आधुनिकता

हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक
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हिन्दुत्व और संस्कृति के तथाकथित रक्षक

आजकल जब भी हम हिंदुत्व और हिंदू संस्कृति की रक्षा का ढोंग करने वाले तथाकथित रक्षकों को देखते हैं, तो उनका स्वरूप हमेशा विरोधाभासों से भरा नजर आता है। इनकी उपस्थिति में पाखंड और विडंबना स्पष्ट रूप से झलकती है। पश्चिमी संस्कृति का विरोध, लेकिन पश्चिमी वस्त्र और उपकरण? पश्चिमी त्योहारों का विरोध करते हुए…

एकांतप्रिय होने कोई बीमारी नहीं है
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आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है

जो व्यक्ति समाज और भीड़ से अलग एकांत में रहना पसंद करते हैं और सीमित लोगों से ही मिलते-जुलते या बातचीत करते हैं, उन्हें मनोविज्ञान में “इंट्रोवर्ट” (Introvert) कहा जाता है। इंट्रोवर्ट के लक्षण: 1. एकांत प्रियता: ऐसे लोग अकेले समय बिताना पसंद करते हैं और इसमें उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनके लिए एकांत एक…

प्राचीन भोजन परंपरा और आधुनिक विकसित समाज
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प्राचीन भोजन परंपरा और आधुनिक विकसित समाज

प्राचीनकाल में जब हम छोटे बच्चे हुए करते थे, तब भोजन बड़े सम्मान से सजा कर खिलाने की प्रथा थी। घर की स्त्रियाँ भोजन बड़ी रुचि से बनाया करती थीं और बनाते समय सभी की पसंद का ध्यान भी रखा करती थीं। फिर भोजन सुपाच्य हो इसलिए हींग, दालचीनी, तेजपत्ता आदि का प्रयोग करना नहीं…

parivartan hi sansar ka niyam hai
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परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है – ठहराव का नहीं

प्रकृति सदैव नवीनता को अपनाती है, जबकि अक्सर धार्मिक लोग पुरातन चीजों में आस्था रखते हैं। प्रकृति का नियम है कि यदि कुछ नया, बेहतर, या उन्नत संभव है तो वह पुराने को मिटाकर नया रचती है। चाहे वह डायनासौर जैसे विशालकाय जीवों का विलुप्त होना हो या मंगल ग्रह को निर्जीव करके पृथ्वी को…

क्यों नहीं देख पाते हम ईश्वर को
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धर्म और विज्ञान: सत्य की दो धाराएँ या दो धंधे ?

धर्म की आढ़ में गौतम बुद्ध, महावीर, जीसस आदि के नाम, नौकरियों को महान कर्म और स्वरोजगार, कृषि को निकृष्ट कर्म बताकर जनता को कायर और गुलाम मानसिकता का बनाया गया। और जब नागरिक गुलामी और चाकरी को ही जीवन का उद्देश्य मानकर जीने लगी, अपने खेत, भूमि बेचकर नौकरियों के पीछे भागने लगी, तब…