आत्मचिंतन

क्या खोया और क्या पाया
|

वर्षांत चिंतन: बीते वर्ष में क्या खोया और क्या पाया

Shares

आज वर्ष 2024 का अंतिम दिन है। हम अगले वर्ष 2025 में फिर इसी मंच पर मिलेंगे। लेकिन आज का दिन विशेष है। यह दिन हमें ठहरकर चिंतन-मनन करने का अवसर देता है—क्या खोया, क्या पाया और किस दिशा में हमारा जीवन बढ़ रहा है। पिछले वर्ष, यानी 2023 के नवम्बर में, मैंने आश्रम जीवन…

Shares
एकांतप्रिय होने कोई बीमारी नहीं है
| |

आज समाज के नाम पर केवल राजनैतिक, साम्प्रदायिक और जातिवादी भीड़ दिखाई देती है

Shares

जो व्यक्ति समाज और भीड़ से अलग एकांत में रहना पसंद करते हैं और सीमित लोगों से ही मिलते-जुलते या बातचीत करते हैं, उन्हें मनोविज्ञान में “इंट्रोवर्ट” (Introvert) कहा जाता है। इंट्रोवर्ट के लक्षण: 1. एकांत प्रियता: ऐसे लोग अकेले समय बिताना पसंद करते हैं और इसमें उन्हें ऊर्जा मिलती है। उनके लिए एकांत एक…

Shares
आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे
| | |

आश्रम अब आध्यात्मिक केंद्र नहीं रहे

Shares

आधुनिक समय में आश्रमों का स्वरूप और उद्देश्य दोनों बदल चुके हैं। अब ये आध्यात्मिक साधना और आत्मान्वेषण के केंद्र न रहकर छुट्टियाँ बिताने, पिकनिक और पार्टी करने के स्थान बन चुके हैं। यहाँ आकर न केवल लोग मौज-मस्ती करते हैं, बल्कि खुद को धार्मिक, सात्विक और आध्यात्मिक होने का अहंकार भी बनाए रखते हैं।…

Shares
क्या आप जागृत और चैतन्य हैं
| | |

जीवन की वास्तविकता: दूसरों की थोपी मान्यताओं से परे

Shares

हमारे जीवन में कई बार ऐसा समय आता है जब हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, पाप-पुण्य, हराम-हलाल जैसी अवधारणाएँ हमारे स्वयं के विचार नहीं हैं। ये सब हमारे ऊपर समाज, धर्म, संस्कृति, और संस्थाओं द्वारा थोपी गई मान्यताएँ हैं। इनका सत्य से कोई संबंध नहीं होता, बल्कि यह दूसरों के…

Shares
anupayogi upakran ya insan
| |

उपभोक्तावाद के गुलाम: इंसान का घटता महत्व और जागरूकता की राह

Shares

आज का समाज उपभोक्तावाद पर आधारित कर्मवाद से ग्रस्त है, जहां इंसानों का महत्व उन्हीं पुराने रेडियो और टीवी सेट्स जैसा हो गया है, जो कभी घरों की शान हुआ करते थे और आज कचरे के ढेर में पड़े हैं। इन उपकरणों की तरह ही, इंसानों को भी तब तक महत्व दिया जाता है, जब…

Shares
maan samman
|

पद-प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित मान-सम्मान और अपनापन आपका नहीं है

Shares

यदि पद, प्रतिष्ठा और स्थान पर आधारित हो सम्मान और अपनापन, तो फिर वह आपका नहीं है। उन्हें अपना समझने की मूर्खता कभी न करें। हमारा अपना कुछ नहीं है इस जगत में। जो कुछ भी हमें इस जगत में मिलता है, वह सब शर्तों पर मिलता है, लीज़ पर मिलता है। कोई हमें मान-सम्मान…

Shares
swayam ki khoj
| | | |

स्वयं को जानने का समय नहीं, क्योंकि भेड़चाल में दौड़ रहे हैं सब

Shares

यदि भेड़चाल में न दौड़ो, तो समाज, सरकार और परिवार की नजर में निकम्मा, कामचोर, मुफ्तखोर। और दौड़ों तो स्वयं से ही अजनबी बन जाओ और भूल जाओ कि तुम स्वयं क्या हो और क्यों हो ? सारी व्यवस्था ऐसी बना दी गयी है कि इंसान स्वयं को जानने समझने के लिए समय ही ना…

Shares
काम क्रोध लोभ मोह से भयभीत समाज
| | | |

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से भयभीत समाज

Shares

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को इतना तिरस्कृत किया गया है कि ये मानव के भाव न होकर किसी दूसरे ग्रह से आयातित भाव लगते हैं। काम – सृष्टि का मूल केंद्र है लेकिन सर्वाधिक निन्दित भी है। क्रोध – असहमति व अधिकार जताने का स्वाभाविक गुण लेकिन निन्दित है। लोभ – प्रेरणा है जीवन…

Shares