मेरी पहली संन्यासिन का नाम है, माँ आनंद मधु! -ओशो
हाँ, एक स्त्री! क्योंकि मैं यही चाहता था ।जिस तरह मैंने स्त्रियों को संन्यास दिया, किसी ने कभी नहीं दिया ।इतना ही नहीं, मैं अपनी पहली संन्यास दीक्षा किसी स्त्री को ही देना चाहता था- संतुलन के लिए ।स्त्री को संन्यास देने में बुद्ध तक हिचकिचाये…. बुद्ध तक !!!उनके जीवन की सिर्फ यही एक बात…