समाज: एक प्रायोजित छलावा
जब विद्वान मुझसे पूछते हैं—”क्या उखाड़ लिया अब तक के जीवन में? समाज और देश के लिए क्या किया? कितनों को बदला, कितनों को सुधारा? माँ-बाप के लिए क्या दिया?”—तो मेरे सामने वह रात कौंध जाती है। वह सर्द रात, जब मैं भूख से बिलखता सड़क पर पड़ा था, ठंड से ठिठुरता हुआ, और समाज…