आश्रम

क्या खोया और क्या पाया
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वर्षांत चिंतन: बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया

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आज वर्ष 2024 का अंतिम दिन है। हम अगले वर्ष 2025 में फिर इसी मंच पर मिलेंगे। लेकिन आज का दिन विशेष है। यह दिन हमें ठहरकर चिंतन-मनन करने का अवसर देता है—क्या खोया, क्या पाया और किस दिशा में हमारा जीवन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष, यानी 2023 के नवम्बर में, मैंने आश्रम जीवन…

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आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे
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आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे

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आधुनिक समय में आश्रमों का स्वरूप और उद्देश्य दोनों बदल चुके हैं। अब ये आध्यात्मिक साधना और आत्मान्वेषण के केंद्र न रहकर छुट्टियाँ बिताने, पिकनिक और पार्टी करने के स्थान बन चुके हैं। यहाँ आकर न केवल लोग मौज-मस्ती करते हैं, बल्कि खुद को धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक होने का अहंकार भी बनाए रखते हैं।…

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गेस्ट हाउस, होटल और आश्रमों में कोई अंतर नहीं !

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प्राचीन काल में जब लोग पढ़े-लिखे नहीं होते थे, अँग्रेजी नहीं जानते थे तब गांवों में अतिथि गृह हुआ करते थे। जो लोग समृद्ध थे, उनके अपने घरों में भी अतिथिगृह हुआ करते थे और आश्रमों में भी अतिथि गृह हुआ करते थे। समय के साथ लोग पढ़े-लिखे और आधुनिक होते गए, अँग्रेजी बोलने लगे…

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हौज वाला ज्ञान जिससे पंडित पैदा होते हैं

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*मैंने कहा कि ज्ञान से मुक्त हो जाना जरूरी है। यह तो बड़ी अजीब बात है!* एक छोटी सी कहानी इस प्रश्न के उत्तर में कहूंगा। बंगाल में एक फकीर हुआ। छोटा उसका एक आश्रम था। उस आश्रम में नये-नये लोग आते, ठहरते, ज्ञान लेते। एक नया संन्यासी भी आया, पंद्रह दिन तक वहां रुका,…

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तीर्थों में प्रवेश शुल्क wpp1659681443650
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क्या तीर्थों, मंदिरों और आश्रमों में शुल्क लेना अनुचित है ?

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मेरा व्यक्तिगत मत है कि बिलकुल भी नहीं। क्योंकि कमर्शियल (व्यवसायिक) केन्द्रों के रखरखाव के लिए शुल्क लेना ही चाहिए। और अब चूंकि फ्री के सेवक मिलते नहीं, तो भक्ति और अध्यात्म का ढोंग करने वाले तीर्थयात्रियों द्वारा फैलाये गए कूड़ा कर्कट साफ करेगा कौन ? वैसे भी तीर्थ यात्रियों का ना धर्म से कोई…

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