुख होता है कि कई-कई घंटों की चर्चा के बाद भी व्यक्ति को कोई लाभ नहीं हो पा रहा। तब स्वयं को दोषी मानता हूँ कि मैं उसे सही तरह से समझा नहीं पाया। लेकिन सत्य यह भी है कि बहुत से लोग कोई समाधान नहीं चाहते, केवल अपना दुखड़ा रोना चाहते हैं।
व्यक्तिगत परामर्श के लिए संपर्क करें
इसलिए अब निर्णय लिया है मैंने कि साइकोलॉजिकल, होमियोपैथिक, आयुर्वेदिक, अंकज्योतिष (Numerology) काउन्सलिन्ग के लिए शुल्क लिया करूंगा। क्योंकि जब व्यक्ति शुल्क चुकाता है, तब ध्यान से सुनता और समझता है। क्योंकि मस्तिष्क बनिया होता है इसीलिए वह ध्यान रखता है कि फीस दी गयी है और यदि ध्यान नहीं दिया तो फीस बर्बाद हो जाएगी।
कई लोगों को मेरे सुझाए होमियोपैथिक दवाओं से लाभ हुआ, कई लोगों को मुझसे बात करने के बाद मानसिक तनाव से मुक्ति मिली। कुछ तो ऐसे भी थे जो आत्महत्या करना चाहते थे, लेकिन मुझसे बात करने के बाद वे सामान्य जीवन जीने लगे। समस्या का समाधान हो जाने के बाद किसी ने दक्षिणा देना आवश्यक नहीं समझा। क्योंकि गरीब संन्यासी को दक्षिणा कौन देता है भला ?
दान-दक्षिणा तो दिया जाता है करोड़पति बाबाओं, राजनेताओं को और वह भी मुँह माँगा।
पैसा कमाने के लिए संन्यासी बना भी नहीं था, लेकिन दस वर्षों के अनुभवों के बाद यही लग रहा है कि निःशुल्क सुझाव का कोई लाभ होता नहीं अधिकांश लोगों पर। इसलिए शुल्क लेने पर विचार कर रहा हूँ।
यदि वार्तालाप, विचार-विमर्श का उद्देश्य समस्या का समाधान नहीं है, तो वार्तालाप सिवाय गाल बजाकर समय नष्ट के और कोई लाभ नहीं।
Support Vishuddha Chintan

स्वामी जी हमें ठीक कर दीजीए 🙏🙏
कैसे ?
Sahi baat
सही निर्णय लिया है आपने
जी धन्यवाद