कथावाचन, पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज़ ना तो धर्म है और ना ही अध्यात्म
कथावाचन, पूजा-पाठ आध्यात्म नहीं, प्रोफेशन है। मंदिर, आश्रम भी अब धार्मिक/आध्यात्मिक केंद्र नहीं व्यापारिक केंद्र हैं। दान, दक्षिणा भी अब परोपकार या पुण्य नहीं, व्यावसायिक शर्तों पर दिया जाने शुल्क/पूंजी है। पूजा-पाठ, रोज़ा-नमाज़, व्रत-उपवास भी अब प्रेम, सद्भाव, सौहार्द स्थापित करके आध्यात्मिक उत्थान करने का माध्यम नहीं, मनोरंजन और टाइमपास का माध्यम मात्र है। और…