इंतज़ार

किसी अपने का इंतज़ार है
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बचपन से ही एक काल्पनिक दुनिया में जीता आ रहा था

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“न ख्वाहिशें, न लोग और न ही किसी के साथ की आस बाकी बची है मुझमें। फिर भी जाने क्यों ये जो नन्हा सा दिल है कि वो मानता ही नहीं। वो ये मानने को तैयार ही नहीं कि अब मेरी मोहब्बत करने की उम्र पीछे छूट चुकी है। गर असफल प्रेमियों की दास्तान लिखी…

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