चैतन्य

क्या आप जागृत और चैतन्य हैं
| | |

जीवन की वास्तविकता: दूसरों की थोपी मान्यताओं से परे

Shares

हमारे जीवन में कई बार ऐसा समय आता है जब हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि सही-गलत, नैतिक-अनैतिक, पाप-पुण्य, हराम-हलाल जैसी अवधारणाएँ हमारे स्वयं के विचार नहीं हैं। ये सब हमारे ऊपर समाज, धर्म, संस्कृति, और संस्थाओं द्वारा थोपी गई मान्यताएँ हैं। इनका सत्य से कोई संबंध नहीं होता, बल्कि यह दूसरों के…

Shares
unnamed-file
| | | | |

क्यों दुर्लभ होते हैं बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य लोग ?

Shares

सच तो यह है कि हम सभी के भीतर बुद्ध, ओशो, सुकरात जैसे जागृत और चैतन्य होने का गुण विद्यमान होता है। लेकिन अधिकांश लोग सम्झौता कर लेते हैं और मार देते हैं बुद्ध, ओशो और सुकरात को। और जो सम्झौता नहीं करते, उनमें से अधिकांश को माफियाओं और लुटेरों के गुलाम समाज, सरकारें और…

Shares
IMG 20230702 WA0009
|

अन्नपूर्णा देश में प्रकृति के प्रति निस्वार्थ प्रेम नहीं, सिवाय जहरीले खेती और बाजारीकरण के ?

Shares

अन्नपूर्णा देश में स्वार्थी मानव का प्रकृति के प्रति कोई निस्वार्थ प्रेम नहीं, सिवाय जहरीले खेती और बाजारीकरण के?

Shares
चार्वाक दर्शन पर जी रहा आधुनिक समाज और सरकार

चार्वाक दर्शन और कर्जों में दबा मानव, समाज और देश

Shares

चैतन्य आत्माओं ने हमेशा मानव जाति को चैतन्य बनाने का ही प्रयास किया। लेकिन उनके शिष्यों और अनुयायियों ने मानव जाति को कभी चैतन्य होने ही नहीं दिया। क्योंकि शिष्यों और अनुयायियों की आजीविका भेड़ों और भीड़ पर निर्भर होती है। और फिर चैतन्य आत्माओं के आसपास इकट्ठी होने वाली भीड़ चैतन्य होने के लिए…

Shares
जागृत व्यक्तियों के शिष्य
| | |

जागृत व्यक्तियों के शिष्य और अनुयायी जागृत क्यों नहीं हो पाते ?

Shares

बुद्ध द्वारा स्थापित संघ में कोई बुद्ध नहीं बन पाया। मोहम्मद द्वारा स्थापित इस्लाम में कोई मोहम्मद नहीं बन पाया। ओशो द्वारा स्थापित कम्यून में कोई ओशो की तरह निर्भीक जागरूक नहीं हो पाया। क्यों ऐसा होता है कि जागृत व्यक्ति को हमेशा अकेले ही संघर्ष कर उभरना पड़ता है ? क्यों ऐसा होता है…

Shares
35c130b893ef19ad45cb6c41cc67aa71
| | | |

समझदार होने का कोई सम्बन्ध नहीं डिग्रीधारी या शास्त्री होने से

Shares

“बहुत पढ़ा हमने फलाने को ढिकाने को।” “बचपन से उनके सानिन्ध्य में रहे हम कई बरसों तक।” सारे शास्त्र, धार्मिक ग्रंथ कंठस्थ हैं हमें, एक-एक आयतें और श्लोक ज़बानी याद है। अरे ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, केलिफोर्निया यूनिवर्सिटी का टॉपर हैं हम ! भला हमसे बड़ा ज्ञानी और कौन होगा इस दुनिया में ? ऐसे बहुत से…

Shares
आदर्श कभी न बनना
|

कभी भी आदर्श या मसीहा बनने की कोशिश मत करना

Shares

यदि अब तक आए मसीहा, पैगंबर, तीर्थंकर, अवतार, समाज सुधारक, गुरुओं के जीवनियों पर नजर डालें, तो लगभग सभी ने बलिदान दिया समाज की आँखें खोलने के लिए। लेकिन क्या समाज की आँखें खुलीं कभी ? उन्होंने दुनिया भर के कष्ट सहे, तिरस्कार सहा, सामाजिक बहिष्कार से लेकर क्रूर अमानवीय यातनाएँ सहीं। लेकिन क्या कोई…

Shares
अपने अपने गुरुओं पर सबको बड़ा मान है
| | |

गुरु पूर्णिमा: अपने-अपने गुरुओं पर सबको बड़ा नाज़ है

Shares

आज गुरु पुर्णिमा है, तो हर कोई अपने अपने गुरुओं की आरती, स्तुति वंदन करने में व्यस्त है। लेकिन क्या ये समाज जिन्हें गुरु मानकर पूज रहा है, वास्तव में वे उस पूरे समाज के गुरु हैं,

Shares
marriage विवाह की वेदी पर प्रेम की हत्या हो जाती है
| |

विवाह की वेदी पर प्रेम की हत्या हो जाती है

Shares

ओशो ने कहा था, “प्रेम जब विवाह में परिवर्तित हो जाता है, तब प्रेम की हत्या हो जाती है। ना प्रेम बचता है, न प्रेमी और न ही प्रेमिका।” प्रेम एक ऐसी ऊर्जा है, जो इंसान को भौतिक ऊँचाई से आध्यात्मिक ऊंचाई कुछ भी प्राप्त करवा सकती है। प्रेम इंसान को भीतर से जागृत कर…

Shares
Politics Rajnaitik partiyon ko bhi dharm kyon nahi ghoshit kar dete

राजनैतिक पार्टियों को भी धर्म घोषित क्यों नहीं कर देते ?

Shares

कहते हैं डिग्रियाँ बटोरने के लिए स्कूल जाना जरूरी है। फिर स्कूल सर्टिफिकेट जारी करता है कि यह बालक अब डिग्रियाँ बटोरने के योग्य हो गया है इसलिए इसे कॉलेज में दाखिला दिया जा सकता सकता है। फिर बच्चा कॉलेज जाता है और डिग्रियाँ बटोरने का हुनर सीखता है। विक्षिप्त लोगों को विकलांग कहना पाप…

Shares
काम क्रोध लोभ मोह से भयभीत समाज
| | | |

काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से भयभीत समाज

Shares

काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को इतना तिरस्कृत किया गया है कि ये मानव के भाव न होकर किसी दूसरे ग्रह से आयातित भाव लगते हैं। काम – सृष्टि का मूल केंद्र है लेकिन सर्वाधिक निन्दित भी है। क्रोध – असहमति व अधिकार जताने का स्वाभाविक गुण लेकिन निन्दित है। लोभ – प्रेरणा है जीवन…

Shares
4de57e4c6f76d89c08f629464e37a37f

क्या इतना व्यापक रूप है किसी और धर्म में ?

Shares

कई हज़ार साल पहले की बात है। एक दिन मेरे पास तुनकू पंडित आया बहुत उल्लास से भरा हुआ। आकर बोला, “बाबा मैंने धर्म परिवर्तन का निश्चय कर लिया है।” “अरे क्यों भाई ? अपने धर्म में क्या बुराई है ?” मैंने उससे जानना चाहा। “अरे बकवास धर्म है यह !! प्रेम-प्यार अपनापन से रिक्त…

Shares