लोकतंत्र

ai aur vishuddhachintan
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क्या सरकारें कार्पोरेट्स और माफियाओं को देश और आम नागरिकों से अधिक महत्व देती हैं ?

हम ऐसे युग में जी रहे हैं जहाँ लोकतंत्र केवल एक “लोकप्रिय नारा” बनकर रह गया है, और “जनता के हित” अब केवल सरकारी विज्ञापनों और घोषणाओं में दिखाई देते हैं। ज़मीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है — ऐसी हकीकत जिसे न समाचार चैनल दिखाते हैं, न अख़बारों में स्थान मिलता है। ग्रोक…

pishachi punjiwad
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पिशाची पूंजीवाद राजनीतिज्ञ, पुरोहितवाद और फार्मा माफिया का जाल!

🛑पिसाची पूंजीवाद राजनीतिज्ञ, पुरोहितवाद और फार्मा माफिया का जाल और लोकतंत्र बना मूर्ख तंत्र का षड्यंत्र!

🛑इन धर्मगुरु, पुरोहित, कथावाचकों का पूंजीवादी व्यवस्था के धर्म का व्यवसायीकरण षड्यंत्र!

यह पूंजीवाद और पुरोहितवाद एक दूसरे के पूरक है ये कभी भी एक दूसरे के विरोध नहीं करेंगे!