ध्यान

sannyas ka wastavik swaroop
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संन्यास का वास्तविक स्वरूप: एक गहरी यात्रा की कथा

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संन्यास, एक ऐसा शब्द है जो हमारे समाज में सदियों से प्रतिष्ठित रहा है। शास्त्रों में इसका चित्रण बहुत पवित्र और विशेष रूप से किया गया है। लेकिन क्या आपने कभी यह विचार किया कि संन्यासी वास्तव में होता कौन है? क्या संन्यासी वही होता है, जैसा शास्त्रों में वर्णित है? या फिर वह एक…

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ध्यान के दौरान आने वाली बाधाओं से कैसे निबटा जाए ?

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प्रश्न:–ध्यान के दौरान खुजली व दर्द जैसी बाधा डालने वाली भावनाओं से कैसे निबटा जाए ? ध्यान में, ज्यादातर शारीरिक दर्द बाधा डालते हैं। क्या आप बताएंगे कि जब दर्द हो रहा है तब उस पर ध्यान कैसे किया जाए? ओशो:– यह वही है जिसकी मैं बात कर रहा था। यदि तुम दर्द महसूस करते…

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ध्यान मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
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शक्तिशाली ध्यान केवल उन्हें ही सिखाया जाना चाहिए जो निःस्वार्थी हों

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ध्यान के दो अर्थ होते हैं। सामान्य प्रचलित अर्थ है किसी विषय, वस्तु, व्यक्ति, उद्देश्य पर मन और भाव को केन्द्रित करना। जिसे हम त्राटक के नाम से भी जानते हैं। दूसरा अर्थ है विचारशून्य हो जाना, निष्क्रिय हो जाना, केवल दृष्टा मात्र बनकर रह जाना। दोनों ही प्रकार के ध्यान का अपना अपना महत्व…

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परतंत्रता में निश्चय ही सुविधा है और सुरक्षा भी

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क्या आप स्वतंत्र हैं?यह प्रश्न जितना साधारण लगता है, उतना ही गहरा और चुनौतीपूर्ण है। इस संसार में ऐसे अनगिनत लोग हैं, जो स्वयं को स्वतंत्र मानते हैं, जबकि उनका जीवन परतंत्रता की बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। यह परतंत्रता केवल बाहरी नहीं है; यह भीतर तक फैली हुई है। स्वतंत्रता का अर्थ केवल बाहरी…

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हमारी शिक्षा और गुरु का महत्व
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हमारी शिक्षा और गुरु का महत्व: आत्मज्ञान की ओर एक यात्रा

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कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब कुछ हमारे भीतर ही विद्यमान है। हम केवल उसे खोजते हैं और उसे पुनः आविष्कार करते हैं, क्योंकि हम अनेकों जन्मों में अनुभव प्राप्त करते हैं और हर जन्म में कुछ न कुछ नया सीखते हैं। अब तो विज्ञान भी इस बात से सहमत है कि पुनर्जन्म…

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