दिखावा

विवाह और समाज
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विवाह और समाज: वास्तविकता का सामना

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कहते हैं विवाह दो आत्माओं का मिलन है। कोई कहता है विवाह दो दिलों का मिलन हैं। कोई कहता है विवाह दो जिस्मों का मिलन है। कोई कहता है जोड़ियाँ आसमान में बनती है। कोई कहता है जोड़ियाँ पंडित जी बनाते हैं ग्रह नक्षत्र मिलाकर। चाहे जितने भी भावनात्मक पहलुओं से जोड़ा जाए, अधिकांश विवाह…

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haal chaal theek thaak hai
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सामाजिक शिष्टाचार और वास्तविकता का अंतर

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कैसे हैं आप? जब भी किसी व्यक्ति से मिलते हैं, पहला प्रश्न यही होता है, “कैसे हैं आप? क्या हाल हैं आपके ?” और उत्तर सामान्यतः यही मिलता है, “मैं बिलकुल ठीक हूं। ईश्वर की कृपा है।” लेकिन क्या यह संवाद हमारी वास्तविकता को दर्शाता है? प्रश्न करने और उत्तर देने वाले दोनों जानते हैं…

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शादी और समाज की दिखावटी दुनिया: एक चिंतन

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आज के दौर में भौतिकता की दौड़ ने हमारे जीवन को इस तरह प्रभावित किया है कि हम धीरे-धीरे अपनी आत्मीयता और रिश्तों के प्रति सचेत नहीं रह गए हैं। खासकर शादी-विवाह के मामलों में विवाहिता का अपने माता-पिता और रिश्तेदारों के प्रति जो सच्चा अपनापन और प्रेम होना चाहिए, वह आजकल नदारद सा हो…

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jivan maran ke chakra se mukti
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किसे पुनर्जन्म मिलेगा और किसे मोक्ष मिलेगा ?

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आजकल बहुत से लोग मोक्ष प्राप्त करने के लिए दुनिया भर के कर्मकाण्डों में व्यस्त रहते हैं। किसी ने गंगा स्नान करने का वचन लिया है, तो कोई सवा पाँच रुपए का प्रसाद चढ़ाने का मन बना रहा है, सोचते हैं कि इससे जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाएगी और मोक्ष की प्राप्ति होगी।…

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मंदिरों का औचित्य ही क्या है
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मंदिरों का औचित्य ही क्या है जब करना माफियाओं की गुलामी ही है ?

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आजकल समाज में एक विचित्र परिपाटी बन चुकी है, जिसमें लोग पूजा-पाठ, व्रत-उपवास और धार्मिक अनुष्ठान तो करते हैं, लेकिन वास्तविक जीवन में उनकी नैतिकता और आस्थाएँ सवालों के घेरे में हैं। इस लेख में हम उसी मानसिकता और जीवनशैली का विश्लेषण करेंगे जो मंदिरों, तीर्थ स्थलों, पूजा विधियों और धार्मिक अनुष्ठानों के प्रति लोगों…

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