कहीं कोई सांपनाथ तो कहीं कोई नागनाथ….
चुनावी सीजन के फूल तो राजनीति में, गेरुवा के गुलशन गुलशन से ही उनके भेड़ों में खिलते हैं और राजनीति में दमकते हैं। और उन पूंजीवाद के गुलशन-गुलशन के फूल तो उन राजनीतिज्ञ के चमन-चमन से खिल कर, पुरोहितवाद में जा बरसते हैं और उन भेड़ों में जा दमकते हैं और फिर राजनीतिज्ञ चांद सितारों में जा चमकते हैं..