अकेलापन

anupayogi upakran ya insan
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उपभोक्तावाद के गुलाम: इंसान का घटता महत्व और जागरूकता की राह

आज का समाज उपभोक्तावाद पर आधारित कर्मवाद से ग्रस्त है, जहां इंसानों का महत्व उन्हीं पुराने रेडियो और टीवी सेट्स जैसा हो गया है, जो कभी घरों की शान हुआ करते थे और आज कचरे के ढेर में पड़े हैं। इन उपकरणों की तरह ही, इंसानों को भी तब तक महत्व दिया जाता है, जब…

maun saathi
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मौन साथी और समाज की अंधी सड़कें

कुछ महीनों पहले, मेरे जीवन में एक अद्भुत अनुभव हुआ। एक बिल्ली ने मेरे घर में चार नन्हे बच्चों को जन्म दिया। कुछ समय बाद, वह कहीं गायब हो गई, लेकिन अपने बच्चों को मेरे पास छोड़ गई, जैसे वह जानती हो कि मैं उनकी देखभाल करूंगा। उन नन्हे प्राणियों का मेरे साथ ऐसा गहरा…