धर्म का अर्थ

जय कर्मवाद जय कर्मयोग
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पंथों, पार्टियों, समाजों के चक्रव्युह में उलझ गया कर्मयोग !

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पिछले कई बरस से जब भी ठंड बढ़ती, एक अच्छा जैकेट खरीदने का मन करता। लेकिन कभी भी इतने पैसे जेब में नहीं होते कि अच्छी जैकेट खरीद पाऊँ। फिर सोचता हूँ कि संन्यासियों को जैकेट की क्या आवश्यकता, संन्यासी तो एक कपड़े में जीवन काट लेते हैं। कितने संन्यासी तो आजीवन निक्कर तक नहीं…

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