आध्यात्म

dharm, dhamm aur aadhyatma
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धर्म, धम्म और आध्यात्म में क्या अंतर है ?

धर्म क्या है ? विभिन्न ग्रन्थों, विद्वानों ने धर्म की अलग-अलग परिभाषाएँ दी हैं। किसी के लिए धर्म कर्तव्य है, तो किसी के लिए धर्म आचरण है, तो किसी के लिए धर्म स्वभाव है, तो किसी के लिए धर्म गुण है। ओशो कहते हैं धर्म विद्रोह है। लेकिन मैं कहता हूँ कि धर्म वह आचरण…

waterfall
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क्यों नहीं हो पाता अंधविश्वासों से मुक्त मानव समाज ?

क्या अपने जीवन से निराश हैं ? क्या बनता हुआ काम बिगड़ जाता है ? क्या पैसा आपके हाथ में टिकता नहीं है ? क्या घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहता है ? तो विश्वप्रसिद्ध गुरुजी से मिलिये आज ही और समस्त समस्याओं से छुटकारा पाइए। ऐसे बहुत से विज्ञापन देखें होंगे आपने।…

आध्यात्म और एलोपैथ
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आध्यात्मिक यात्रा में बाधक है एलोपैथ !

यदि मैं कहूँ कि आध्यात्मिक यात्रा में बाधक है एलोपैथ तो स्वाभाविक है कि आपको आश्चर्य ही होगा। यह भी हो सकता है कि आप कहें मुझसे कि किसी अच्छे मनोचिकित्सक से अपना उपचार करा लो ? लेकिन सत्य यही है कि एलोपैथ बाधक है आध्यात्मिक यात्रा में और इस तर्क को समझने के लिए…

व्यवसाय
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शिक्षा, चिकित्सा, न्याय, धर्म, आस्था, श्रद्धा और विश्वास का व्यवसाय

क्यों करते हैं लोग अपने गुरु, अपने पंथ, अपने मजहब, अपने धार्मिक ग्रन्थों का प्रचार ? जिन्हें हम धर्मगुरु, धर्माचार्य कहते हैं, संन्यासी कहते हैं क्या वे वास्तव में संन्यासी होते हैं, या केवल मार्केटिंग एक्ज़्क्युटिव होते हैं ? ये जो सड़कों पर हरे रामा हरे कृष्णा या बाबा नाम केवलम या बाबाजी लाएँगे क्रान्ति,…

धर्म और अध्यात्म के नाम पर गुलाम बनाया गया
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देश और समाज की चिंता करने की बजाय माफियाओं के साथ मिलकर लूटो और लुटवाओ

क्या कभी सोचा है आप लोगों ने कि पूरे विश्व की जनता को धर्म, आध्यात्म और सभ्यता की आढ़ में कैसे कायर, गुलाम और #zombie बनाया गया ? सोचा है कभी कि धर्म और आध्यात्म आज पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज, व्रत-उपवास, कर्मकाण्ड, मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च तक ही सिमट कर क्यों रह गया ? क्योंकि धर्म खतरे में…

being spiritual won't make you a better person by society's standard.
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आज आध्यात्मिक व्यक्ति या साधु-संत उन्हें ही माना जाता है जो….

किताबी धार्मिक यानि साम्प्रदायिक होने और आध्यात्मिक होने में बहुत अंतर होता है। धार्मिक व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकृत व सम्मानित होता है, क्योंकि वह समाज, सरकार और धर्म और जातियों के ठेकेदारों की मन-भावन बातें करता है। वह वही करता और कहता है जो समाज, सरकार और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वाले…

hosh na rah jaaye
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पड़े हैं भक्तिमार्ग में बिलकुल वैसे, कीचड़ में ध्यानस्थ पड़ा हो सूअर जैसे

धर्माचार्यों और आध्यात्मिक गुरुओं ने यही सिखाया कि ध्यान करो, पड़े रहो सूअरों की तरह ईश्वर स्वयं आएंगे और अधर्मियों, अत्याचारियों और देश व जनता को लूटने और लुटवाने वालों का नाश करेंगे।

पूर्व जन्मों के संचित कर्म
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पूर्वजन्मों का संचित कर्म तय करता है कि आपका जीवन कैसा होगा

सोशल मीडिया पर आध्यात्म मत परोसिए। क्योंकि आध्यात्म कोई परोसने की चीज है ही नहीं। आध्यात्म तो स्वयं को जानने, समझने का माध्यम मात्र है। बहुत से लोग मुझसे अपेक्षा करते हैं कि सोशल मीडिया पर राजनैतिक लेखों की बजाय आध्यात्मिक लेख लिखा करूँ। लेकिन आध्यात्मिक लेख लिखने का लाभ क्या है ? ये जो…

The Naked Truth
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The Naked Truth: सत्य पूर्णतः नग्न और नैतिक-अनैतिक से परे होता है

यदि कोई पूछे मुझसे कि आध्यात्मिक और अदानी-अंबानी होने में कोई अंतर है ? तो मेरा उत्तर होगा आध्यात्मिक होने और अडानी-अंबानी होने में कोई अंतर नहीं। धार्मिक होने और अडानी-अंबानी होने में भी कोई अंतर नहीं। क्योंकि आध्यात्मिक और धार्मिक दोनों की दौड़ धन, सम्पत्ति और ऐश्वर्य के लिए ही है। बड़े-बड़े त्यागी बैरागी,…

पारम्परिक संन्यास और आश्रम नहीं है अधर्म व अधर्मियों के विरुद्ध
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पारम्परिक संन्यास और आश्रम नहीं हैं अधर्म और अधर्मियों के विरुद्ध

पारम्परिक आश्रमों में वे ही लोग पाये जाते है, जो भोजन, भजन, शयन और मैं सुखी तो जग सुखी के सिद्धान्त पर जीते हैं, या फिर वे लोग जो समाज सेवा के नाम पर व्यवसाय खोले बैठे हैं।

उनकी रुचि अर्थ में है
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उनकी रूचि अर्थ (धन) में हैं धर्म और आध्यात्म में नहीं

ठाकुर दयानन्द देव (१८८१-१९३७) ने कहा था, “मैं भौतिक जगत और अध्यात्मिक जगत के बीच सेतु बनाना चाहता हूँ”। उनका कहना था, “True welfare lies in harmony between the spiritual and the material. Spirituality without material well bring tends to decay and emasculation. Materialism, if it is not allied with the spiritual realization, if it…

shri krishna arjuna
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गीता सार: जो हुआ अच्छा हुआ और जो हो रहा है अच्छा ही हो रहा है !

गीता सार: अकसर ऐसे महान विद्वानों से मेरी भेंट हो जाती है, जो बात-बात पर श्रीकृष्ण ने कहा था…श्री राम ने कहा था….. कहकर ही अपनी बात कहते हैं। मेरी समझ में यह नहीं आता कि राम और कृष्ण जो कुछ कहा अपने अनुभव व ज्ञान से कहा, लेकिन अब उनको दोहराने का लाभ क्या…