दुनिया

मैं कुछ नहीं लिखता
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जब से होश संभाला है, दुनिया को ढोंग करते हुए ही देखा है

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मैं भी कुछ नहीं लिखता। मेरे भीतर स्वाधीनता संग्राम में शहीद हुए सैंकड़ों क्रांतिकारियों की आत्माएँ बसती हैं। और वे जब रोते हैं देश के बिकाऊ नेताओं, अभिनेताओं, खिलाड़ियों और जनता को देखकर, तब मेरी उँगलियाँ टाइपिंग बोर्ड पर चलने लगती हैं और कोई लेख उभर आता है। मेरे भीतर बसती हैं उन महान चैतन्य…

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सच कहूँ तो अब मुझे ये दुनिया रास नहीं आ रही
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सच कहूँ तो अब मुझे ये दुनिया रास नहीं आ रही

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बाज़ार पर नजर डालिए कभी साक्षी भाव से। सड़कों पर नजर डालिए कभी शांत भाव से। राजनैतिक पार्टियों, सरकारों, संगठनों, संप्रदायों, समाजों पर नजर डालिए शांत भाव से। परिवार की गतिविधिओं पर नजर डालिए और स्वयं के परिचितों, संबंधियों और स्वयं पर नजर डालिए शांत भाव से। आपको ऐसा लगेगा जैसे हर कोई दौड़ रहा…

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