आत्मज्ञान

chidanandrupah shivoham shivoham
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चिदानंदरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्

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श्लोक:न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखंन मंत्रो न तीर्थं न वेदाः न यज्ञः।अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ताचिदानंदरूपः शिवोऽहम् शिवोऽहम्॥ यह श्लोक अद्वैत वेदांत और शिवत्व के मूल भाव को प्रकट करता है। इसे आदि शंकराचार्य के प्रसिद्ध “निर्वाण षट्कम्” से लिया गया माना जाता है, जिसमें आत्मा की वास्तविकता को स्पष्ट किया…

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jivan maran ke chakra se mukti
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किसे पुनर्जन्म मिलेगा और किसे मोक्ष मिलेगा ?

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आजकल बहुत से लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए दुनिया भर के कर्मकाण्डों में व्यस्त रहते हैं। किसी ने गंगा स्नान करने का वचन लिया है, तो कोई सवा पाँच रुपए का प्रसाद चढ़ाने का मन बना रहा है, सोचते हैं कि इससे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।…

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guruon se bhi mukt ho jao
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स्वविवेक का महत्व: गुरुओं से भी मुक्त हो जाओ

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अधिकांश गुरुओं ने कहा कि गीता पढ़ो, बाइबल पढ़ो, वेद, उपनिषद, कुरान पढ़ो। लेकिन कुछ ही गुरुओं ने कहा कि स्वयं को दड़बों से मुक्त करो, स्वयं गुरुओं से भी मुक्त करो, प्रकृति (Nature) को पढ़ो, स्वयं को पढ़ो, स्वयं को जानो। जिन गुरुओं ने स्वयं को गुरुओं से भी मुक्त होने के लिए कहा,…

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swayam ki khoj
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स्वयं को जानने का समय नहीं, क्योंकि भेड़चाल में दौड़ रहे हैं सब

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यदि भेड़चाल में न दौड़ो, तो समाज, सरकार और परिवार की नजर में निकम्मा, कामचोर, मुफ्तखोर। और दौड़ों तो स्वयं से ही अजनबी बन जाओ और भूल जाओ कि तुम स्वयं क्या हो और क्यों हो ? सारी व्यवस्था ऐसी बना दी गयी है कि इंसान स्वयं को जानने समझने के लिए समय ही ना…

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main sukhi to jag sukhi ka siddhant ek bhranti
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मैं सुखी तो जग सुखी का सिद्धान्त ले डूबा प्राणी जगत को

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आज के पढ़े-लिखे समाज ने एक बहुत बड़ा भ्रम पाल लिया है कि भौतिक सुख ही वास्तविक सुख है, और बाकी सब मिथ्या। इन्हें लगता है कि इंसानों द्वारा किए गए आविष्कार ही जीवन के आधार हैं, बाकी सब निरर्थक। यह विचारधारा इतनी गहराई तक समा चुकी है कि इनकी स्थिति उन धार्मिक कट्टरपंथियों जैसी…

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हमारी शिक्षा और गुरु का महत्व
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हमारी शिक्षा और गुरु का महत्व: आत्मज्ञान की ओर एक यात्रा

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कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब कुछ हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम केवल उसे खोजते हैं और उसे पुनः आविष्कार करते हैं, क्योंकि हम अनेकों जन्मों में अनुभव प्राप्त करते हैं और हर जन्म में कुछ न कुछ नया सीखते हैं। अब तो विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि पुनर्जन्म…

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साधना और स्व की पहचान
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साधना और स्व की पहचान

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कहते हैं, यह कई हज़ार वर्ष पुरानी बात है। मैं एक घने जंगल में साधना कर रहा था। न किसी से मिलना, न बोलना, न खाने-पीने की चिंता और न ही कमाने की। बस एक ही जगह स्थिर होकर अपनी साधना में लीन था। साधना क्या थी? फेसबुक पर अपने विचार लिखना। वर्षों इसी तरह…

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